भक्तिकालीन कवि कबीर का दोहा है कि ‘बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूरे.’ इस दोहे को पढ़कर ऐसा लग रहा है कि खजूर किसी काम का नहीं है. हकीकत यह है कि पूरे विश्व में खजूर का कारोबार हो रहा है और कई देश खजूर बेचकर मोटी कमाई कर रहे हैं. असल में खजूर में जो गुण हैं, वह अन्य किसी फल में नहीं मिलते हैं. इसके बावजूद आप खजूर तो खा लें, लेकिन इसके पेड़ से ‘दूर’ ही रहें. कारण यह है कि इसका पेड़ आपको गंभीर आर्थिक नुकसान पहुंचा सकता है और आप ‘कंगाली’ के कगार पर पहुंच सकते हैं.
खजूर के पेड़ और इसके फल का इतिहास हजारों साल पुराना है. किताबों की जानकारी के अनुसार इसकी खेती 4000 ईसा पूर्व इराक (मेसोपोटामिया) में हुई. इस सभ्यता में सूर्य, चंद्र, वायु आदि को देवता मानकर उनकी पूजा की जाती थी. इनके मंदिर के निर्माण में खजूर के पेड़ का प्रयोग किया जाता था. मिस्र की सभ्यता में भी खजूर का वर्णन है. वहां खजूर का इस्तेमाल वाइन बनाने के लिए किया गया. खजूर के तार भारत से भी जुड़े हुए हैं. देश के प्राचीन धार्मिक व आयुर्वेदिक ग्रंथों में खजूर का वर्णन है. वनस्पति शास्त्री इसे ताड़ की प्रजाति से जोड़ते हैं, जिसकी उत्पत्ति भारत में मानी जाती है.
आपको बता दें कि दुनिया के तीन प्रमुख धर्मों इसाई, मुस्लिम व यहूदी धर्म में खजूर व इसके वृक्ष को बहुत विशेष महत्व मिला है. ईसाई मानते हैँ कि गुड फ़्राइडे के तीसरे दिन यानी रविवार को ईसा मसीह दोबारा जीवित हो गए थे. उनके दोबारा जीवित होने की इस घटना को ईसाई धर्म के लोग ईस्टर दिवस या ईस्टर रविवार मानते हैं. ईस्टर खुशी का दिन होता है. इस पवित्र रविवार को खजूर इतवार (Palm Sunday) कहा जाता है. मुसलमानों के पवित्र ग्रंथ कुरान में खजूर का 22 बार उल्लेख किया गया है. ग्रंथ में हजरत मोहम्मद कहते हैं कि हर दिन सुबह सात खजूर खाने से कई तरह की बीमारियों से बचाव होता है. रमजान का रोजा खोलने में भी खजूर का विशेष महत्व है. यहूदी धर्म में सात पवित्र फलों का वर्णन किया गया है, उनमें खजूर भी एक है.
आजकल रमजान चल रहे हैं और खजूर की खूब डिमांड है. भारत में देसी खजूर से लेकिर सऊदी अरब, इराक, ईरान, मध्य एशिया देशों से आने वाले खजूर की खूब मांग है. इसकी सैकड़ों किस्में हैं और सब बिकती हैं. खजूर गुठली समेत, बिना गुठली समेत के अलावा ड्राईफ्रूट्स भरकर भी बेचा जाता है, इसलिए इसकी कीमत भी अलग-अलग है. मोटे तौर पर खजूर 100 रुपये से लेकर 3000 रुपये किलो तक बिकता है. खजूर की अजवा किस्म स्वाद में सबसे बेहतर मानी जाती है. इस्लाम में इसका धार्मिक महत्व है, इसलिए यह किस्म सबसे महंगी है.
खजूर बेहद गुणकारी है. आयुर्वेद ग्रंथ ‘चरकसंहिता’ के अन्नपानविधि अध्याय के फलवर्ग में इसे खर्जूरम् कहा गया है, जो स्वाद में मधुर व शीतल है. इसे वात-पित्त में लाभकारी बताया गया है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) के चीफ साइंटिस्ट डॉ. नवेद सबिर के अनुसार खजूर में अच्छी मात्रा में फाइबर डाइजेशन को ठीक रखता है. इसका सेवन कब्ज से बचा सकता है. यह एंटीऑक्सीडेंट भी है. लेकिन खजूर का अधिक सेवन मांसपेशियों में दर्द पैदा कर सकता है, क्योंकि इसमें पोटेशियम में मात्रा अधिक होती है. इसके अधिक सेवन से एलर्जी, पेट दर्द, गैस, पेट फूलने जैसी समस्या पैदा हो सकती है. गर्मियों के मौसम में खजूर का ज्यादा सेवन करने से वजन बढ़ सकता है. आपको बता दें कि खजूर में कैलोरी की मात्रा ज्यादा पाई जाती है जो वजन बढ़ाने का कारण बन सकती है.
दूसरी ओर खजूर के पेड़ की कहानी बड़ी ही अजीबो-गरीब है. वास्तुशास्त्री व ज्योतिषियों ने घर और आसपास इसके वृक्ष को लगाना अशुभ माना है. उनका मानना है कि खजूर का वृक्ष व्यक्ति और परिवार को जबर्दस्त आर्थिक नुकसान पहुंचाता है. वास्तुशास्त्री व ज्योतिषाचार्य श्रुति खरबंदा के अनुसार मशहूर कहावत है कि ‘आसमान से गिरे खजूर में अटके.’ यानी आकाश तत्व से चलते हुए जो वायु तत्व है वहां पर काम अटक जाते हैं. इस पेड़ के कारण घर में कमाने वाले इंसान के काम फंसते हैं और धन की हानि होती है. कंगाली भी आ सकती है. वास्तुशास्त्र में यह भी कहा गया है कि कोई भी पेड़ लगाओ, वह घर की हाइट से ऊंचा नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा कि ज्योतिषशास्त्र के अनुसार हिंदू धर्म में वेलपत्र के पेड़ की पूजा छोड़कर किसी भी कांटे वाले पेड़ की पूजा का विधान नहीं है. खजूर के पत्तों के किनारे कांटेदार होते हैं. कीकर की भी इसलिए पूजा नहीं की जाती. भारत की अन्य भाषाओं में खजूर के नाम- तमिल में पेरीचांपाझाम, तेलु्गु में खजूरा पांडु, कन्नड़ में एचालू, बंगाली में खेजूर, गुजराती में खजूर, मराठी में खारिक, उड़िया में खजूरी, इंग्लिश में Dates
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