हरिद्वार. हरिद्वार में पूरे विश्व में एक तीर्थ स्थल के नाम से विख्यात है. हरिद्वार को कुंभ नगरी के नाम से भी जाना जाता है. प्राचीन काल में हरिद्वार हर की पौड़ी पर अमृत की बूंदें छलक कर गिरी थी जिस कारण यहां हर 12 साल बाद महाकुंभ का आयोजन बहुत बड़े स्तर पर होता है. महाकुंभ में हजारों लाखों साधु-संत और देश-विदेश से लोग गंगा में डुबकी लगाने आते हैं. वहीं, हरिद्वार में कुछ प्राचीन घाट भी हैं जिनकी मान्यता प्राचीन ग्रंथों में भी लिखी हुई है. हरिद्वार के कुछ गंगा घाट ऐसे भी हैं जिन पर गंगा स्नान करने से पापों का नाश होता है.
कुशावर्त घाट/हर की पौड़ी: कुशावर्त घाट की अपनी ही प्राचीन मान्यता है. इस घाट पर श्राद्ध तर्पण और कर्मकांड करने का विशेष महत्व बताया जाता है. इस घाट का वर्णन भी धार्मिक ग्रंथों में किया गया है. कहा जाता है कि यहां भगवान दत्तात्रेय की तपोस्थली है. यहां भगवान दत्तात्रेय का मंदिर बना हुआ है. कुशावर्त घाट पर पूर्वजों की आत्मा शांति के लिए कर्मकांड की जाते हैं. यहां अस्थि विसर्जन या पिंड दान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है.
नाई घाट/हर की पौड़ी: हरिद्वार में स्थित नाई घाट का भी विशेष महत्व है. नाई घाट पर मुंडन संस्कार किया जाता है. इस घाट पर अस्थि विसर्जित करने के बाद परिवार के सदस्यों का मुंडन संस्कार किया जाता है. इस घाट की मान्यता है कि यहां मुंडन संस्कार कराने के बाद गंगा स्नान करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है.
बिरला घाट: बिरला घाट प्राचीन घाटों में से एक घाट हैं जिसकी पौराणिक मान्यता हैं. ललताराव पुल के पास प्राचीन हनुमान मंदिर बना हुआ है जहां पर बिरला घाट है. बिरला घाट की अपनी मान्यता है कि इसके धरातल में हनुमान जी की प्रतिमा है. इस घाट पर गंगा स्नान करने से सुख-समृद्धि और मान-सम्मान की प्राप्ति होती है. आम भाषा में इस घाट को हनुमान घाट भी कहा जाता है. कहा जाता है कि पांडव इसी घाट पर आकर रुके थे और यही स्नान किया था. इस घाट पर स्नान करने का विशेष महत्व है.
गऊ घाट/हर की पौड़ी: मुंडन संस्कार या अस्थि विसर्जित करने के बाद गऊ घाट पर गाय को चारा देने या अन्य खाद्य पदार्थ देने का विशेष महत्व होता है. सनातन धर्म में अस्थि विसर्जित करने के बाद मुंडन संस्कार और फिर गऊ दान करने का विशेष महत्व बताया जाता है. गाय को चारा, फल, रोटी इत्यादि दान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और उन्हें स्वर्ग में स्थान मिलने का महत्व बताया जाता है. इस घाट पर पहले बड़ी संख्या में गाय रहती हैं, लेकिन समय बदलने के साथ यहां गाय की संख्या कम हो गई हैं, जिन्हें चारा, फल, रोटी इत्यादि दान करने से शांति मिलती है.
सती घाट: हरिद्वार का सती घाट भी पौराणिक घाट है जिसका वर्णन धार्मिक ग्रंथों में विशेष रूप से किया गया है. राजा दक्ष प्रजापति की नगरी और भगवान शिव की ससुराल कनखल में सती घाट स्थित है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्राचीन काल में जिस व्यक्ति की कम समय में मृत्यु हो जाती थी, उनकी पत्नी भी उनके साथ अपने प्राण त्याग दिया करती थी. उन्हीं को याद में सती घाट पर छोटे-छोटे मंदिर के रूप में उनके स्थान बने हुए हैं. सती घाट को अस्थि प्रवाह घाट के नाम से भी जाना जाता है. इस घाट पर अस्थि विसर्जित करने का बहुत बड़ा महत्व माना जाता है. इस घाट पर देश के अलग-अलग राज्यों से लोग अस्थि विसर्जित करने आते हैं. सती घाट पर अस्थि विसर्जन करने के बाद गंगा स्नान करने से मृतकों की आत्मा को शांति मिलती है.
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