इटावा. चंबल घाटी आमतौर पर डाकुओं के खौफ, आतंक और बर्बरता के लिए जानी जाती है, लेकिन शायद बहुत ही कम लोगों को यह पता हो कि यहां के दुर्दांत डाकुओं ने प्रेम के वास्ते बीहड़ में त्याग और समर्पण की ऐसी कहानियां लिखी हैं, जिसने सिनेमा के पर्दे को भी पीछे छोड़ दिया है. चंबल के डाकुओं की ऐसी ही कुछ चुनिंदा कहानियों से रूबरू करा रहे हैं न्यूज 18 के इटावा संवाददाता.
वैलेंटाइन-डे पर इश्क, मोहब्बत और इजहार की बात होती है. हीर-रांझा और सोनी- महिवाल की इश्क में खाक हो जाने की पाकीजा कहानियां सुनाई जाती हैं. लेकिन, ऐसे में अगर आप खूंखार डाकुओं के आंतक की पनाहगाह मानी जाने वाली चंबल घाटी में दस्युओं की सच्ची प्रेम कहानियां सुनेंगे तो हीर-रांझा और सोनी महिवाल की कहानियां आपको फीकी लगने लगेंगी. जब अन्याय हुआ तब बदले की भावना में बंदूक उठाकर बर्बरता की सारी हदें पार कर दी. जब इश्क हुआ तो हथियार फेंक कर प्रेम के लिए जान की बाजी लगा दी और मोहब्बत की ऐसी मिसाल कायम की जो बीहड़ों में किदवंतियां बन गईं.
पुतलीबाई है सबसे बड़ा नाम: चंबल घाटी के इतिहास में पुतलीबाई का नाम पहली महिला डकैत के रूप में दर्ज है. बीहड़ों में पुतलीबाई का नाम एक बहादुर और आदर्शवादी महिला डकैत के रूप में सम्मानपूर्वक लिया जाता है. गरीब बेड़नी परिवार में जन्मी गौहरबानों को परिवार का पेट पालने के लिए नृत्यांगना बनना पड़ा. इस पेशे ने उसे नया नाम दिया- पुतलीबाई. शादी-ब्याह और खुशी के मौकों पर नाचने-गाने वाली खूबसूरत पुतलीबाई पर सुल्ताना डाकू की नजर पड़ी. वह उसे जबरन गिरोह के मनोरंजन के लिए नृत्य करने के लिए अपने पास बुलाने लगा. डाकू सुल्ताना का पुतलीबाई से मेलजोल बढ़ता गया और दोनों में प्रेम हो गया. इसके बाद पुतलीबाई अपना घर बार छोड़कर सुल्ताना के साथ बीहड़ों में रहने लगी. पुलिस एनकाउंटर में सुल्ताना के मारे जाने के बाद पुतलीबाई गिरोह की सरदार बनी और 1950 से 1956 तक बीहड़ों में उसका जबरदस्त आतंक रहा. पुतलीबाई पहली ऐसी महिला डकैत थी, जिसने गिरोह के सरदार के रूप में सबसे ज्यादा पुलिस से मुठभेड़ की. बताया जाता है कि एक पुलिस मुठभेड़ में गोली लगने से पुतलीबाई को अपना एक हाथ भी गवाना पड़ा था. बावजूद इसके उसकी गोली चलाने की तीव्रता में कोई कमी नहीं आई . छोटे कद की दुबली-पतली फुर्तीली पुतलीबाई एक हाथ से ही राइफल चलाकर दुश्मनों के दांत खट्टे कर देती थी. सुल्ताना की मौत के बाद गिरोह के कई सदस्यों ने उससे शादी का प्रस्ताव रखा लेकिन सुल्ताना के प्रेम में दिवानी पुतलीबाई ने सबको इंकार कर काटों की राह चुनी.
कभी चंबल के बीहड़ों में आतंक के पर्याय रह चुके पूर्व दस्यु सरगना मलखान सिंह पुतलीबाई के साहस की मिसाल देते हुए कहते हैं कि वह ‘मर्द’ थी और मुठभेड़ में जमकर पुलिस का मुकाबला करती थी. बीहड़ में अपनी निडरता और साहस के लिए जानी जाने वाली डाकू पुतलीबाई को 23 जनवरी, 1956 शिवपुरी के जंगलों में पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया था.
