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Shadi Shayari: 'इस तअल्लुक़ में नहीं मुमकिन तलाक़...' पढ़ें 'शादी' पर लिखे गए शेर

शादी शायरी (Shadi Shayari): कुछ लोगों के लिए शादी जन्मों का रिश्ता है. वहीं कई लोग ऐसे भी हैं जिनके लिए ये बंधन किसी उम्र कैद से कम नहीं. 'शादी' (Marriage) पर कई शायरों ने शेर-ओ-शायरियां लिखी हैं. पढ़ें, कुछ चुनिंदा शेर

01

एक हंगामे पे मौक़ूफ़ है घर की रौनक़ नौहा-ए-ग़म ही सही नग़्मा-ए-शादी न सही- मिर्ज़ा ग़ालिब

02

उट्ठी है जब से दिल में मिरे इश्क़ की तरंग शादी ओ ग़म हैं आगे मिरे दोनों एक रंग- शाह आसिम

03

अब आया ध्यान ऐ आराम-ए-जाँ इस ना-मुरादी में कफ़न देना तुम्हें भूले थे हम अस्बाब-ए-शादी में- मीर तक़ी मीर

04

मैं उस को देख के चुप था उसी की शादी में मज़ा तो सारा इसी रस्म के निबाह में था- मुनीर नियाज़ी

05

ये रोज़-मर्रा के कुछ वाक़िआत-ए-शादी-ओ-ग़म मिरे ख़ुदा यही इंसाँ की ज़िंदगानी है- अब्दुल हमीद अदम

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इस तअल्लुक़ में नहीं मुमकिन तलाक़ ये मोहब्बत है कोई शादी नहीं- अनवर शऊर (साभार- रेख़्ता)

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    Shadi Shayari: 'इस तअल्लुक़ में नहीं मुमकिन तलाक़...' पढ़ें 'शादी' पर लिखे गए शेर

    एक हंगामे पे मौक़ूफ़ है घर की रौनक़ नौहा-ए-ग़म ही सही नग़्मा-ए-शादी न सही- मिर्ज़ा ग़ालिब

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