वाराणसी. परलोक के पुण्य पथ पर गतिमान दिवंगत आत्माओं का मार्ग हमेशा रोशनी से भरपूर रहे, इसी सोच के साथ काशी के घाटों पर आपको पूरे कार्तिक महीने में आकाशदीप टिमटिमाते नजर आएंगे. यूं तो धार्मिक मान्यताओं के अनुसार काशी (Kashi) में आकाशदीप जलाने की प्रथा सदियों पुरानी है लेकिन वीर जवानों की शहादत (Martyr Jawan) के साथ जुड़कर अब इस सामाजिक और पौराणिक पर्व का देशव्यापी महत्व बढ़ गया है.
इस परंपरा के तहत काशी के घाटों पर आश्विन पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक वेद पाठ के बीच दिव्य ज्योति की टोकरी को अनंत आकाश की ओर ले जाया जाता है. हमे आजादी के उजाले देने के लिए मौत को गले लगाने वाले वीर जवानों का परलोक में मार्ग अलोकिक करने करने का इरादा इस दिव्य पर्व को राष्ट्रप्रेम से जगमग करता है.
गंगा की लहरों में आस्था के कुछ ऐसे ही भावों के साथ शरद पूर्णिमा की शाम से ही सैकड़ों आकाशदीप इन दिनों हर रोज सुंदर पिटारियों में सजकर बांस के ऊंचे स्तंभों पर जगमग हो रहे हैं. यही नहीं, काशीवासियों की जुबान से आकाशदीप के लोकगीत भी इन दिनो आपको खूब सुनाई देंगे.
प्रख्यात भोजपुरी गीतकार राजन तिवारी कहते हैं कि पौराणिक मान्यता के साथ लोकगीतों का मिलन आकाशदीप की इस बाती को पीढ़ियों पुरानी थाती से जोड़ते हैं. खुद में काशी का इतिहास समेटे घाटों की पथरीली सीढि़यां आकाशदीप की रोशनी में और भी दिव्य और भव्य नजर आती हैं. गंगा आरती के प्रधान अर्चक राघवेंद्र जी बताते हैं कि अब इस पर्व ने राष्ट्रीय पर्व का रूप ले लिया है.
बीएचयू के धर्म विज्ञान संकाय के प्रोफेसर और काशी हिंदू विश्वविदयालय के धर्म विज्ञान संकाय के प्रोफेसर राम नारायण दिवेदी ने बताया कि पौराणिक ग्रंथों में आकाशदीप की आध्यात्मिक मान्यता भी दर्ज है. ग्रंथों के अनुसार आकाश परम ब्रह्मा परमात्मा का प्रतीक है. बांस की पिटारी में प्रयुक्त खपच्चियां या करंड जीवात्मा के वजूद को दर्शाती हैं. पिटारी में टिमटिमाता दीप आस्था के संगम को दर्शाता है.
विश्व प्रसिद गंगा आरती के आयोजक सुशांत बताते हैं कि ऐसा माना जाता है कि काशी के सर्वाधिक महत्वपूर्ण पंचतीर्थ घाटों (दशाश्वमेध घाट, पंचगंगा घाट, आदिकेशव घाट, केदार घाट, अस्सी घाट) पंचगंगा घाट जहाँ पाँच पवित्र नदियों का संगम है, सम्पूर्ण कार्तिक मास में बाँस की टोकरियों में पूर्वजों-पितरों के स्वर्ग लोक की यात्रा मार्ग को आलोकित करने के लिए आकाश-दीप जलाया जाना प्रारम्भ हुआ जिसका समापन कार्तिक पूर्णिमा के पर्व पर हजारों दीप जलाकर होता है.
1999 में कारगिल की जंग ने गंगा सेवा निधि को इस बात के लिए प्रेरित किया कि अतीत से लेकर आज तक के समस्त वीर योद्धाओं की स्मृति में आकाश-दीप जलाकर अपनी भावान्जलि दी जाय और इस भाव ने काशी की सदियों पुरानी आकाश-दीप की परम्परा को राष्ट्रवाद से जोड़ दिया है.
गंगा सेवा निधि से जुड़े हनुमान यादव बताते हैं कि मान्यता हैं कार्तिक मास के समान कोई मास नहीं, सतयुग के समान कोई युग नही, वेदों के समान कोई शास्त्र नहीं और गंगा के समान दूसरा कोई तीर्थ नहीं हैं और गंगा के घाट पर कार्तिक माह में जलता ये आकाशदीप इस बात का परिचायक है की हमारे शहीदों के प्रति हमारे मन में श्रद्धा की रौशनी कितनी उज्वल है देव-दीपावली महोत्सव पर भगीरथ शौर्य सम्मान से सम्मानित कर शहीदों को नमन किया जाता है.
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