कम नहीं रही हैं कुसमा नाइन: पुतलीबाई के बाद कुसमा नाइन को खूंखार दस्यु सुंदरी के रूप में जाना जाता है. 90 के दशक में चंबल के बीहड़ो में कुसमा ने अपने आतंक का डंका बजा रखा था. दस्यु सरगना रामआसरे तिवारी उर्फ फक्कड़ के साथ रही कुसमा ने आखिर तक फक्कड़ का साथ नहीं छोड़ा. कुसमा उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के टिकरी गांव की रहने वाली है. विक्रम मल्लाह गिरोह का माधो सिंह कुसमा को उठाकर अपने साथ बीहड़ में ले गया था. यह बात 1978 की है. बाद में गिरोह बंटने पर कुसमा नाइन कुछ दिनों लालाराम गिरोह में भी रही किन्तु सीमा परिहार से लालाराम की निकटता के चलते वह राम आसरे उर्फ फक्कड़ के साथ जुड़ गई और करीब दस साल फक्कड़ के साथ बीहड़ों में बीतने के बाद 8 जूनवरी 2004 को भिंड में मध्य प्रदेश पुलिस के सामने उसने आत्मसमर्पण कर दिया.
फिलहाल दोनों जेल में हैं. कुसमा फक्कड़ को इस कदर प्रेम करती थी कि जब 2003-04 में फक्कड़ बुरी तरह बीमार था और बंदूक उठाने में असमर्थ था, तब कुसमा न केवल उसकी सेवा करती थी, बल्कि साए की तरह हमेशा उसके साथ रहती थी. इस दौरान कई मुठभेड़ में वह फक्कड़ को पुलिस से बचाकर भी कई बार सुरक्षित स्थान पर ले गई . कुसमा फक्कड़ को लेकर जितनी कोमल थी, दुश्मनों के लिए उतनी ही निर्दयी और बर्बर रही है. दस्यु फूलन देवी के 14 फरवरी 1981 को किये गये बहुचर्चित बेहमई कांड का बदला कुसमा ने 23 मई को उत्तर प्रदेश के औरैया जिले के मई अस्ता गांव के 13 मल्लाहों को एक लाइन में खड़ाकर फूलन की तर्ज पर ही गोलियों से भून कर लिया था. इतना ही नहीं फक्कड़ गिरोह से गद्दारी करने वाले संतोष और राजबहादुर की चाकू से आंखे निकाल कर कुसमा ने ‘प्रेम’ के साथ-साथ ‘बर्बरता’ की भी मिसाल पेश की थी. चंबल में अपराधिक वारदाते अंजाम देने के क्रम मे अदालती प्रकिया के तहत दोनों को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है.
1976 से 1983 तक चंबल में फूलन ने राज किया और चर्चित बेहमई कांड के बाद उसने 12 फरवरी, 1983 को मध्य प्रदेश पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की मौजूदगी में करीब 10 हजार जनता व 300 से अधिक पुलिसकर्मियों के सामने आत्मसमर्पण करने वाली फूलन ने पांच मागें प्रमुखता से सरकार के सामने रखीं थी, जिसमें अपने भाई को सरकारी नौकरी व पिता को आवासीय प्लाट तथा मृत्यु दण्ड न होना और 8 साल से अधिक जेल न होना प्रमुख थीं. बाद में वह 1994 में पैरोल पर आयी तथा एकलव्य सेना का गठन किया. महात्मा गांधी व दुर्गा को आदर्श व पूज्य मानने वाली फूलन ने राजनीति में रुचि ली और सांसद भी बनीं. लेकिन 25 जुलाई, 2001 को दिल्ली के सरकारी निवास पर उनकी हत्या कर दी गई. सब जानते हैं कि फूलन की कम उम्र में शादी कर दी गई थी. पति से पीड़ित फूलन ने बीहड़ का रास्ता अपनाया.
