सिद्धार्थनगर क्षेत्र में अंग्रेज परस्त राजाओं और सांमतों का जुल्म चरम पर था. नेपाल सीमा से सटे बढ़नी के बरगदवा गांव में बलभद्र पांडेय, शोहरतगढ़ क्षेत्र के अयोध्या यादव जैसे सत्याग्रहियों पर अंग्रेजी पिट्ठूओं का अत्याचार जारी था. उसी समय बांसी के निकट स्थित ग्राम तेजगढ़ राजा चंगेरा की ओर से फूंक दिया गया था. चंद्रशेखर आजाद को हो रहे अत्याचारों की सूचना बराबर मिलती रहती थी.
बस्ती गजेटियर के मुताबिक बांसी के राजा चंगेरा के अत्याचार की खबर सुनकर परेशान चंद्रशेखर 9 सितंबर 1929 को बांसी आ धमके. वह दिन भर बांसी में राजा चंगेरा की हत्या करने की फिराक में घूमते रहते थे और रात में मुंशी हर नारायण लाल, तिवारीपुर निवासी पंडित शेषदत्त त्रिपाठी के घर अलग.अलग समय में रूक जाते थे. दोनों लोगों को पता नहीं था कि पढ़ाई के दिनों में बनारस के बैजनाथ शिव मंदिर में बगल की कोठी में रहने वाला चंद्रशेखर आजाद है. बहरहाल चंद्रशेखर आजाद लगभग 15 दिन बांसी में रहे.
बताते हैं कि राजा चंगेरा को अपनी हत्या का अहसास हो गया था इसलिए वह लखनऊ भाग गया था. यह जानकारी होने के बाद आजाद ने बांसी रहने की जरूरत नहीं समझी और चले गए थे. इस बीच सत्याग्रह में गिरफ्तार मुंशी हर नारायण लाल बनारस जेल भेजे गए, उस समय उन्होंने चंद्रशेखर आजाद को धोती और लंगोट उपलब्ध कराई थी. ऐसी मुलाकात के बाद भी उस समय भी चंद्रशेखर आजाद ने नारायण लाल को अपनी असलियत नहीं बताई थी. बताया जाता है कि 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेंड पार्क ;अब चंद्रशेखर आजाद पार्कद्ध में शहीद हुए चंद्रशेखर आजाद की फोटो देखने के बाद वह जान सके कि बनारस और बांसी में उनके निकट रहने वाला चंदू ही क्रांतिवीर चंद्रशेखर आजाद था.
स्वतंत्रता आंदोलन में बांसी तहसील के तेजगढ़ गांव के योगदान को नहीं नकारा जा सकता. अग्रेंजों के जुल्म का विरोध करने पर राजा चंगेरा ने न केवल तेजगढ़ गांव को तीन बार फुंकवा दिया था बल्कि गांव के स्वतंत्रता सेनानी द्वारिका प्रसाद यादव समेत 56 किसानों को यातनाएं दी थीं. उनसे 500 रुपया सामूहिक जुर्माना भी वसूल किया गया था. महात्मा गांधी के विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार के आह्वान को सुनकर तेजगढ़ गांव में नमक बनाने की फैक्ट्री शुरू की गई थी. राजा चंगेरा ने अपनी फौज व बांसी पुलिस का सहयोग लेकर तेजगढ़ गांव में चल रही नमक बनाने की भट्ठी एक माह चलने के बाद तुड़वा दी थी और पूरे गांव को दोपहर में ही फूंकवा दिया था. द्वारिका यादव जब सेना के लोगों के हाथ नहीं लगे तब उनके पिता अयोध्या प्रसाद को खूब मारा पीटा और घर से निकाल दिया था. उनके साथ कई अन्य लोगों के घरों को फूंक दिया गया था.
बांसी कस्बे के श्यामनगर मोहल्ला निवासी 90 वर्षीय श्रीराम मूर्तिकार बताते हैं, कुदारन गांव के बाग में दिन में पेड़ पर बैठकर चंद्रशेखर आजाद किताबें पढ़ा करते थे और राजा चंगेरा की टोह लिया करते थे. जब इसकी सूचना राजा चंगेरा तक पहुंची तो वह चुपके से फरार हो गया. खजाना लूटने व थाने पर कब्जे की बनाई थी योजना. राजा चंगेरा से बदला लेने के लिए 1942 में ’करो या मरो नारे’ के नारे के साथ 21 अगस्त की रात बांसी के आर्य समाज मंदिर में कांग्रेसी वॉलियंटर्स ने एक गुप्त बैठक रात 12 बजे द्वारिका यादव की अध्यक्षता में की थी. योजना के अनुसार बांसी तहसील का खजाना लूटने, बांसी.उस्का टेलीफोन लाइन काटने, बांसी थाने पर कब्जा जमाने की रणनीति बनी थी.
1922 में ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध असहयोग आंदोलन जोरों पर था- गांव के लोग तो संगठित थे ही उनके साथ आस-पास के गांवों भगौतापुर, अडगडहा, मधुकरपुर, हरैया के प्रमुख लोग भी संगठन में शामिल हो गए थे- गोरखपुर की ओर से आकर 13 कांग्रेसियों ने राजा चंगेरा के अत्याचार के खिलाफ सत्याग्रह शुरू कर दिया था- सत्याग्रह में मिठवल के बाबा ढो़ढे़ गिरि भी शामिल हो गए थे. अपनी योजना में असफल होने के बाद चंद्रशेखर आजाद पुलिस से बचते हुए इटवा रोड से होकर गोबरहवा पहुंचे और वहीं से चंद्रशेखर आजाद गायब हो गए. जाते समय उनकी धोती और गुप्ति, शेष दत्त त्रिपाठी के छूट गई थी. उन्होंने अपने एक बांसी निवासी स्वतंत्रता सेनानी मित्र लाला हरनारायण को पत्र लिखा था कि उनकी धोती और गुप्ति छूट गई है, उसे भेज दो. जानकार बताते हैं कि 15 दिन चंद्रशेखर आजाद के रुकने के बाद भी कोई उनके असली नाम से उन्हें पहचान नहीं पाया. 15 दिनों में ही चंदू के नाम से मशहूर हो गए थे, जिनसे मिलते थे, उन्हें अपना बना लेते थे और क्रांति की ज्वाला जला देते थे.
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