दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने हाल ही में साहिल और रिद्म नाम के दो स्टूडेंट्स को पकड़ा है जो इंटरनेट के जरिए ड्रग सप्लाई करते थे, ये लोग इंटरनेट पर डार्क वेब का इस्तेमाल करके अमेरिका और कनाडा से ड्रग्स मंगवाते थे और बेचते थे. इसके भुगतान के लिए वे बिटकॉइन का इस्तेमाल करते थे. अब आपके भीतर एक सावल उठ रहा होगा कि आखिर ये डार्क वेब क्या है और इसके जरिए भला कोई ड्रग्स जैसी पाबंदी वाली चीज कैसे मंगवा सकात है. तो चलिए हम आपको बताते हैं कि आखिर ये इंटरनेट की अंधेरी दुनिया है क्या...
इंटरनेट की अंधेरी मंडी- बॉलीवुड फिल्में देखकर और दुनिया की सुनकर लगता है कि पृथ्वी पर ऐसा कुछ नहीं जो गूगल, अमरीका और ब्रिटेन की ख़ुफ़िया एजेंसियों से छिपा हो. लेकिन ये गलत है. इंटरनेट का एक हिस्सा ऐसा भी है, जो दुनिया की नज़रों से ओझल है. इंटरनेट के इस स्याह पाताल को कोई ‘डार्क वेब’ कहता है तो कोई ‘डीप वेब’ जहाँ आप भी जा सकते हैं. यहाँ अवैध हथियारों और ड्रग्स के सौदे होते हैं. यहाँ आपकी बेहद निजी जानकारी से लेकर चाइल्ड पोर्न तक सबकुछ मंडी के माल की तरह बोली लगाने के लिए सामने पड़ा है.जिसे आप इंटरनेट का संसार मानते हैं वो केवल चार फ़ीसदी है. बाक़ी 96 फ़ीसदी दुनिया डार्क है.
चंद रुपयों में लगती है पर्सनल डेटा की बोली- साइबर सिक्यॉरिटी फर्म Kaspersky Lab ने हाल ही में खुलासा किया था कि लोगों के पर्सनल डीटेल्स को डार्क वेब पर सिर्फ 3,500 रुपये में बेचा जा रहा है. इन डीटेल्स में लोगों के सोशल मीडिया अकाउंट्स के पासवर्ड, बैंक डिटेल्स और क्रेडिट कार्ड से जुड़ी जानकारी शामिल है.
इंटरनेट की तीन परतें, सरफेस, डीप और डार्क वेब- सरफेस वेब को हम सर्च इंजन के ज़रिए देख सकते हैं. एक्सेस कर सकते हैं. जब से पहला ब्राउज़र बना तब से सरफेस वेब, वर्ल्ड वाइड वेब का हिस्सा है. यानी जो भी सर्च इंजन से दुनिया खोज सकती है, वह सरफेस वेब है. इसके बाद आती है बारी डीप वेब की, साल 2001 में कम्प्यूटर साइंटिस्ट माइकल के बर्गमैन ने 'डीप वेब' टर्म इजाद की. डीप वेब का कॉन्टेंट सर्च नहीं कर सकते. इसका कॉन्टेंट HTML फॉर्म में छिपा रहता है. 2015 में अमेरिकी फ़िल्ममेकर एलेक्स विंटर ने 'डीप वेब' नाम की एक डॉक्यूमेंट्री भी बनाई थी. डेढ़ घंटे की इस डॉक्यूमेंट्री में डीप वेब इस्तेमाल करने वालों का इंटरव्यू लिया गया था और दिखाया गया था कि कैसे यूज़र्स डीप वेब की रहस्यमयी दुनिया में जाते हैं. डीप वेब में कई वेबसाइट छिपी हैं. इन्हें एक्सेस करने के लिए स्पेशल ब्राउज़र डकडकगो की ज़रूरत होती है. यहां ड्रग्स की ख़रीद-फ़रोख्त और ऐसे ही कई ग़ैरक़ानूनी व्यापार बेखटके चलते हैं.
