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वाराणसी: मौत के इस 'होटल' में 'मोक्ष' के द्वार पर लगा ताला, 100 साल का टूटा रिकॉर्ड, देखिए तस्वीरें

वाराणसी (Varanasi) के गौदोलिया स्थित मिसिर पोखरा क्षेत्र में स्थित भवन को लोग 'डेथ स्पॉट' यानि मौत का ठिकाना के नाम से जानते हैं. इसे लोग मोक्ष भवन भी कहते हैं. (रवि पांडेय की रिपोर्ट)

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 बनारस एक ऐसा शहर हैैै, ,जहां मृत्यु (Death) को भी एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है. विश्व में एकमात्र यह शहर ऐसा है, जहां लोग अपनी मृत्यु के लिए आते हैं. मोक्ष (Moksha) की लालसा में अपने अंतिम दिनों में यहां आकर अपने मौत का इंतजार करते हैं, लेकिन पिछले कई महीनों से इस मोक्ष के द्वार पर ताला जड़ा हुआ है. ऐसे में काशी के बाहर रहने वाले लोगों के लिए मोक्ष पर अभी भी लॉकडाउन लगा हुआ है. दरअसल, काशी में कुछ ऐसे भवन हैं, जो सिर्फ मौत के लिए बनाए गए हैं. इन्ही में से एक सबसे पुराना है मुक्ति भवन. यहां मोक्ष प्रेमी आकर मौत की आगोश में सो जाते हैं, लेकिन कोरोना ने मोक्ष पर पहरेदारी बैठा दी है.

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वाराणसी के गौदोलिया स्थित मिसिर पोखरा क्षेत्र में स्थित इस भवन को लोग "डेथ स्पॉट" यानी मौत का ठिकाना के नाम से जानते हैं. हालांकि, इसे लोग मोक्ष भवन भी कहते हैं. 100 साल पहले इसे मोक्ष के लिए बनाया गया था, ताकि काशी के बाहर रहने वाले लोग यहां आकर अपने प्राण का त्याग कर सकें. इस मोक्ष के लिए ही बनाया गया था. दरअसल, काशी को मोक्ष नगरी कही जाती है. जहां देश दुनिया से लोग अपने अंतिम समय में आकर अपने प्राण त्यागना चाहते हैं. उन्‍हीं लोगो के लिए यह भवन बनाया गया है. मोक्ष भवन के सह प्रबंधक रवि विश्वकर्मा बताते हैं कि इस भवन में अब तक 14000 हजार लोगों ने अपने प्राणों का त्याग कर चुके हैं.

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इस भवन में वृद्ध बीमार को लेकर उनके परिवार के लोग आते हैं, ताकि काशी में उस बुजुर्ग व्यक्ति का मृत्यु हो और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो. इस भवन में मात्र 20 रुपये शुल्क आज भी लिया जाता है,  लेकिन इन दिनों भवन के सभी कमरों में ताले लगे हुए हैं. पिछले 10 महीने से इस भवन में कोई भी मृत्यु नही हुई है, जो यहां के लोगों के लिए निराशा है. दरअसल, कोरोना ने इस भवन के इस परम्परा पर रोक लगा दी है और 100 साल के रिकॉर्ड को तोड़ दिया है.

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कोरोना के पहले यहां सब वैसे ही चल रहा था, जैसा पिछले 100 सालों से चलता आ रहा है. लेकिन, लॉकडाउन के बाद चित्र बदल गया. दरअसल, जब यहां अपनी अंतिम सांस गिनने वाले लोगो को उनके परिवार को लोग लेकर आना शुरू हुए तो कोरोना के कारण उन्हें रोक दिया गया, क्योंकि ये पता लगाना मुश्किल था कि बीमार व्यक्ति या उनके साथ आने वाले व्यक्ति कही कोरोना के चपेट में तो नही हैं. ऐसे में भवन प्रबंधकों इसे फिलहाल बन्द करने का फैसला लेना पड़ा, क्योंकि वो इस भवन को कोरोना के संक्रमण के फैलाव का कारण नही बनना देना चाहते थे.

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इसे जानने वाले या फिर मोक्ष की लालसा रखने वाले आज भी इस भवन का चक्कर काट रहे हैं. अपने बुजर्गों की अंतिम इच्‍छा पूरी करने के लिये लेकिन उन्हें निराशा मिल रही है. काशी में मोक्ष की चाह में बंगाल के ये दो बुजुर्ग भी शामिल हैं, लेकिन जब ये यहां आए तो उन्हें अभी इस बन्द किये जाने की सूचना मिली अब वो दुबारा आने की बात कर के निराशा के साथ चल दिये हैं.

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काशी में सदियों से मोक्ष की लालसा में लोग मंदिरों और अन्य स्थानों पर जगह तलाशते आ रहे हैं, लेकिन 1906 में बना ये मोक्ष भवन खासा चर्चा में रहा. यहां 14000 मौते इस बात की गवाह है कि काशी में इस मोक्ष भवन का कितना महत्व है? जहां के कमरे हर इंसान के मौत की कहानी बताती हैं, लेकिन कोरोना ने उस मोक्ष की कहानियों पर रोक लगा दिया है. अब काशी के लोगों के साथ यहां के ट्रस्टियों को भी सामान्य जीवन के होने का इंतजार है, ताकि इस मोक्ष पर लगे ताले को वो हटा सकें.

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     बनारस एक ऐसा शहर हैैै, ,जहां मृत्यु (Death) को भी एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है. विश्व में एकमात्र यह शहर ऐसा है, जहां लोग अपनी मृत्यु के लिए आते हैं. मोक्ष (Moksha) की लालसा में अपने अंतिम दिनों में यहां आकर अपने मौत का इंतजार करते हैं, लेकिन पिछले कई महीनों से इस मोक्ष के द्वार पर ताला जड़ा हुआ है. ऐसे में काशी के बाहर रहने वाले लोगों के लिए मोक्ष पर अभी भी लॉकडाउन लगा हुआ है. दरअसल, काशी में कुछ ऐसे भवन हैं, जो सिर्फ मौत के लिए बनाए गए हैं. इन्ही में से एक सबसे पुराना है मुक्ति भवन. यहां मोक्ष प्रेमी आकर मौत की आगोश में सो जाते हैं, लेकिन कोरोना ने मोक्ष पर पहरेदारी बैठा दी है.

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