राजू ठेहट और बलबीर बानूड़ा-आनंदपाल के बीच दोस्ती, दुश्मनी और गैंगवार की कहानी को समझने के लिए हमें 1990 के दशक में जाना होगा. दरअसल, ठेहट ने 1995 में जुर्म की दुनिया में कदम रखा, यानि वह आनंदपाल से भी पहले जयराम की द्निया में आ गया था. ठेहट सबसे पहले छात्र नेता गोपाल फोगावट के संपर्क में आया था. जल्द ही उसने अपने फोगावट का भरोसा जीत लिया और शराब का अवैध धंधा करने लगा. इसी बीच उसकी मुलाकात बलबीर बानूड़ा से हुई. बानूड़ा दूध का कारोबार करता था लेकिन राजू ठेहट ने उसे अपने साथ शराब के धंधे में ले गया. दोनों साथ काम करने लगे. उन्हीं दिनों सीकर में भेभाराम भी शराब के अवैध कारोबार से जुड़ा था. राजू ठेहटऔर बलबीर बानूड़ा ने 1998 में सीकर में ही मिलकर भेभाराम की दिनदहाड़े हत्या कर दी. यहीं से सीकर में गैंगवार की शुरुआत हुई जो अब तक जारी है.
1998 से लेकर 2004 तक राजू ठेहट और बलबीर बानूड़ा साथ रहे और शराब के अवैध कारोबार में खूब पैसा कमाया. 2004 में वसुंधरा राजे सरकार ने पहले शराब ठेकों के लिए लॉटरी सिस्टम निकाले जिसमें जीण माता इलाके की शराब दुकान इन दोनों को मिल गई. बलबीर बानूड़ा का साला विजयपाल शराब की दुकान पर सेल्समैन के तौर पर काम करने लगा. विजयपाल दोनों को हिसाब देता था. इसी बीच, हिसाब-किताब को लेकर विजयपाल की राजू ठेहट के बीच में ठन गई. दोनों के बीच में झगड़ा होने पर राजू ठेहट ने विजयपाल की अपने साथियों के साथ मिलकर हत्या कर दी. बस यहीं से बानूड़ा और ठेहट की दोस्ती दुश्मनी में बदल गई. बलबीर ने साले की हत्या का बदला लेने के लिए आनंदपाल से हाथ मिला लिया.
राजू ठेहट ताकतवर था और उसे गोपाल फोगावट का पूरा समर्थन हासिल था. बलबीर बानूड़ा अपने साले की मौत के बदला की आग में जल रहा था. ऐसे में उसने गैंगस्टर आनंदपाल से दोस्ती कर ली जो कि नागौर के सांवराद का रहने वाला था. दोनों ने मिलकर शराब से लेकर अवैध खनन का कारोबार शुरू किया और अपनी गैंग को मजबूत बनाने लगे. साल 2006 में बलबीर और आनंदपाल ने मिलकर सीकर जाट सभा के अध्यक्ष गोपाल फोगावट की फिल्मी स्टाइल में हत्या कर दी. फोगावट एसके अस्पताल के पास बनी एक टेलरिंग शॉप पर कपड़े लेने गया था. जैसे ही ट्रायल रूम में घुसा, अचानक बोलेरो में सवार होकर आए बदमाशों ने उस पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी. बाद में बानूड़ा को गोपाल फोगावट हत्याकांड में उम्रकैद की सजा भी हुई.
फोगावट की हत्या के बाद आनंदपाल गैंग और मजबूत हो गई. दोनों का खौफ बढ़ता गया. 2006 में बानूड़ा ने आनंदपाल के साथ मिलकर नागौर के डीडवाना में जीवण गोदारा की हत्या कर दी. दोनों के बीच राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई जारी थी. राजू ठेहट और आनंदपाल गैंग के बीच में राजस्थान के कई हिस्सों में कई बार फायरिंग हुई. साल 2012 में तीनों को राजस्थन पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. इसी बीएच बलबीर की गैंग से सुभाष बराल भी जुड़ गया. उसने सीकर जेल में 26 जनवरी 2013 को राजू ठेहट पर फायरिंग कर दी थी. राजू के सिर में गोली लगी जोकि निकाली नहीं जा सकी.
राजू ठेहट पर सीकर जेल में हुई फायरिंग के बाद दोनों गैंगों को अलग-अलग जेल में शिफ्ट किया गया. आनंदपाल और बलबीर बानूड़ा को बीकानेर जेल में शिफ्ट कर दिया गया. गौरतलब बात यह है कि राजू ठेहट का भाई ओमा ठेहट का साला जयप्रकाश और उसका दोस्त रामपाल जाट भी उस दौरान बीकानेर जेल में ही थे. बात 24 जुलाई 2014 की है जब जयप्रकाश ने बीकानेर जेल में बलबीर बानूड़ा और आनंदपाल पर हमला कर दिया. फायरिंग में बलबीर की मौत हो गई लेकिन आनंदपाल बच गया. जेल में कैदियों के बीच में मारपीट हो गई. आनंदपाल ने अन्य कैदियों के साथ मिलकर पास जयप्रकाश और रामपाल को मार डाला.
बलबीर बानूड़ा की बीकानेर जेल में हत्या के बाद ठेहट गैंग का हौंसला बढ़ गया. हालांकि आनंदपाल ने हार नहीं मानी. वह पुलिस के लिए लगातार चुनौती बना रहा. बलबीर बानूड़ा के बेटे सुभाष बानूड़ा, भतीजे पवन बानूड़ा भी उसकी गैंग से जुड़ गए. इसी बीच राजस्थान एसओजी ने आईजी दिनेश एमएन के नेतृत्व में आनंदपाल का 24 जून 2017 को चूरू के मालासार गांव में एनकाउंटर कर दिया. आनंदपाल 2015 को जब नागौर जिले के डीडवाना कोर्ट में पेशी के लिए ले जाया गया था तो वापसी के दौरान पुलिस के वाहन पर फिल्मी स्टाइल में हमला करके उसके भाई विक्की ने उसे पुलिस के चंगुल से छुड़वा लिया था. 2017 में आनंदपाल का करीबी दोस्त देवेंद्र उर्फ गट्टू को पुलिस ने सिरसा से पकड़ा था. गट्टू ने पुलिस को आनंदपाल के ठिकाने की जानकारी दी थी.
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