OMG! उत्तर प्रदेश के इस जिले में खुला अनोखा गार्बेज क्लीनिक, ऐसे होता है कूड़े का इलाज
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Agency:News18 Uttar Pradesh
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उत्तर प्रदेश के मेरठ (Meerut) में कूड़े को ठीक करने के लिए गार्बेज क्लीनिक (Garbage Clinic) की शुरुआत की गई है, जो कि इन दिनों चर्चा का कारण बना हुआ है. शहर के तीन युवाओं ने पीएम मोदी से प्रेरणा लेकर इसे शुरू किया है. जानिए खासियतें...

मेरठ. उत्तर प्रदेश के मेरठ (Meerut) में कूड़े को ठीक करने के लिए गार्बेज क्लीनिक (Garbage Clinic) शुरू किया गया है. हालांकि गार्बेज क्लीनिक शब्द सुनकर आपको पैडमैन या फिर टॉयलेट एक प्रेम कथा सरीखी फिल्मों की याद आ सकती है. आपको जानकर अच्छा लगेगा कि ऐसा अनोखा क्लीनिक क्रान्ति की नगरी मेरठ में खुल गया है और यह इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है. फैशन डिज़ाइनिंग इंजीनियरिंग और विज्ञान की दुनिया से जुड़े प्रोफेशन छोड़कर तीन युवाओं ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से प्रेरणा लेकर इस क्लीनिक की शुरुआत की है.

आपने फिल्म थ्री इडियट्स तो जरूर देखी होगी. इस फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक आइडिया आपकी ज़िन्दगी बदल सकता है? और फिल्म में तीन लोगों की कहानी दिखाई गई है, जो कुछ अलग करने का संकल्प रखते हैं. जबकि मेरठ में ऐसी ही एक तिगड़ी ने गार्बेज क्लीनिक खोल कर देश को साफ रखने का बीड़ा उठाया है. इस क्लीनिक में गार्बेज एम्बुलेंस के जरिए रोजाना तकरीबन 4 हजार किलो कूड़ा लाया जाता है और फिर इसी कूड़े से खाद बनाई जाती है.
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मेरठ के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय परिसर में शुरू हुआ ये गार्बेज क्लीनिक उत्तर भारत के किसी विश्वविद्यालय में अपनी तरह का पहला क्लीनिक है, जिससे कूड़े का इलाज किया जा रहा है.

फैशन डिज़ाइनर प्रगति, साइंस की दुनिया से जुड़ी रही सुजाता और इंजीनियर प्रवीण नायक ने गार्बेज क्लीनिक की बुनियाद रखी. शुरुआत में जब यह क्लीनिक खुला तो लोगों ने इसका मज़ाक भी उड़ाया, लेकिन देखते ही देखते यह क्लीनिक अब लोगों के लिए किसी पर्यटक स्थल से कम नहीं है. मेरठ के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय और देश को साफ सुथरा रखने का संकल्प लेने वाली इस तिकड़ी ने करिश्मा कर दिखाया, जबकि अब यह गार्बेज क्लीनिक युवाओं को रोज़गार भी दे रहा है. इस गार्बेज क्लीनिक में सूखा कूड़ा और गीला कूड़ा अलग किया जाता है, फिर इससे आर्गेनिक खाद बनाई जाती है.

हर रोज घर और चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के विभागों से निकलने वाले चार हजार किलो कूड़े का इलाज किया जाता है. विवि कैंपस में दो गार्बेज एम्बुलेंस से कूड़ा एकत्र करते हुए क्लीनिक पर ट्रीटमेंट के लिए लाया जाता है और फिर गीला कूड़ा 15 दिनों में खाद में तब्दील हो जाता है. जबकि यहां प्लास्टिक, बोतल, कांच सहित विभिन्न तरह के पदार्थ अलग एकत्र होते हैं और वे रि-साइकिल के लिए दो कंपनियों को दिए जाते हैं.
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राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान यानी रूसा के तहत निर्मित यह गार्बेज क्लीनिक अम्बिकापुर मॉडल पर काम करना शुरू कर चुका है. इसी वर्ष पंद्रह जनवरी से गार्बेज क्लीनिक में कूड़े का इलाज शुरू हो गया है. आपको बता दें कि अम्बिकापुर पूरे देश में स्वच्छता का मॉडल है.

गार्बेज क्लीनिक पर 15 दिन में कूड़ा खाद में बदल जाएगा. इसके लिए 30 किट लगी हैं. एकत्र कूड़े से प्लास्टिक, कांच, बोतल और अन्य ठोस के लिए सेपरेटर लगा होगा, जो पदार्थ खाद में नहीं बदले जा सकते, वे सभी आगे की प्रक्रिया के लिए नेशनल फिजिकल लेबोरेट्री और द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट यानी टेरी को भेज जाएंगे. विश्वविद्यालय को इससे आय होगी. जो खाद तैयार होगा, उसका अधिकांश हिस्सा कैंपस के हॉर्टीकल्चर विभाग को जाएगा और बचा हुआ मार्केट में बेचा जाएगा.

कुछ वर्ष पहले दिल्ली के गाजीपुर में कूड़े के पहाड़ गिरने से चार लोगों की मौत के बाद प्रवीण नायक ने सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी छोड़ दी. कूड़े के ट्रीटमेंट के लिए प्रवीण ने गार्बेज क्लीनिक के कॉन्सेप्ट को पेटेंट कराया. पत्नी ने भी फैशन डिजाइनर की जॉब छोड़कर क्लीनिक पर काम किया, जबकि अम्बिकापुर मॉडल में भी इसी कॉन्सेप्ट पर कूड़ा निस्तारित किया जाता है.
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गार्बेज क्लीनिक में कूड़ा पहुंचते ही पहले उसे पानी से साफ किया जाता है और इस प्रक्रिया में जितना पानी बर्बाद होता है उसे फिर से इस्तेमाल करने लायक बनाया जाता है. इसके लिए दो प्लांट भी लगाए गए हैं. यानी पानी की एक-एक बूंद की कीमत समझी जाती है.

स्वच्छ भारत मिशन की नींव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रखी थी. अब इसी नींव पर इमारत खड़ी हो रही है. गार्बेज क्लीनिक जैसे प्रयोग इसका उदाहरण हैं. चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के वीसी प्रोफेसर एन के तनेजा का कहना है कि विवि सामाजिक रूप से संवेदनशील है और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझता है. गारबेज क्लीनिक उसी का प्रतिफल है.

गार्बेज क्लीनिक को देखने के लिए अब लोग पहुंचने लगे हैं. हाल ही में नगर निगम के कुछ पार्षद भी गार्बेज क्लीनिक पहुंचे और उन्होंने भी इस प्रयास की सराहना की. उन्होंने कहा कि काश ऐसा प्लांट उनके वार्ड में भी होता. इससे न केवल शहर साफ सुथरा होता बल्कि लोग स्वच्छ वातावरण में सांस भी ले सकते हैं. इस प्रयास से मेरठ नगर निगम सहित समूचे प्रदेश के नगर निगमों और पालिकाओं को सीख लेनी चाहिए.
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