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PHOTOS: दर्शन करते ही तकदीर पलट देता है यह मंदिर, कभी इसे रास्ते से हटाना चाहते थे सिंधिया

ग्वालियर के सैकड़ों साल पुराने अचलेश्वर महादेव का नवरात्रि में महत्व बढ़ जाता है. इस मंदिर के नाम के पीछे भी एक अनोखी कहानी है. दरअस, अचलेश्वर महादेव का मंदिर सड़क के बीच में बना हुआ है. जब सिंधिया राजवंश ने ग्वालियर पर कब्जा जमाया, तब राजाओं की शाही सवारी इस रास्ते से निकलने लगी. लिहाजा, तत्कालीन राजा ने इस मंदिर को दूसरी जगह स्थापित करने के मकसद से शिवलिंग खुदवाया, लेकिन उसका छोर नही मिला.

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आखिर में राजाओं ने लोहे के जंजीरें बांधकर शिवलिंग को हाथियों से खिंचवाया. वे शिवलिंग हिला तक नहीं पाए. फिर, एक रात शिवजी ने सिंधिया राजा को सपना देकर कहा कि मैं अचल हूं. मुझे हटाने की कोशिश मत करो. उसके बाद सिंधिया राजवंश ने यहां एक भव्य मंदिर बनवाया और इस शिवलिंग का नामकरण 'अचलनाथ या अचलेश्वर महादेव के रूप में हुआ.'

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अचलेश्वर महादेव के बारे में कहा जाता है कि ये स्वयं-भू शिवलिंग हैं. करीब 750 साल पहले ये शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ था. बाद में यहां छोटा सा मंदिर बना दिया गया था. ग्वालियर पर कब्जा करने के बाद सिंधिया राजवंश ने 18वीं सदी में ग्वालियर को राजधानी बनाया. सिंधिया राजवंश ने राजकाज चलाने के लिए उस दौर में महाराजबाड़ा बनवाया. इसके साथ ही किले के नीचे जयविलास महल बनाया था.

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महाराजबाड़ा से जयविलास महल तक जाने वाले रास्ते में पेड़ के नीचे ये शिवजी का मंदिर था. सिंधिया राजवंश के राजाओं की सवारी इसी रास्ते से निकलती थी. जब इस मंदिर को रास्ते से हटाने के लिए गहराई में खुदाई की गई तो शिवलिंग निकलता चला गया. जब हाथियों ने इसे खींचना चाहा तो जंजीरें टूट गईं. आखिर में थक हारकर सिंधिया के सेनापति भी महल लौट गए.

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कहते हैं शिवजी का सपना आने के बाद राजा ने अपने खास लोगों को वाकया सुनाया. फिर अगले दिन राजा ने कारीगर बुलवाए और रास्ते पर स्थित मंदिर को भव्य बनवाया. लोगों ने इस शिवलिंग को अचलनाथ के नाम से पूजना शुरू किया. इस तरह ये शिव मंदिर अचलेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाने लगा.

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अचलेश्वर महादेव के अचल और अटल होने के चलते भक्तों की आस्था भी अटूट है. जो भक्त बाबा अचलनाथ के दरबार में आस्था के साथ मन्नत मांगता है, अपनी आस्था और भक्ति पर अटल रहता है बाबा अचलनाथ उन भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं. भक्त भी कहते हैं कि अचलनाथ को राजा, महाराजा या अंग्रेज हिला नहीं पाए थे. कई भक्तों तो ऐसे हैं जो ग्वालियर से बाहर चले गए लेकिन बाबा की भक्ति के चलते वापस अचलनाथ की नगरी में लौट आए.

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    PHOTOS: दर्शन करते ही तकदीर पलट देता है यह मंदिर, कभी इसे रास्ते से हटाना चाहते थे सिंधिया

    आखिर में राजाओं ने लोहे के जंजीरें बांधकर शिवलिंग को हाथियों से खिंचवाया. वे शिवलिंग हिला तक नहीं पाए. फिर, एक रात शिवजी ने सिंधिया राजा को सपना देकर कहा कि मैं अचल हूं. मुझे हटाने की कोशिश मत करो. उसके बाद सिंधिया राजवंश ने यहां एक भव्य मंदिर बनवाया और इस शिवलिंग का नामकरण 'अचलनाथ या अचलेश्वर महादेव के रूप में हुआ.'

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