आरक्षण से जुड़ी मांगों को लेकर एक बार फिर गुर्जर समाज पटरियों पर है. गत चार दिन से गुर्जर समाज का एक धड़ा अपनी मांगों को लेकर दिल्ली मुबंई ट्रैक पर पड़ाव डाले हुये है. इससे रेल मार्ग अवरुद्ध हो रखा है. इस मार्ग की दर्जनों ट्रेनें डायवर्ट की जा चुकी हैं. पूर्वी राजस्थान के कई डिपो से रोडवेज बसों का संचालन बंद है.
इस बार भी आंदोलन कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के नेतृत्व में हो रहा है. बैंसला द्वारा इस बार सरकार से बातचीत से साफ इनकार करने के बाद पहले गुर्जर समाज एकजुट नजर आ रहा था. लेकिन, आंदोलन से ठीक पहले समाज का एक खेमा उनसे अलग हो गया. उसने सरकार से वार्ता कर मांगों पर सहमति पत्र तैयार कर लिया. बैंसला गुट अपनी पुरानी मांगों पर अड़ा हुआ है.
इस बार इस आंदोलन में दो नये पात्रों की एंट्री हुई है. इनमें एक गुर्जर समाज के नेता राज्य सरकार के खेल मंत्री अशोक चांदना हैं. चांदना इससे पहले गुर्जर आरक्षण के मसले में शामिल नहीं थे, लेकिन गत दिनों कांग्रेस सरकार और संगठन में हुये सियासी घमासान के बाद मंत्री पद से हटाये गये विश्वेन्द्र सिंह के बाद उनकी इस मसले के समाधान के लिये गठित कैबिनेट सब कमेटी में एंट्री हई है. लेकिन, आंदोलनकारी उनकी बात सुनने को तैयार नहीं हैं.
दूसरे नये पात्र के रूप में इस बार आंदोलन में कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के पुत्र विजय सिंह बैंसला सामने आये हैं. इस बार आंदोलन की अघोषित रूप से बागडोर लगभग उन्होंने ही थाम रखी है. यह बात दीगर है कि पृष्ठभूमि में किरोड़ी सिंह बैंसला ही हैं, लेकिन प्रदेश के कुछ इलाकों के गुर्जर समाज को इस बात पर आपत्ति है. वे विजय सिंह का नेतृत्व स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं. उनका आरोप है कि कर्नल अपने पुत्र को राजनीति में स्थापित करने में लगे हैं.
इससे पहले गत वर्ष सरकार की तरफ से प्रतिनिधि के तौर पर तत्कालीन मंत्री विश्वेन्द्र सिंह ने कमान संभाल रखी थी. उस समय सरकार और गुर्जर समाज के बीच मांगों पर सहमति बन गई थी, लेकिन बाद में कांग्रेस में मचे सियासी घमासान में सिंह का मंत्री पद से हटा दिया गया. वहीं गुर्जर समाज यह कहते हुये फिर पटरी पर आ गया कि सरकार ने उनकी मांगों को पूरा नहीं कर वादाखिलाफी की है.
पिछले आंदोलन दौर में सरकार के प्रशासनिक प्रतिनिधि के तौर पर मुख्य भूमिका में रहे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी नीरज के. पवन इस बार फिर अपने पुराने रोल में कायम हैं. सरकार ने आंदोलन खत्म कराने की जिम्मेदारी इस बार भी उनको ही सौंप रखी है. वे गत दो दिनों से हिंडौन में ही डेरा डाले हुये हैं.
सीएम अशोक गहलोत आंदोलन को लेकर लगातार कहते रहे हैं कि समस्या का समाधान बातचीत के जरिये निकाला जा सकता है. पटरी पर बैठना कोई समाधान नहीं है. गहलोत इस पूरे मसले को उलझाने का बीजेपी पर आरोप लगाते रहे हैं.
गुर्जर आरक्षण आंदोलन ने वर्ष 2005 के बाद बीजेपी की वसुंधरा राजे सरकार के समय जोर पकड़ा था. उसके बाद जोर पकड़ते-पकड़ते यह आंदोलन काफी उग्र और खूनी हो गया था. गुर्जरों के सरकार के साथ हुये टकराव और बाद में फैले उपद्रव में कई गुर्जर आंदोलनकारी मारे गये थे. उस समय बीजेपी सरकार का भी कहना था कि गुर्जरों की मांगों का समाधान कर दिया गया है, लेकिन कांग्रेस उन्हें भड़का रही है. कुल मिलाकर दोनों पार्टियां इस मसले के लिये एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाती रही है. लेकिन इसका स्थायी समाधान अभी तक नहीं निकल पाया है और गुर्जर अभी तक पटरी पर ही बैठे हैं.