अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की जोड़ी भारतीय राजनीति में राम-लखन की जोड़ी मानी जाती है. जनसंघ के जमाने से ही दोनों एक दूसरे के अनन्य सहयोगी बने रहे.
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 11 जून को किडनी, नली में संक्रमण, सीने में जकड़न और पेशाब की नली में संक्रमण होने के चलते एम्स में भर्ती कराए गए थे. आइए आपको बताते हैं भारतीय राजनीति में क्यों सबसे खास और अलग रहे हैं अटल बिहारी वाजपेयी. (file Photo).
उदारवादी चेहरा (सभी दलों में मान्य): अटल बिहारी वाजपेयी अन्य सभी दक्षिणपंथी नेताओं की तुलना में ज्यादा सेकुलर माने जाते रहे. उनकी प्रशंसा समूचा विपक्ष भी करता था. ये अटल बिहारी वाजपेयी के सेकुलर नेतृत्व का ही कमाल था कि राजग ने 23 दलों के साथ सरकार बनाई और अपना कार्यकाल भी पूरा किया.
संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी की गूंज: विदेश मंत्री के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी ने सन 1977 में पहली बार संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण दिया. ये देश के लिए गौरवपूर्ण क्षण था. जब देश की राजभाषा संयुक्त राष्ट्र संघ में गूंजी. ये वो एक यादगार लम्हा था जो इतिहास में हमेशा रहेगा.
पोखरन परमाणु परीक्षण: साल 1998 में पोखरन में परमाणु धमाका भारतीय इतिहास का सबसे गौरवपूर्ण क्षण है. वाजपेयी जी की अगुवाई में देश ने परमाणु धमाका किया और सीआईए तक को भनक नहीं लगी. ये वाजपेयी जी की हिम्मत की ही बात थी, कि उन्होंने तमाम अंतरराष्ट्रीय दबावों को दरकिनार कर दिया.
मुशर्रफ से हाथ मिलाना: भारत-पाकिस्तान में तनातनी के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी का पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ से हाथ मिलाना बेहद अहम लम्हा रहा. अटल बिहारी वाजपेयी के इस कदम से भारत-पाक संबंध को पुनर्जीवित किया.
जनसंघ की स्थापना: श्यामा प्रसाद मुखर्जी की अगुवाई में अटल बिहारी वाजपेयी भी जनसंघ की स्थापना के समय सन 1951 में जनसंघ के शुरुआती संस्थापक रहे. अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ के टिकट पर सन 1957 के चुनावों में तीन-तीन सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से एक साथ चुनाव लड़े। और बलरामपुर से संसद पहुंचे.
मुखौटा कहने पर गोविंदाचार्य का दमन: ये अटल बिहारी वाजपेयी के रूप का प्रमाण है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वो कभी गुस्सा नहीं होते थे. उन्होंने पार्टी के विचारकों में से एक रहे और कभी बीजेपी में नंबर-2 रहे केएन गोविंदाचार्य को एक झटके में पार्टी से बाहर निकाल दिया. दरअसल, गोविंदाचार्य ने अटल को मुखौटा बताते हुए लालकृष्ण आडवाणी को असली नेता बताया था. पार्टी से निकाले जाने के दो साल पर गोविंदाचार्य ने राजनीति से सन्यास ले लिया था.
अटल-आडवाणी यानी राजनीति के राम-लखन: अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की जोड़ी भारतीय राजनीति में राम-लखन की जोड़ी मानी जाती है. जनसंघ के जमाने से ही दोनों एक दूसरे के अनन्य सहयोगी बने रहे. पहली बार जब अटल बिहारी वाजपेयी पीएम बनें, तब आडवाणी पार्टी के अध्यक्ष थे, और बीजेपी को सत्ता दिलवाने के लिए उन्होंने अटल का नाम आगे किया, ताकि अटल की उदार क्षवि के साथ अन्य पार्टियां भी साथ आ सकें. आडवाणी की क्षवि तब कट्टर हिंदूवादी नेता की थी. हालांकि उन्होंने अटल की अलग क्षवि को लेकर कभी शिकायत नहीं की.
कार्यकाल पूरा करने की उपलब्धि: अटल बिहारी वाजपेयी पहले गैर-कांग्रेसी पीएम रहे, जिनकी सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया. इससे पहले भी वो दो बार पीएम बनें थे, लेकिन कार्यकाल पूरा नहीं कर सके थे. वाजपेयी की अगुवाई में ही 23 दलों से बनी एनडीए सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया.
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