नैनीताल. यूं तो लोगों को स्वस्थ रखने पहाड़ की आबोहवा को बेहतर माना जाता रहा है लेकिन बीते कुछ सालों में प्रदूषण का असर पहाड़ों पर भी पड़ा है. कोरोना वायरस, कोविड-19, की वजह से हुए लॉकडाउन का सकारात्मक सर यह पड़ा है कि उत्तराखंड के पहाड़ों में पर्यावरण में भी सुधार देखा जा रहा है. पिछले सालों के मुकाबले इस बार वातावरण में सुधार हुआ है और इसका असर जल, जंगल, जंगली जीवन पर साफ़ देखा जा रहा है. ख़ासतौर पर पानी तो बेहद साफ़ हो गया है और प्रकृति का दर्पण लग रहा है.
खाली सड़कें और सुहावना मौसम.. लॉकडाउन के बाद मौसम स्वच्छ और नज़ारा इतना साफ़ है कि हिमालय के दीदार आसान हो गए हैं... ऐसा लग रहा है कि इन बर्फ़ीली पहाड़ियों को आप हाथ बढ़ाकर छू सकते हो.
प्रदूषण की कमी का असर इस कदर है कि जंगली जानवरों के सड़कों पर आने की घटना आम होने लगी हैं तो सरोवर नगरी की नैनीझील का जल न सिर्फ़ 2 फ़ीट बढ़ा है बल्कि स्वच्छ भी हो गया है.
22 मार्च लॉकडाउन के बाद लोग घरों में कैद हो गए तो सड़कों से वाहन गायब हो गए. ईंधन से होने वाले प्रदूषण काफी कम हो गया तो पर्यावरण में घुल रहे ज़हर में कमी आई. पर्यावरणविद अजय रावत कहते हैं कि लॉकडाउन के बाद से ही घरों के आसपास कई किस्म के पक्षी विचरण कर रहे हैं.
अजय कहते हैं कि बल्कि लोगों के घरों में कैद होने से मार्च के आखिर में सूख जाने वाले जलस्रोतों में पानी दिख रहा है जो आने वाले साल के लिए अच्छे संकेत हैं.
कुमाऊं विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के पर्यावरण वैज्ञानिक आशीष तिवाड़ी मानते हैं कि प्रदूषण कम तो हुआ ही है इस बार जंगलों में भी पेड़ व जड़ी-बूटी की नई जनरेशन पैदा होगी क्योंकि लॉकडाउन से जंगल या आसपास पालतू पशुओं और लोगों का विचरण कम हो रहा है. आशीष तिवाड़ी मानते हैं कि लॉकडाउन तक तो ठीक रहेगा लेकिन उसके बाद फिर पुरानी स्थिति लौटेगी.