उत्तरकाशी की भटवाड़ी ब्लॉक के उपला टक्नोर में इन दिनों सेलकू मेले की धूम है. यहां की तस्वीरें देखकर आपको लगेगा ही नहीं कि देश और दुनिया कोरोना से जूझ रही है और यह इस महामारी के ख़ौफ़ में जीने का समय है. यहां सोशल डिस्टेंसिंग और कोविड-19 के नियमों की किसी को परवाह ही नहीं नज़र आ रही. जिले के अधिकारी सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क और कोविड-19 के नियमों का पालन कराने में पूरी तरह नाकाम साबित हुए हैं. मेले में बेरोकटोक हज़ारों की संख्या में भीड़ जुट रही है.
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में घास के हरे मैदानों यानी बुग्यालों में उगने वाले बहुत से फूल बारिश खत्म होने के बाद सूखने लगते हैं. उनका सूखना शुरु होने से पहले ही ग्रामीण उन्हें देवताओं के चरणों में समर्पित करते हैं और इसीलिए भागीरथी घाटी के इस क्षेत्र में सेलकू पर्व मनाया जाता है.
क्षेत्र के ईष्ट देवता सोमेश्वर की पूजा भेलू, रासो, तांदी लगा कर की जाती है. इस पर्व में शामिल होने के लिए सभी शादीशुदा बेटियां मायके आते हैं और ईष्ट देवता को चढ़ावा चढ़ाती हैं. मेले में बेटियों को काफ़ी मान-सम्मान दिया जाता है और फिर उनकी विदाभी भी यथाशक्ति अन्न, उपहार देकर की जाती है.
जिस व्यक्ति पर सोमेश्वर देवता अवतरित होते हैं वह नंगे पांव धारदार फरसे के ऊपर काफी दूर तक चलकर जाता है.
सेलकू गढ़वाली के दो शब्दों सेलू कू मतलब सोएगा कौन से बना है. रात भर गांव के लोग जश्न मनाते हैं और सोता कोई नहीं. हर साल की तरह इस बार भी मेले में जनप्रतिनिधि शामिल हुए और जमकर नृत्य किया.