यदि हौसला हो तो सपनों की उड़ान भरने के लिए पंख अपने आप लग जाते हैं. फिर उसके सामने दिव्यांगता जैसी बाधा बहुत छोटी नजर आती हैं. कुछ ऐसी ही मिसाल पेश की है एमपी की एक बेटी ने जो पैरों से भले ही लाचार हो लेकिन अपने हौसलों के दम पर मुसीबतों का डटकर मुकाबला करते हुए वो आज डिप्टी कलेक्टर बन गई है. इस सफलता की खुशी जितनी इस नई डिप्टी कलेक्टर के परिवार को है, उतना ही खुश उसका पूरा गांव है.
बैतूल के छोटे से गांव सोहागपुर में एक किसान की दिव्यांग बेटी रजनी वर्मा ने एमपीपीएससी 2012 की परीक्षा पास कर डिप्टी कलेक्टर बनते
हुए दूसरों के लिए एक मिसाल कायम की है. ये मुकाम हासिल करने में रजनी ने कई परेशानियों का सामना किया.
बचपन में पोलियों ने रजनी को पैरों से लाचार बना दिया. लेकिन हमेशा मुस्कुराते रहने वाली रजनी ने अपने जीवन में इस कमी को कभी भी
रुकावट नहीं बनने दिया. 12वीं से लेकर कॉलेज तक की पढ़ाई उसने हमेशा फर्स्ट क्लास डिवीजन से पास की.
12वीं पास करने के बाद उसने संविदा शिक्षक की परीक्षा दी और उसे पास करते हुए अपने ही गांव के शासकीय स्कूल में पढ़ाने लग गई. इसके बाद अपने जीजाजी के कहने पर उसने प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी शुरू की और फिर 2012 में एमपीपीएसी की परीक्षा देते हुए उसके प्री और मेंस एग्जाम पास किए और फिर शुरू हुई रजनी की मुश्किलें.
2012 के एग्जाम में पेपर लीक का मुद्दा उठा और मामला कोर्ट पहुंच गया, जिसके बाद इंटरव्यू पर रोक लगा दी गई. रोक लगने के कारण रजनी भी इंटरव्यू नहीं दे सकी. इस बीच रजनी ने 2013 की परीक्षा के लिए तैयारी शुरू कर दी और उसका प्री एवं मेंस भी क्लियर कर लिया. लेकिन इस बार इंटरव्यू में कम नंबर मिलने से वो आगे नहीं बढ़ पाई.
रजनी ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी और 2014 के एमपीपीएसी परीक्षा के लिए तैयारी शुरू कर दी. इस बीच उसके साथ हादसा हो गया और रजनी असंतुलित होकर बाथरूम में फिसल गई. गिरने के कारण रजनी के उसी पैर में फ्रेक्चर आ गया, जिसमें उन्हें पोलियो था. इस कारण दर्द से तड़पती रजनी को दो मेजर ऑपरेशन करवाने पड़े.
इस सब के बावजूद रजनी रुकी नहीं और 2015 में प्री एग्जाम पास कर मेंस की परीक्षा दी जिसके नतीजे आने बाकी हैं. 2016 में कोर्ट ने
2012 में हुई एमपीपीएससी परीक्षा पास करने वालों के लिए इंटरव्यू करने के लिए कहे, जिसे रजनी ने अच्छे नंबर से पास किया और उन्हें
डिप्टी कलेक्टर की पोस्ट दे दी गई.
दर्द और मुश्किलों के बीच अपनी बेटी को सफलता पाते देख रजनी की मां रामशीला वर्मा काफी गर्व महसूस करती हैं. उन्होंने बताया कि
आत्मनिर्भर बनने के लिए रजनी ने कोई कसर नहीं छोड़ी.
रजनी ने कोचिंग जाने के लिए दो पहिया वाहन चलाना तक सीखा, जिसमें सपोर्ट के लिए दो अतिरिक्त पहिए लगे हुए हैं. इसी गाड़ी को लेकर रजनी सुबह पांच बजे गांव से बैतूल शहर कोचिंग पढ़ने जाती थी, जिसमें करीब एक घंटा लग जाता था, लेकिन रजनी ने कभी भी शिकायत नहीं की.
वहीं रजनी के जीजा विवेक वर्मा का भी मानना है कि रजनी ने जो सफलता हासिल की है वो उसकी हिम्मत, लगन और मेहनत का नतीजा है.
विवेक वर्मा की मानें तो उन्हें शुरू से ही लगता था कि रजनी की जगह स्कूल में नहीं बल्कि कहीं और है, जिसे रजनी ने डिप्टी कलेक्टर बन कर साबित भी कर दिया.