सीमा की कहानी भी है कुछ अलग: सीमा परिहार के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था. दस्यु सरगना लालाराम सीमा परिहार को उठाकर बीहड़ लाया था. बाद में लालाराम ने गिरोह के एक सदस्य निर्भय गुर्जर से सीमा की शादी करवा दी. लेकिन दोनों जल्दी ही अलग हो गए. सीमा परिहार के मुताबिक, उसे लालाराम से प्रेम हो गया और फिर उसने लालाराम से शादी कर ली. उससे एक बेटा भी है. लेकिन 18 मई, 2000 को पुलिस मुठभेंड में लालाराम के मारे जाने के बाद 30 नवंबर, 2000 को सीमा परिहार ने भी आत्मसमर्पण कर दिया. सीमा परिहार पर उसकी निजी जिंदगी पर वुंडेड नामक फिल्म बन ही चुकी है. वह बिग बाॅस में भी जा चुकी है.
लवली पांडे थी खूबसूरती की मिसाल: रज्जन गुर्जर के साथ रही लबली पांडेय उत्तर प्रदेश की इटावा के भरेह गांव की रहने वाली थी. 1992 में ही लबली की शादी हो गई, लेकिन पति ने उसे तलाक दे दिया. पिता की मौत और पति के ठुकराए जाने से आहत लवली की मुलाकात दस्यु सरगना रज्जन गूजर से हुई और दोनों में प्यार हो गया. रज्जन से रिश्ते को लेकर लवली को गांव वालों के भला-बुरा कहने पर रज्जन ने भरेह के ही एक मंदिर में डाकुओं की मौजूदगी में लवली से शादी कर ली. दस्यु सुदंरी लवली के आतंक से कभी बीहड़ थर्राता था. 50 हजार की इनामी यह दस्यु सुंदरी 5, मार्च, 2000 को अपने प्रेमी रज्जन गूर्जर के अलावा तीन अन्य डाकुओ के साथ पुलिस मुठभेड़ में मारी गई.
चौथी बीबी की बगावत ने ध्वस्त किया निर्भय का साम्राज्य: निर्भय गुर्जर की चौथी बीबी कहे जाने वाली नीलम गुप्ता और श्याम जाटव की कहानी इन सबसे ही जुदा है. श्याम जाटव को दुर्दांत डाकू निर्भय गुर्जर ने अपना दत्तक पुत्र घोषित किया था. औरैया की रहने वाली नीलम गुप्ता का अपहरण कर निर्भय के पास पहुंचाया गया. उसके बाद निर्भय और नीलम की शादी इटावा के जाहरपुरा स्थित मंदिर पर रचाई गई. लेकिन जवान नीलम और श्याम जाटव का प्यार ऐसा परवान चढ़ा कि दोनों ने निर्भय के खौफ के बावजूद गैंग से भागना मुनासिब समझा. दोनों को मौत के घाट उतारने के लिए निर्भय ने कई लाख का इनाम भी घोषित किया, जिससे बचने के लिए दोनों ने 31 जुलाई 2004 इटावा की एक अदालत में समर्पण कर दिया. लंबी अदालती प्रकिया के बाद दोनों फिलहाल अदालत से बाहर आ चुके हैं.
जगन गुर्जर और कोमेश के आतंक और खौफ से कल तक जो घबराते थे, वही उसके “प्रेम” की चर्चा भी करते हैं. दर्जनों से ज्यादा हत्याएं करने वाला 12 लाख का इनामी खुंखार डकैत जगन गुर्जर को “प्यार” ने बदल दिया है. अपने प्यार को पाने के लिए जगन ने पुलिस के समक्ष समर्पण कर दिया ताकि वह अपनी प्रेमिका और दस्यु सुंदरी कोमेश के साथ रह सके. राजस्थान के धौलपुर जिले के पूर्व सरपंच छीतरिया गुर्जर की बेटी कोमेश अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए बंदूक उठा कर बीहड़ों में कूदी. गिरोह में साथ-साथ रहने के बाद जगन और कोमेश एक दूसरे के करीब हो गए. राजस्थान के धौलपुर के समरपुरा के एक नर्सिंग होम में 5 नवंबर, 2008 को इलाज करा रही कोमेश को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, तो कोमेश की जुदाई जगन से बर्दाश्त नहीं हुई. और उससे मिलने को बेचैन जगन ने 31 जनवरी, 2009 को राजस्थान के करौली जिले के कैमरी गांव के जगदीश मंदिर के परिसर में राजस्थान से तत्कालीन सांसद सचिन पायलट के सामने इस शर्त पर आत्मसमर्पण कर दिया कि उसे और कोमेश को एक ही जेल में रखा जाए.
