नई दिल्ली के मंडी हाउस स्थित एलटीजी सभागार एक बार फिर ऐतिहासिक नाटक 'चंद्रगुप्त' के सफल मंचन का साक्षी बना. 'चंद्रगुप्त' नाटक का मंचन वरुण शर्मा के निर्देशन में थिएटर लीला एक्टिंग स्टूडियो द्वारा किया गया.
'चंद्रगुप्त' नाटक के प्रति लोगों की दिवानगी का आलम इस बात से लगाया जा सकता है कि एलटीजी सभागार दर्शकों से खचाखच भरा हुआ था. बहुत से लोग सभागार की सीढ़ियों पर बैठकर या किसी कोने में खड़े होकर नाटक का आनंद लेते हुए देखे गए.
थिएटर लीला एक्टिंग स्टूडियो के प्रमुख वरुण शर्मा ने बताया कि 'चंद्रगुप्त' नाटक की उनकी यह 40वीं प्रस्तुति है. देश के कई हिस्सों में वह इस नाटक का मंचन कर चुके हैं. उन्होंने बताया कि हर मंचन के बाद यह नाटक और ज्यादा निखरकर आता है.
चन्द्रगुप्त नाटक हिंदी के प्रसिद्ध नाटककार जयशंकर प्रसाद का प्रमुख नाटक है. जयशंकर प्रसाद ने 1931 में इस नाटक की रचना की थी. चन्द्रगुप्त नाटक मौर्य साम्राज्य के संस्थापक ‘चन्द्रगुप्त मौर्य’ के उत्थान की कथा है. नाटक में चाणक्य के शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य के उत्थान, उस समय के महाशक्तिशाली राज्य मगध के राजा धनानंद के पतन और सिकंदर के साथ युद्ध की कहानी कहता है.
चन्द्रगुप्त नाटक के प्रदर्शन की बात की जाए तो वेशभूषा, साउंड और लाइट का बहुत ही शानदार प्रदर्शन है. नाटक में युद्ध के बड़े ही सजीव दृश्य हैं, जो दर्शकों को आकर्षित करते हैं. लेकिन शिल्प की दृष्टि से इसके दृश्य इतनी तेजी से बदलते हैं कि दर्शक कहानी के सिरों को जोड़ नहीं पाता है कि दृश्य बदल जाता है. कहानी में वह संगठन, संतुलन और एकतानता की कमी दिखलाई देती है.
चन्द्रगुप्त नाटक में कलाकार की मेहनत दिखलाई पड़ती है. लेकिन चाणक्य बने मानस राज और मुख्य पात्र चंद्रगुप्त की भूमिका निभा रहे राहुल के संवाद में ठहराव और स्पष्टता नहीं होने के कारण कानों में फिसलते हैं. यहां 'धनानंद' बने संभव गुप्ता की एक्टिंग और संवाद अदायगी की तारीफ करनी होगी. नाटक के अंत में पात्र परिचय के समय जब धनानंद का परिचय कराया जाता है तो सभागार काफी देर तक तालियों से गूंजता रहता है.
चन्द्रगुप्त नाटक के अन्य पात्र सिंहरण की भूमिका में विषुराज, अमात्य राक्षस का रोल निभा रहे ईशान जैन, सिकंदर के रूप में शुभम जोशी, पर्वतेश्वर बने अनिल यादव, अलका की भूमिका में दिव्या पटेल, कल्याणी के रोल में काव्या सहित सभी कलाकारों की मेहनत प्रभावित करती है.
हिंदी रंगमंच की दुनिया में वरुण शर्मा एक चर्चित चेहरा हैं. वह थिएटर लीला नाम से एक थिएटर ग्रुप के संचालक हैं. वरुण ने जामिया मिलिया इस्लामिया से एक्टिंग में मास्टर डिग्री हासिल की है. वह पिछले 15 वर्षों से एक्टिंग, डायरेक्शन और नाट्य लेखन में सक्रीय हैं. 'सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक', 'औरंगजेब की आखिरी रात', 'चंद्रगुप्त', 'डेथ ऑफ ए सेल्समैन', 'उमराव जान' आदि उनके चर्चित नाटक हैं.
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