ग्वालियर. महिलाओं के उत्थान एवं स्वच्छता को मिशन बनाकर काम कर रहे शहर के एक शिक्षक (कोचिंग सेंटर संचालक) को अब लोग पैडमैन के नाम से भी बुलाने लगे हैं. यह पैडमैन बीते 6 साल से ग्रामीण अंचलों में जाकर लोगों खासकर महिलाओं को स्वच्छता के मायने बता रहे हैं. साथ ही उन्हें सेनेटरी पैड के इस्तेमाल व उसके लाभ भी बताते हैं. उनके इस प्रयास को काफी सफलता भी हासिल हो रही है.
अमित ने बताया कि वह 6 माह के लिए किसी भी गांव को वहां के सरपंच व जन प्रतिनिधियों से बातचीत कर एक प्रकार से गोद ले लेते हैं. इसके बाद वह छह माह तक गांव में विभिन्न प्रकार की कार्यशाला आदि के माध्यम से महिलाओं को माहवारी के समय पैड का इस्तेमाल करने की जानकारी देते हैं. इसके साथ ही वे इन महिलाओं को पैड भी प्रदान करते हैं. जैसे ही इन क्रियाकलापों को महिलाएं अपने माहवारी के समय प्रयोग करने लगती हैं, तो वह वे सर्वे के माध्यम से इसकी पुष्टि करते हैं. इसके बाद वह अन्य किसी गांव की ओर बढ़ जाते हैं.
अमित ने बताया कि इस दौरान आने वाले खर्चे वे और उनके विद्यार्थी खुद ही उठाते हैं. उन्होंने बताया कि इस कार्य को वे माह के आखिरी 2 दिनों में करते हैं, ताकि अन्य दिनों विद्यार्थियों की पढ़ाई में कोई अवरोध ना हो. वहीं, जो विद्यार्थी उनके साथ जाने के इच्छुक होते हैं वह अल्टरनेट डे में अपने प्रोग्राम को सेट करते हैं. अमित ने बताया कि अब तक वे लगभग 8 गांव जिनमें बजरंगपुरा बड़ा, नीमचडोवा, गोबाई, बिलहटी, रामनगर और बेला आदि को गोद लेकर महिलाओं की समस्या पर काम कर चुके हैं.
ग्वालियर के नया बाजार में कोचिंग सेंटर चलाने वाले अमित ने बताया कि जब उन्होंने इस कार्य की शुरुआत की तो कई ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को सेनेटरी पैड के बारे में पता ही नहीं होता था. कई बार महिलाएं से बिस्किट का पैकेट तक समझ लेती थीं जिन्हें समझाना पड़ता था कि किस तरह से इस्तेमाल होगा. यह किसके लिए बनाया गया है.
अमित के मुताबिक, बातचीत में उन्हें पता चलता था कि माहवारी के समय महिलाएं अधिकांश घरों में पड़े गंदे कपड़े का प्रयोग, तो कई जगह सहरिया जनजाति में नारियल के जूट को सुखाकर उन्हें कपड़े में बांधकर भी माहवारी के समय प्रयोग किया जाता था. पैड इस्तेमाल करने के बाद महिलाएं काफी अच्छा महसूस कर रही हैं.
अमित ने बताया कि वर्तमान में लिंगानुपात में काफी अंतर देखने को मिल रहा है, इसलिए मन में विचार आया कि क्यों ना जब कोई बेटी पैदा हो तो उसका सम्मान किया जाए. बस फिर हफ्ते में एक दिन वे अस्पताल आदि स्थानों पर जहां बेटी का जन्म होता है पहुंच जाते हैं और बेटी को तिलक कर माला पहनाकर उसका स्वागत करते हैं. इसके साथ मिठाई बांट कर खुशी मनाते हैं. इसके साथ ही वह उस बेटी के परिजन को बेटी के जन्म संबंधी सभी योजनाओं की पूरी जानकारी भी देते हैं, ताकि को भी बेटी बोझ ना लगे. अमित के मुताबिक, सुकन्या योजना, प्रधानमंत्री योजना, लाड़ली लक्ष्मी योजना आदि सभी योजनाओं की जानकारी बेटी के परिजनों को प्रदान करते हैं, ताकि यदि कोई अशिक्षित भी है तो उसे भी इन योजनाओं का लाभ मिल सके.
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