Mystery of Kuldhara village: आपने राजस्थान (Rajasthan) के भानगढ़ किले (bhangarh fort horror story) के बारे में सुना होगा, जहां रात में जाने में लोगों की रूह कांपने लगती है. आज हम आपको इससे भी खौफनाक, सुनसान और डरावने गांव के बारे में बताएंगे, जिसे शापित गांव कहा जाता है. इस रहस्यमयी गांव (kuldhara village history) में महिलाओं की बात करने, उनकी चूड़ियों और पायलों की छम छम तो सुनाई देती है, लेकिन कोई दिखाई नहीं देता. इस रूहानी ताकतों के रहस्यमय संसार में 18वीं सदी का वो दर्द बावस्ता है, जिससे पालीवाल ब्राह्मण (paliwal brahmin history) गुजरे थे.
दिन की रोशनी में यहां सबकुछ इतिहास की मटमैली-सी किसी कहानी जैसा लगता है. जैसे किसी फिल्म निर्माता ने फ्लैशबैक के लिए भूतहा गांव का सैट लगाया हो, लेकिन शाम ढलते ही कुलधरा गांव के दरवाजे बंद हो जाते हैं. हम बात कर रहे हैं राजस्थान के जैसलमेर से 18 किमी दूर कुलधरा गांव की. कुलधरा गांव को अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे श्रापित गांव, भूतिया गांव, हांटेड विलेज, भूतों का गांव, भुतहा गांव, प्रेतवाधित गांव, रहस्यमई गांव, ऐसे बहुत सारे नामों से इसे जाना जाता है.
यह गांव पिछले पौने दो सौ सालों से वीरान पड़ा है. यह एक ऐसा गांव है जो रातों रात वीरान हो गया और सदियों से लोग आजतक नहीं समझ पाए कि आखिर इस गांव के वीरान होने का राज क्या था. कुलधरा गांव के वीरान होने को लेकर एक अजीबोगरीब रहस्य है. दरअसल, दशकों पहले कुलधरा खंडहर नहीं था, बल्कि आसपास के 84 गांव पालीवाल ब्राह्मणों से आबाद हुआ करते थे. लेकिन फिर जैसे कुलधरा को किसी की बुरी नजर लग गई, वो शख्स था रियासत का दीवान सालम सिंह. जिसकी गंदी नजर गांव कि एक खूबसूरत लड़की पर पड़ गयी.
अय्याश और जालिम सालम सिंह उस लड़की के पीछे इस कदर पागल था कि बस किसी तरह से उसे पा लेना चाहता था. उसने इसके लिए ब्राह्मणों पर दबाव बनाना शुरू कर दिया. हद तो तब हो गई कि जब सत्ता के मद में चूर उस दीवान ने लड़की के घर संदेश भिजवाया कि अगर अगले पूर्णमासी तक उसे लड़की नहीं मिली तो वह गांव पर हमला करके लड़की को उठा ले जाएगा. कुलधरा गांव की चौपाल पर पालीवाल ब्राह्मणों की बैठक हुई और 5000 से ज्यादा परिवारों ने अपने सम्मान के लिए रियासत छोड़ने का फैसला ले लिया. फिर कुलधरा कुछ यूं वीरान हुआ, कि आज परिंदे भी उस गांव की सरहदों में दाखिल नहीं होता. कहते हैं गांव छोड़ते वक्त उन ब्राह्मणों ने इस जगह को श्राप दिया था कि अब यह भविष्य में कभी आबाद नहीं हो पाएगा.
बदलते वक्त के साथ 82 गांव तो दोबारा बस गए, लेकिन दो गांव कुलधरा और खाभा तमाम कोशिशों के बाद भी आजतक आबाद नहीं हुए हैं. यह गांव अब भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में हैं, जिसे दिन की रोशनी में सैलानियों के लिए रोज खोल दिया जाता है. कहा जाता है कि यह गांव रूहानी ताकतों के कब्जे में है. टूरिस्ट के मुताबिक यहां रहने वाले पालीवाल ब्राह्मणों की आहट आज भी सुनाई देती है. उन्हें वहां हर पल ऐसा अनुभव होता है कि कोई आसपास चल रहा है. बाजार में चहल-पहल की आवाजें आती हैं. महिलाओं के बात करने और उनकी चूड़ियों और पायलों की आवाज हमेशा ही आती रहती है. रात में इस गांव में जाने की कोई हिम्मत नहीं करता है.
माना जाता है कि कुलधरा गांव में एक मंदिर है जो आज भी श्राप से मुक्त है. यह वही मंदिर है जहां पंचायत कर पालीवाल ब्राह्मणों ने गांव छोड़ने का फैसला लिया था. एक बावड़ी भी है जो उस दौर में पीने के पानी का जरिया था. एक खामोश गलियारे में उतरती कुछ सीढ़ियां भी हैं, कहते हैं शाम ढलने के बाद अक्सर यहां कुछ आवाजें सुनाई देती हैं. गांव के कुछ मकान हैं, जहां रहस्यमय परछाई अक्सर नजरों के सामने आ जाती है. दिन की रोशनी में सबकुछ इतिहास की किसी कहानी जैसा लगता है, लेकिन शाम ढलते ही कुलधरा के दरवाजे बंद हो जाते हैं.
इतिहासकारों के मुताबिक, पालीवाल ब्राह्मणों ने अपनी संपत्ति, जिसमें भारी मात्रा में सोना-चांदी और हीरे-जवाहरात थे, उसे जमीन के अंदर दबा रखा था. यही वजह है कि जो कोई भी यहां आता है वह जगह-जगह खुदाई करने लग जाता है. इस उम्मीद से कि शायद वह सोना उनके हाथ लग जाए. यह गांव आज भी जगह-जगह से खुदा हुआ मिलता है.
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