21 जनवरी 1924 को लंबी बीमारी के बाद पड़े दिल के दौरे से रूस के महान नेता व्लादिमीर लेनिन का निधन हो गया था. निधन के बाद उनके शव को जनता के दर्शनों के लिए रखा गया. योजना थी कि जनता के दर्शन के लिए कुछ दिनों तक पार्थिव शरीर को रखा जाएगा. फिर इसे दफना दिया जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. 97 साल पहले मर चुके लेनिन की डेड बॉडी अब भी रूस के लेनिनग्राद में रखी है. हालांकि रूस ने खासतौर पर उनके पार्थिव शरीर को संरक्षित करके रखा है.
शुरुआत में लेनिन का शव कोल्ड स्थितियों में रखकर दफनाने का था लेकिन जब उन हालात में ये शव सुरक्षित रहा तो तत्कालीन सोवियत शासक स्तालिन ने उनको दफनाने का इरादा बदल दिया. हालांकि लेनिन की पत्नी नेज्दका क्रुप्सकाया चाहती थीं कि उनके पति को दफना दिया जाए लेकिन स्तालिन ने उनकी बात नहीं मानी. बाद में लेनिन के मृत शरीर से उनके दिमाग को निकाल कर ये भी देखा गया कि वो किन बीमारियों से ग्रस्त थे.
अब तो लेनिन के शव को बेहतरीन स्थितियों में रखने के लिए रूसी वैज्ञानिकों ने काफी काम कर लिया है. उन्होंने कई तकनीक पर काम करके इस शव को ज्यों का त्यों वाली स्थिति में रखा है. इस तकनीक ये भी शामिल है कि जब लोग उन्हें लेटे हुए देखें तो उनका शरीर ना केवल अच्छा दिखे बल्कि उसमें ताजगी भी नजर आए. एकबारगी ऐसा महसूस हो कि वो मरे नहीं हैं बल्कि जीवित हैं.
जिस जगह लेनिनग्राद में लेनिन का शव रखा गया है, उसे लेनिन म्युजोलियम कहा जाता है. ये मास्को के रेड स्क्वेयर पर है. आखिर कैसे रूसी वैज्ञानिकों ने उनके शव को इतने परफेक्ट तरीके से संरक्षित किया हुआ है.
कहा जाता मास्को में एक इंस्टीट्य़ूट है, जो बॉयो केमिकल तरीके से इसी पर काम करता रहता है. पांच से छह लोगों का कोर ग्रुप है, जो लेनिन के शव को बेहतर रखने पर काम करते हैं, इसमें बॉयोकेमिस्ट और सर्जन के साथ एनटोमिस्ट यानि शरीर की आतंरिक संरचना के विशेषज्ञ शामिल हैं, इन्हें म्युजोलियम ग्रुप कहा जाता है. इन्हीं पर जिम्मेदारी है कि लेनिन की डेड बॉडी हमेशा बेहतर स्थिति में रहे. यही विशेषज्ञ दुनिया में तीन और बड़े नेताओं के पार्थिव शरीर को प्रिजर्व करने में सलाह देने का काम करते हैं. अन्य नेता हैं वियतनामी नेता हो चि मिन्ह, उत्तर कोरिया के राष्ट्रपिता किम द्वितीय और किम जोंग इल.
इन तरीकों में ये देखा जाता है कि संरक्षित शव की फिजिकल फॉर्म बेहतर रहे, उसका लुक, आकार, वजन, रंग और अंगों की फ्लैक्सिबिलिटी और मुलायमित का ख्याल रखा जाता है-इसमें ये जरूरी नहीं है कि शव अपने मूल रूप में ही रहे. इस प्रक्रिया में क्वासीबॉयोलॉजिकल साइंस का इस्तेमाल करते हैं, जो दूसरे शव लेपन तरीकों से अलग है. इसमें वो कई बार कुछ हिस्सों की त्वचा प्लास्टिक या अन्य पदार्थों से बदल भी देते हैं. जिससे शव पुराने समय की तुलना में बदलता रहता है. ये उस पुरानी ममीकरण से अलग है, जिसमें शरीर पर एक बार लेपन करके छोड़ देते है और बॉडी समय के साथ बदलती रहती है.