डार्क वेब- तीसरी या अंतिम परत है डार्क वेब, जो अदृश्य है. यह डीप वेब से भी नीचे है. यह वर्ल्ड वाइड वेब का अँधेरा गटर है. यहाँ कोई भी मुंह उठाए क्रोम या मोज़िला के ज़रिये नहीं पहुँच सकता. डार्क वेब तक स्पेशल एक्सेस के ज़रिए ही पहुँचा जा सकता. यहां हर चेहरा नकाब में हैं. इस बाज़ार में आने-जाने वाले हर आदमी की जानकारी छिपी रहती है. डार्क वेब तक पहुँचने के लिए ख़ास सॉफ्टवेयर चाहिए. ये सॉफ्टवेयर हर एक्टिविटी को काली परतों में रखते हैं, लेकिन नौसिखिए पकड़े भी जाते हैं. डार्क वेब तक पहुँचना बेहद ख़तरनाक है. इस बाज़ार में आने-जाने वाले अगर कहीं रास्तों में पकड़े गए तो दुनिया की सरकारें उन्हें मुजरिम मान लेती हैं और वैसा ही सुलूक भी करती हैं.
डार्क वेब में घुसने के पहले ये पढ़ें- इंटरनेट पर डीप और डार्क वेब में जाने वालों के क़िस्से Reddit जैसी जगहों पर मौजूद हैं. इनमें मानव मांस की रेसिपी से लेकर, क़त्ल की सुपारी, ड्रग्स, हथियारों और आपके आधार, बैंक अकाउंट या पैन नंबरों के नीलामी होती हैं. एक रेडिट यूज़र के मुताबिक़, जैसे ही वो डीप वेब पर गया तो दूसरी तरफ़ से किसी ने उसे उसके सरनेम से पुकारा. इसके बाद उसने कई दिन तक इंटरनेट इस्तेमाल करना छोड़ दिया. इसी तरह एक और रेडिट यूज़र का कहना है कि डार्क वेब पर जाते ही उसे किसी अज्ञात नंबर से कॉल आई और दूसरी तरफ़ से किसी ने कुछ नहीं कहा. कुछ देर बाद उसकी स्क्रीन पर ब्लैक कलर में फ्लैश हुआ 'We can see you'. डार्क वेब पर 'हिटमैन' या सुपारी लेकर क़त्ल करने वाले भी हैं. एक रेडिट यूज़र ने अपने अनुभव में लिखा 'जैसे ही मैं डार्क वेब पर गया वहां एक वेबसाइट पर हिटमैन का विज्ञापन फ़्लैश हुआ. उसकी सर्विस के लिए बिटकॉइन में पैसे चुकाने थे. वह आम लोगों, पुलिस वालों और नेताओं को मारने की फ़िरौती ले रहा था.'
कहां से हुआ जन्म? - डार्क वेब अमेरिकी सरकार की देन है. नब्बे के दशक में अमेरिकी सेना ने जासूसी के लिए इसे बनाया था. डार्क वेब को इसलिए बनाया गया था कि सरकारी जासूस गुमनाम तौर पर सूचनाएं ले-दे सकें. यह साफ़ है कि इसे बनाने का मक़सद दूसरे देशों की जासूसी करना था. लेकिन अमरीका का यह हथियार अमरीका को भी महंगा पड़ा. जूलियन अंसाज विकीलीक्स को डार्क वेब पर ही चलाते हैं. अमरीकी सेना ने यहां तक जाने के लिए Tor टेक्नोलॉजी विकसित की. कुछ ही वक़्त में Tor को पब्लिक डोमेन में रिलीज़ कर दिया गया, ताकि इसका इस्तेमाल सार्वजनिक हो सके. Tor के ज़रिए ही डार्क वेब तक पहुँचा जा सकता है. इस वक़्त Tor पर 30 हज़ार से ज़्यादा अदृश्य वेबसाइट हैं.
क्या है Tor?- Tor एक सॉफ्टवेयर है, जो यूज़र्स की पहचान और इंटरनेट एक्टिविटी को ख़ुफ़िया एजेंसियों की नज़रों से बचाता है. यानी इसके ज़रिए इंटरनेट एक्टिविटी को ट्रेस नहीं किया जा सकता. लोग इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल अपना आईपी एड्रेस छिपाने के लिए करते हैं. Tor पर सर्फ़िंग के दौरान आप किसी यूज़र की सोशल मीडिया पोस्ट, ऑनलाइन एक्टिविटी, सर्च हिस्ट्री, वेबमेल किसी भी चीज़ का पता नहीं लगा सकते.
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