इटावा. नए साल के जश्न पर बड़ी तादाद में पर्यटक विश्व प्रसिद्ध इटावा सफारी पार्क (Etawah Safari Park) को देखने के लिए उमड पडे. भारी भीड को देखते हुए सफारी प्रबंधन को पहली बार पुलिस बल की भी मदद लेनी पड़ी. नए साल के जश्न पर यह बात भी खास देखने को मिली लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग का कतई ख्याल नहीं रखा. इस बात की शिकायत भी कई पर्यटकों की ओर से की गई है.
शुक्रवार सुबह से ही इटावा सफारी पार्क में बड़ी तादाद में पाठकों का पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया था. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान से बड़ी तादाद में पर्यटक इटावा सफारी पार्क नए साल के जश्न के तौर पर भ्रमण करने आये.
नए साल के जश्न पर जिस तरह की भीड़ इटावा सफारी पार्क में देखी गई, उससे ऐसा प्रतीत हुआ कि जैसे इटावा सफारी पार्क की ओपनिंग आज के ही दिन हुई है. एक-एक परिवार के 15 से लेकर 20 सदस्य तक इटावा सफारी पार्क में बच्चों के साथ पहुंचे हुए थे. कई परिवार तो ऐसे रहे जो पहली दफा इटावा सफारी पार्क आए. सफारी प्रबंधन ने पर्यटकों के लिए 5 बसों का विशेष इंतजाम किया हुआ था. वैसे सफारी में दो बसें सामान्यतया रहती हैं लेकिन नए साल के जश्न के तौर पर पर्यटकों की बड़ी संख्या को देखते हुए 5 बसों का इंतजाम किया गया था.
मथुरा के रहने वाले रोहित चौधरी नये साल पर सफारी को देखने के बाद बेहद गदगद नजर आए. उनका कहना है कि सफारी इतना शानदार बना हुआ है, जितनी भी इसकी तारीफ की जाए उतनी ही कम है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से इटावा सफारी पार्क देखने आए शिवम का कहना है कि इटावा सफारी पार्क के बारे मे पहले से सुन रख था, इसी कारण आज नये साल पर इटावा सफारी पार्क को देखने के इरादे से आए. सफारी बहुत ही शानदार बना हुआ है यहां दूसरे अन्य वन्य जीव तो देखने के मिल रहे लेकिन शेरों को देखने को मिलता तो आंनद कुछ और ही आता. लखनऊ से आईं रेनू भी सफारी को देखने के बाद अपने आप को आनंदित महसूस कर रही हैं. उनका कहना है कि सफारी पार्क देखकर बेहद गदगद महसूस कर रही हैँ.
इटावा सफारी पार्क के उपनिदेशक सुरेश चंद्र राजपूत, रेजंर विनीत सक्सेना सफारी के कई अफसरों के साथ पर्यटकों को सफारी में घुमाने में लगे रहे. बता दें पिछले साल 24 नंबवर को आम पर्यटकों के अवलोकन के लिए खोला गया बीहड़ों में स्थापित इटावा सफारी पार्क चंबल की नई पहचान बन गया है.
यहां पर देश-विदेशी पर्यटकों का अधिकारिक तौर पर आना शुरू हुआ है. फिशर वन इटावा में आजादी से पहले तैनात रहे अंग्रेज अफसरों के लिए मनोरंजन का खासा स्थान बना रहा है. पहले इस इलाके में पानी को रोकने के लिए एक बड़ा बांध बनाया गया था. यह बांध अब पूरी तरह से टूट कर ध्वस्त हो चुका है. फिशरवन अंग्रेज अफसरों की यह शिकारगाह रही.
यहां पर इटावा के महाजन लोग अंग्रेज अफसरों के लिए हिरन, सांभर, चीतल और तेदुओं को पहले शिकारियों के जरिए पकड़वाकर अंग्रेज हुक्मरानों के सामने उनके शिकार के लिए पेश किए जाते थे. फिर अंग्रेज गोली से उनका शिकार करके खुश हुआ करते थे. जानवरों के मरने के बाद उसके मांस को वही पर पकाकर खाने का क्रम भी अंग्रेज अफसर अपने परिवार के साथ किया करते थे.
दो सौ साल तक उत्तर भारत में सहजता से पाया जाने वाला एशियाटिक लायन (भारतीय शेर) अब मुख्य रूप से केवल गुजरात के गिर के जंगलों में ही बचा है. वहां भी स्थान की तुलना में इनकी संख्या अधिक हो चुकी है. जो उनके स्वाभाविक विकास के लिए ठीक नहीं है. इस प्रकार एक अन्य प्राकृतिक आश्रय स्थल इस वन्य जीव के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है. इटावा के बीहडी क्षेत्र को इसलिए चुना गया था क्योंकि इसकी वनस्पतियों और वन्य स्थिति में गिर के जंगल से काफी समानता है.
इटावा सफारी पार्क मे हिरन, काले हिरन, भालू और सांभर को लोग देख पा रहे हैं लेकिन शेरो को देखने का आंनद लोग फिलहाल नही उठा पा रहे हैं क्योंकि तकनीकी कारणो के चलते लायन सफारी अभी नही खोली जा पा रही है, जिसके जल्द से जल्द खुलने की उम्मीद जताई जा रही है. इटावा सफारी पार्क में इस समय 18 बब्बर शेर, 6 लैपर्ड, 3 भालू, 66 ब्लैक बक, 12 साभार और 37 डियर हैं.