26 जून 2019 को चौथी बार पुलिस के समक्ष समर्पण कर चुके जगन गुर्जर धौलपुर के डांग के भवुतीपुरा का रहने वाला है. 1994 में उसके जीजा की हत्या हो गई. जिसके बाद 1994 में उसने पत्नी और भाइयों के साथ मिलकर डकैत गैंग बनाया. चंबल में आतंक का पर्याय बने जगन गुर्जर पर राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के विभिन्न थानों में हत्या के प्रयास, लूट, फिरौती, अपहरण, नकबजनी, डकैती से जुड़े 100 से अधिक मामले दर्ज थे. उस पर 40 हजार का ईनाम भी घोषित किया गया था. 11 साल पहले अपनी बेटी की शादी करते समय कसम खाई थी कि वह अब जुर्म की दुनिया छोड़ देगा. इससे पहले वह तीन बार आत्मसमर्पण भी कर चुका है. इससे पहले जगन ने वर्ष 2001 में तत्कालीन धौलपुर एसपी बीजू जार्ज जोसफ के सामने, 30 जनवरी 2009 को कैमरी गांव के जगन्नाथ मेले में कांग्रेस नेता सचिन पायलट के सामने और 19 अगस्त, 2018 को बयाना में तत्कालीन आईजी मालिनी अग्रवाल के समक्ष समर्पण किया था.
इन सबके अलावा सलीम गुर्जर -सुरेखा, चंदन यादव-रेनू यादव, मानसिंह-भालो तिवारी, सरनाम सिंह- प्रभा कटियार, तिलक सिंह-शीला, जयसिंह गुर्जर -सुनीता बाथम और निर्भय सिंह-बंसती पांडेय की जोड़ियां बीहड़ों में काफी चर्चित रही हैं. इनमें से सीमा परिहार और सुरेखा तथा रेनू यादव ने तो अपने प्रेमियों के निशानी के रूप में बच्चे को भी जन्म दिया है. वरिष्ठ पत्रकार हेमकुमार शर्मा बताते हैं कि डाकू अपनी हवस का शिकार बनाने के लिए गांव से लड़कियों को उठाकर ले जाते थे. पुलिस और समाज के डर से लिए लड़कियां घर वापस नहीं लौट पाती थी और मजबूरी में डाकू बन जाती थी. एक तरह से यह डाकुओं की रखैल होती थी लेकिन कुछ महिला डकैत ऐसी भी थी जो बदले की भावना या फिर डकैत से प्रेम करने की वजह से दस्यु सुंदरी बनी. बीहड़ में आने के बाद जब इन दस्यु सुंदरियों ने प्रेम किया तो उनकी मिसाल भी पेश की.
इटावा के वरिष्ठ पत्रकार सुभाष त्रिपाठी कहते हैं कि चंबल में पुरानी पीढ़ी के डाकू महिलाओं का बहुत सम्मान करते थे. डाकू डकैती के समय महिलाओं को हाथ तक नहीं लगाते थे. आदर्श की मिसाल यह रही है कि महिलाओं का मंगलसूत्र डाकू कभी नहीं लूटते थे. अगर डकैती वाले घर में बहन बेटी आकर रुकी है तो इज्जत पर हाथ डालने की बात तो दूर डाकू उनके गहने तक को हाथ नहीं लगाया करते थे. वहीं, रिडार्यड पुलिस अधिकारी रामनाथ सिंह यादव ऐसा मानकर चलते हैं कि तीसरी पीढ़ी के डाकुओं ने न केवल महिलाओं पर बुरी नजर डालना शुरू की बल्कि उन्हें अपहृत कर बीहड़ में भी लाने लगे. अस्सी और नब्बे के दशक में जितनी भी महिला डकैत हुई है, उनमें ज्यादातर का गिरोह के सरदार द्वारा अपहरण किया गया था. लेकिन अपहरण के बाद गिरोह में साथ- साथ रहने से दस्यु सुंदरियों का गिरोह के सरदार या फिर अन्य सदस्य से भावनात्मक लगाव भी हुआ. कई बार तो इन दस्यु सुंदरियों को हथियाने को लेकर डाकू गिरोह में गैंगवार भी हुए हैं.
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