रेगिस्तान का जिक्र आते ही जेहन में उभरती है सूखे और रेत के टीलों की तस्वीर, लेकिन कहते हैं न कि जब भगीरथ अपने प्रयासों से जमीन पर गंगा उतार सकते हैं, तो वैसे ही प्रयासों से रेगिस्तान में वह किया जा सकता है जिसकी कल्पना ही नामुमकिन हो. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है बाड़मेर के मांसती दाक्षायणी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष ने. उन्होंने मंदिर में 350 किस्मों के 4 हजार के करीब पौधे लगाए है जिनमें सबसे ज्यादा हैरान करता है कश्मीर का केसर.
बाड़मेर जिला मुख्यालय के रातानाडा इलाके में बने भगवान शिव की पहली पत्नी माता दाक्षायणी के मंदिर में साल 2014 में सार्वजनिक निर्माण विभाग से सेवानिवृत्त हुए वासुदेव जोशी पौधे लगाने के काम में जुट गए. उन्होंने सपना बना लिया था कि मंदिर की वाटिका में कुछ ऐसा कर दिखाएंगे जिसे देखकर दुनिया हैरान रह जाए. इन्होंने यहां स्थानीय पौधों की जगह अलग-अलग जगहों के पौधे लगाने का काम शुरू किया. आज 350 से अधिक किस्मों के 4 हजार से ज्यादा पौधे यहां लहलहाते नजर आते हैं.
मंदिर की वाटिका में कपूर, इलायची, लौंग, चंदन, अगरवुड, केसर, शीशम,अशोक, कृष्णवट, रुद्राक्ष सहित 350 से अधिक किस्म के पौधे हैं. इनमें सबसे ज्यादा अचरज में केसर का पौधा डालता है. मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष वासुदेव जोशी का कहना है कि पिछले 5 बरसों से वे जी जान से जुटे हुए हैं. लगातार मौसम में परिवर्तन की वजह से केसर नहीं लग रही थी. लेकिन इस साल उन्होंने कश्मीर से 1 किलो बल्ब करीब 1400 रुपये में खरीद कर बुआई की तो सफलता मिल गई है. रेतीली जमीन पर केसर का खिलना किसी अचरज से कम नहीं है. सबसे बड़ा प्रभाव यहां के वातावरण का रहता है.
कृषि वैज्ञानिक श्याम दास का कहना है कि जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश जैसे ठंडे प्रदेशो में उगने वाली केसर को बाड़मेर में उगाना किसी आश्चर्य से कम नहीं है. यकीनन इसके लिए बहुत मेहनत और जतन लगे होंगे. बाड़मेर में जिस तरह कृषि में नवाचार हो रहे है वैसे यह काम अपने आप में आश्चर्य करने वाला है. बाड़मेर के इस मंदिर की यह वाटिका सभी को यह बताती है कि कोशिश करके कुछ भी हासिल किया जा सकता है.
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