ये हैं मंडला के नैनपुर के अमझर की प्राथमिक शाला के शिक्षक निर्मल हरदहा.जब वो 18 साल के थे तब उनकी बीमारी ने उनकी उंगलियों को बेजान कर दिया.कुछ दिन तो जिंदगी निराश रही.इन उंगलियों से कलम पकड़ना भी मुश्किल था.लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी.कोशिश की और आज बेजान उंगलियां खुशियों के रंग भरने लगीं.
निर्मल हरदहा अब कुशल चित्रकार हैं. अपनी शाला को उन्होंने नये रंग में रंग दिया है. शाला में जहां भी नज़र डालो हर तरफ खूबसूरत चित्रकारी है. अपनी इन बेजान उंगिलयों से उन्होंने स्कूल के हर कोने को संवारा है.
शिक्षक ने हर क्लास में उस क्लास की पढ़ाई से संबंधित चित्रकारी की है. और अब स्कूल की बाउंड्री पर आदिवासी संस्कृति की कला को बिखेर रहे हैं.बाउंड्रीवॉल पर आदिवासी आर्ट, बैगा आर्ट, और मंडला जिले की विरासत को उकेर रहे हैं.
निर्मल कहते हैं कोरोना काल की वजह से स्कूल बंद हैं. लेकिन जब स्कूल खुलने पर वो आएंगे तो उन्हें स्कूल नये रूप में दिखेगा.