ओशो की समाधि पर लिखा है ‘न कभी जन्मा, न कभी मरा, सिर्फ 11 दिसंबर 1931 से 19 जनवरी 1990 के बीच इस पृथ्वी ग्रह पर भ्रमण किया’. अपने जीवन में कई विवादों में घिरे आोशो की मौत का आधिकारिक कारण तो हार्ट फेलियर बताया गया था, लेकिन उनके आश्रम की तरफ से कहा गया था कि अमेरिकी जेल में ज़हर दिए जाने के बाद ‘शरीर में रहना जहन्नुम’ हो गया था. पुणे स्थित ओशो आश्रम में ओशो के अवशेष लाओ त्ज़ू हाउस में रखे गए और वहां एक समाधि स्मारक बनाया गया. लेकिन आोशो की मौत पहेली बन गई क्योंकि कई सवालों के जवाब नहीं मिले.
साल 2015 में डॉ. गोकनी ने एक वीडियो बयान में कहा था कि ओशो के पर्सनल डॉक्टरों देवराज और जयेश ने उन्हें घंटों तक कमरे में बंद कर दिया था और डॉक्टरों से मिलने नहीं दिया था. गोकनी से मौत का कारण मायोकार्डियल अवरोध लिखने को कहा गया था ताकि शक की गुंजाइश न रहे. हालांकि हू किल्ड ओशो किताब के लेखक अभय वैद्य ने माना था कि ओशो को ड्रग्स के ओवरडोज़ के ज़रिये ज़हर दिया गया था.
देवराज और जयेश ने सबको यही बताया कि ओशो चाहते थे कि मौत के फौरन बाद अंतिम संस्कार कर दिया जाए इसलिए आश्रम में सभी को अंतिम दर्शन के लिए सिर्फ 15 मिनट दिए गए. आनन फानन में घोषणा के बाद मौत के एक घंटे के भीतर ओशो का अंतिम संस्कार कर दिया गया. यह सब इतनी जल्दबाज़ी में क्यों हुआ? इस सवाल का जवाब कभी नहीं मिला.
19 जनवरी को जब ओशो की हालत बिगड़ रही थी, तब आश्रम में उनकी मां मौजूद थीं, लेकिन उन्हें तक कुछ नहीं बताया गया. उन्हें भी मौत की ही खबर दी गई. ओशो की सेक्रेट्री नीलम ने मीडिया को बताया था कि ‘जब मैंने उन्हें बताया कि ओशो देह छोड़ चुके, तब उन्होंने कहा था कि नीलम, उसे मार डाला गया’. नीलम ने यह भी कहा था कि ‘तब मैंने उनसे कहा था कि किसी पर आरोप का यह वक्त सही नहीं है.’
वैद्य की किताब में भी इस बात का ज़िक्र गंभीरता से किया गया कि ओशो की मौत से 41 दिन पहले उनकी कथित पूर्व प्रेमिका और ओशो की केयरटेकर मां प्रेम निर्वाणो की मौत किन हालात में हुई थी. 40 साल की मां प्रेम की सेहत एकदम ठीक थी. किताब की मानें तो उनका अंतिम संस्कार भी कुछ खास लोगों के बीच जल्दबाज़ी में हुआ था और अब तक उनकी मौत के बारे में खुसर फुसर ही होती है.
जयेश के नियंत्रण वाली ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन ने 2013 में ओशो की वसीयत एक यूरोपीय कोर्ट के सामने पेश कर उनकी तमाम प्रॉपर्टी पर दावा किया था. ये वही लोग थे जिन्होंने 23 साल पहले ओशो की मौत के वक्त किसी तरह की वसीयत होने से इनकार किया था. बाद में फॉरेंसिक जांच में पेश की गई वसीयत को जाली पाया गया और केस वापस लिया गया. इन तमाम सवालों या थ्योरियों की बदौलत कहा जाता है कि ओशो की मौत अब भी रहस्य बनी हुई है.
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