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रूह अफज़ा बनाने वाले परिवार ने भारत-पाक-बांग्लादेश, तीनों के मार्केट पर जमा रखा है कब्जा

भारत में जैसे ही इस शीतल पेय की कमी हुई तुरंत पाकिस्तान और बांग्लादेश से रूह अफज़ा की डिमांड बढ़ गई.

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भारत में इन दिनों रमजान के दिनों में लोकप्रिय शीतल पेय रूह अफज़ा गायब है. भारतीय बाजारों में इसका नामोनिशान तक नहीं है, लेकिन पाकिस्तान और बांग्लादेश के बाजारों में ये धड़ल्ले से बिक रहा है. बल्कि उन्हें भारत भेजने की डिमांड भी खासी जोर पकड़ रही है. पाकिस्तान में बिकने वाला रूह अफज़ा हू-ब-हू वही है और उन्हीं चीजों से बनती है जो भारत में तैयार होती हैं. उसका फार्मूला वही है. तो फिर ऐसा क्यों है.

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बल्कि हाल तो ये हो रहा है कि जबसे भारतीय बाजारों में हमदर्द की रूह अफज़ा गायब हुई है ये दोगुने से ज्यादा दामों में पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत पहुंचने लगी है. केवल यही नहीं पाकिस्तान और बांग्लादेश से ये विदेशों में भेजी जा रही है. निश्चित रूप से इससे पाकिस्तान को खूब फायदा हो रहा है. हैरानी हो सकती है कि अगर रूह अफज़ा भारत में गायब है तो ये पाकिस्तान और बांग्लादेश में कैसे बाजारों में जमकर बिक रही है और दिख रही है. इसका किस्सा काफी रोचक है.

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रूह अफज़ा का किस्सा पुरानी दिल्ली की इस कासिम गली के इस हवेली के दवाखाना से जुड़ा है. इस दवाखाने का नाम हमदर्द था. इसे हकीम अब्दुल मजीद चलाया करते थे. 1900 में यूनानी पद्धति की चिकित्सा वाला ये दवाखाना जब उन्होंने यहां खोला तो ये लोकप्रिय होने लगा. ये वो अपने नुस्खे पर दवा बनाया करते थे और रोगियों में देते थे. उसी जमाने में उन्होंने गर्मियों में शीतलता देने वाली एक खास दवा बनाई.

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जब ये दवा शीतल पेय के रूप में लोकप्रिय होने लगी तो उन्होंने इसे 1907 में बड़े पैमाने पर बाजार में बेचना शुरू किया. इसका नाम रखा गया रूह अफज़ा. रूह अफज़ा ने हकीम मजीद की किस्मत बदल दी. पुरानी दिल्ली की कासिम गली से निकलकर उन्होंने इसकी एक फैक्ट्री बनाई जहां उसका उत्पादन शुरू किया. साथ ही हमदर्द लेब्रोरेटरी नाम से कंपनी शुरू की. हमदर्द ब्रांड और रूह अफज़ा दोनों हिट होने लगे. बंटवारे से पहले ये देश के सबसे लोकप्रिय शरबत पेय के रूप में शुमार किया जाने लगा.

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जब 1947 में देश का बंटवारा हुआ तो हकीम मजीद के दो बेटों में बड़े बेटे तो भारत में रह गए, लेकिन छोटे बेटे कराची चले गए. उन्होंने कराची में 1948 में हमदर्द लेब्रोरेटरी शुरू की, जो पाकिस्तान में इस ब्रांड से रूह अफज़ा और दूसरे चिकित्सा प्रोडक्ट बनाने लगी. ये कंपनी भी पाकिस्तान में समय के साथ ना केवल बढ़ी बल्कि पाकिस्तान में बनने वाला रूह अफज़ा भी खासा लोकप्रिय हो गया और पाकिस्तान के बड़े ब्रांड्स में शुमार होने लगा.

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इसके बाद पाकिस्तानी हमदर्द ने बांग्लादेश में कंपनी की नींव डाली. हां इन तीनों देशों में बनने वाली ज्यादा दवाओं और रूह अफज़ा का फार्मूला एक ही था, जो तीनों जगह बनाए जाते थे. यही वजह है कि रूह अफज़ा भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी बाजारों में खूब बिकते हैं. जब भारत से रूह अफज़ा गायब हुआ तो पाकिस्तानी हमदर्द की चांदी हो गई. उसके मालिक ने एक ट्वीट करके लिखा भी हमारे रूह अफज़ा की डिमांड में अचानक काफी बढोतरी हो गई है. हमारा निर्यात बढ़ गया है.

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पाकिस्तान में रूह अफज़ा बनाने वाली हमदर्द कंपनी कई बार पाकिस्तान क्रिकेट टीम की आफिशियल स्पांसर भी रह चुकी है.

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    रूह अफज़ा बनाने वाले परिवार ने भारत-पाक-बांग्लादेश, तीनों के मार्केट पर जमा रखा है कब्जा

    भारत में इन दिनों रमजान के दिनों में लोकप्रिय शीतल पेय रूह अफज़ा गायब है. भारतीय बाजारों में इसका नामोनिशान तक नहीं है, लेकिन पाकिस्तान और बांग्लादेश के बाजारों में ये धड़ल्ले से बिक रहा है. बल्कि उन्हें भारत भेजने की डिमांड भी खासी जोर पकड़ रही है. पाकिस्तान में बिकने वाला रूह अफज़ा हू-ब-हू वही है और उन्हीं चीजों से बनती है जो भारत में तैयार होती हैं. उसका फार्मूला वही है. तो फिर ऐसा क्यों है.

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