नैनीताल. मॉनसून की रिमझिम फुहारों के बीच पहाड़ के सीढ़ीनुमा खेतों में धान की रोपाई का दौर चल रहा है. धान की रोपाई से पहाड़ की एक परंपरा सदियों से जुड़ी हुई है यह है हुड़की बौल परम्परा. समय के साथ पहाड़ की कई लोक परंपराएं गायब होती चली गईं और हुड़की बौल की परम्परा पर भी खतरा है लेकिन कुछ लोग आज भी इस परंपरा को ज़िंदा रखे हुए हैं. नैनीताल के सरियाताल गांव के ग्रामीण आज भी हुड़की बौल के साथ ही धान की रोपाई करते हैं. आगे तस्वीरों में देखिए और जानिए इस अनोखी परंपरा के बारे में.
हुड़की बौल में एक शख्स हुड़के की थाप पर गीत गाता है और रोपाई कर रही महिलाएं उसके साथ सुर से सुर मिलाती हैं.
ज़ाहिर तौर पर बहुत सारी पहाड़ी परंपराओं की तरह यह भी लुप्त सी हो गई है और नई पीढ़ी, ख़ासकर जो शहरों में पल-बढ़ रही है, में इसे देखने-समझने की उत्सुकता भी होती है.
धान की रोपाई तो पूरे देश में होती है लेकिन पहाड़ की ये सुरीली रोपाई आपसी मेलजोल बढ़ाने का अनोखा जरिया है.
हुड़की बौल इसके बहाने पूरे गांव के लोग एक साथ मिलकर रोपाई करते हैं और एक दूसरे का हाथ बंटाते हैं. यह गीली रोपाई संबंधों की डोर और मजबूत कर देती है.