जब जनवरी 1924 में लेनिन का देहांत हुआ था जब सोवियत संघ के सभी नेताओं ने उनकी बॉडी को एक तय समय के बाद संरक्षित करने का विरोध किया था और वो ये भी नहीं चाहते थे कि इसे लोगों के प्रदर्शन के लिए रखा जाए. लेकिन जब दो महीने तक लोगों की भीड़ लेनिन के पार्थिव शरीर को देखने के लिए रेड स्क्वेयर पर उमड़ती रही, तब सोवियत नेताओं को उनके पार्थिव शरीर को लंबे समय तक संरक्षित करने का फैसला करना पड़ा.
तब उन्होंने इसे प्रायोगित पर संरक्षित करने के लिए दो रूसी शरीर संरचना विशेषज्ञों व्लादीमीर वोरोबीव और बॉयोकेमिस्ट बोरिस जबरस्की को चुना. पहली बार डेड बॉडी में जो लेपन किया गया वो मार्च से लेकर जुलाई 1924 तक टिका रहा. दरअसल दिक्कत इसलिए भी हो रही थी क्योंकि जब डॉक्टरों ने लेनिन के पार्थिव शरीर की जब आटोप्सी की थी तो शरीक की कई नसें और रक्त नासिकाएं काट दी गईं थीं. अगर ऐसा नहीं होता तो शरीर का आंतरिक प्रवाह सिस्टम बना रहता.
फिर उसके बाद लेनिन लैब के रिसचर्स ने माइक्रो इंजेक्शन तकनीक विकसित की, जिसकी एक खुराक से द्रव शरीर के तय अंगों तक बहने लगता है, खासकर उन जगहों तक जहां आंतरिक तौर पर काटपीट हो चुकी है. लेनिन के शरीर के ऊपर बहुत पतले रबर का एक सूट तैयार किया गाय, जो पब्लिक डिस्प्ले के दौरान वो हमेशा पहने रहते हैं. अब इस पार्थिव शरीर का लेपन साल में एक ही बार होता है. तब इसे कई प्रक्रियाओं से गुजरना होता है. हर प्रक्रिया आधे से एक महीना लेती है.
हकीकत यही है कि ये सोवियत संघ और फिर रूस के विज्ञान के तरीकों का कमाल है कि जिस प्रक्रिया में लेनिन के शव की देखरेख होती है और उसकी त्वचा में बदलाव किया जाता रहा है, उसे उसमें चमक या ताजगी कहीं ज्यादा बढ़ चुकी है. लेकिन इस पर रूस बहुत मोटी रकम हर साल खर्च करता है. वैसे क्या आपको मालूम है कि अगर लेनिन जिंदा होते तो कितने साल के होते. जवाब है 149 साल के यानि डेढ़ सौ साल से महज एक वर्ष कम. हालांकि उनका ये शरीर तो इतनी आयु का हो ही गया है.
ये है वो लेनिन म्युजोलियम, जिसमें 97 सालों से रूसी नेता का शव रखा है. हालांकि अब रूस में ये मांग जोर पकड़ रही है कि लेनिन की 100वीं पुण्यतिथि पर उनके पार्थिव शरीर को पूरे राष्ट्रीय सम्मान के साथ दफना दिया जाए. दरअसल इस शव को संजोकर रखने में रूस को बेतहाशा धन खर्च करना होता है, जो लगातार बढ़ता जा रहा है, जिसमें सुरक्षा से लेकर रखरखाव और वैज्ञानिकों का खर्च और इस पर लगी खास टीम का वेतन आदि शामिल है.
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