उत्तराखंड के पहाड़ी इलाक़ों में बारिश के तीन महीने मुश्किल भरे होते हैं और बाकी समय कम पानी में शांति से बहने वाले गदेरे तक तबाही मचा देते हैं. हम आपको दिखा रहे हैं विकासनगर की दो तस्वीरें. ये तस्वीरें एक नदी की और एक नाले की हैं. इन तस्वीरों में साफ़ नज़र आ रहा है कि लोग अपनी जान ख़तरे में डालकर नदी-नाला पार कर रहे हैं. लेकिन हम यह भी बता दें कि बारिश में जब ये नदी-नाले उफ़ान पर आते हैं तो ये आवाजाही बंद हो जाती है और लोग अपने घरों में कैद होने पर मजबूर हो जाते हैं.
ये तस्वीर है कालसी तहसील की अमलावा नदी की. ग्राम पंचायत जोकला और बोसान के सैकड़ों लोग इस जुगाड़ पुल से तहसील मुख्यालय पहुंचते हैं. स्कूली छात्रों को भी इसी तरह कालसी स्थित अपने शिक्षक संस्थानों मे पहुंचना पड़ता है.
ग्रामीण बताते हैं कि बरसात में अक्सर पुल नदी के तेज बहाव की चपेट में आकर बह जाते हैं और ग्रामीण घरों में कैद होकर रह जाते हैं. बरसात के बाद नदी का जलस्तर घटते ही जंगलों से लकडी लाकर फिर पुल बनाते हैं. लेकिन सबके लिए इससे गुज़रना आसान भी नहीं होता और हिलते-डुलते इस पुल से कभी भी गिरने का अंदेशा बना रहता है.
जोकला और बोसान के ग्रामीणों के पास तो फिर भी जुगाड़ पुल है लेकिन त्यूणी तहसील के बास्तील, कोटी, नीनूस, जाखटा, कोराला गांववासियों के पास यह भी नहीं है. इन लोगों को 12 महीने बहने वाले दार्मिगाड नाले को इसी तरह पार करना पड़ता है.
बरसात के दिनों में नाले के उफ़ान पर होने से ग्रामीणों की मुश्किलें और बढ़ जाती हैं. 2006 तक इस खड्ड पर एक पुल था जो नाले के उफ़ान में आने से बह गया था. तब से आज तक ग्रामीण रोज़मर्रा के कामों के लिए जान जोखिम में डालकर नाला पार करने को मजबूर हैं.