नागोरनो-कराबाख के अलगाववादी क्षेत्र को लेकर लड़ाई युद्ध विराम ख़त्म होने के बाद रविवार को छठे दिन भी जारी रही तथा आर्मीनियाई एवं आजरबैजानी सुरक्षा बलों ने एक दूसरे को नये हमलों के लिए जिम्मेदार ठहराया. उधर नागार्नो-काराबाख़ के विवादित इलाक़े को लेकर आर्मीनिया के साथ युद्ध में उलझे अज़रबैजान के लिए तुर्की ने एक बार फिर अपना मज़बूत समर्थन जताया है. रविवार को तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुत चोवुशुग्लू अज़रबैजान की राजधानी बाकू पहुंचे और उन्होंने अज़रबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव से मुलाक़ात की.
उन्होंने एक बार फिर इस बात पर ज़ोर दिया कि आर्मीनिया-अज़रबैजान के बीच जारी टकराव में तुर्की अपने सहयोगी अज़रबैजान के साथ मज़बूती से खड़ा है. उन्होंने स्पष्ट कहा कि तुर्की बाकू में अपने अज़ेरी भाईयों के साथ खड़ा है. आर्मीनिया के रूस से संभावित सुरक्षा सहायता पर विचार-विमर्श के एक दिन बाद तुर्की के विदेश मंत्री अज़रबैजान पहुँचे हैं. इससे पहले अर्मीनिया के प्रधानमंत्री निकोल पाशिन्यान ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को पत्र लिख कर नागोर्नो-काराबाख़ की लड़ाई में मदद मांगी थी.
इसके जवाब में शनिवार को, रूस ने कहा कि अगर लड़ाई आर्मीनिया तक पहुँच जाती है, तो रूस एक रक्षा समझौते के तहत आर्मीनिया को हर आवश्यक मदद देने के लिए तैयार रहेगा. अज़रबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने आर्मीनियाई प्रधानमंत्री के पत्र को हार स्वीकार करना कहा है. इल्हाम अलीयेव ने कहा कि देखा जाए तो आर्मीनिया ने हार मान ली है लेकिन वो सरेंडर नहीं करना चाहता. उन्होंने कहा कि बातचीत के माध्यम से अज़रबैजान इस मामले को सुलझाना चाहता है लेकिन आर्मीनिया को शांति से कोई सरोकार नहीं है. वो काराबाख़ के इलाक़े पर हमेशा अपना कब्ज़ा चाहते हैं.
अलीयेव ने कहा कि इससे पहले जिन इलाक़ों पर अज़रबैजान ने दोबारा अपना कब्ज़ा कर लिया था, उन इलाक़ों पर आर्मीनिया अपना कब्ज़ा करना चाहता है और यही इस लड़ाई का मुख्य कारण हैं. उन्होंने दावा किया कि 27 सितंबर से लड़ाई शुरू होने के बाद से काराबाख़ के इलाक़े में अज़रबैजान ने 200 सेटलमेन्ट्स पर अपना कब्ज़ा जमा लिया है. उन्होंने कहा कि जब तक आर्मीनिया अपने कदम पीछे नहीं हटाता, ये लड़ाई नहीं रुकेगी.
आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों ने पहले ही यह चेतावनी दी थी कि तुर्की और रूस भी इस संघर्ष में शामिल हो सकते हैं. अज़रबैजान और आर्मीनिया के बीच युद्धविराम की भी कोशिशें की जा चुकी हैं, लेकिन वो सफल नहीं हुईं. दोनों ही देशों ने युद्धविराम के कुछ ही घंटों बाद एक दूसरे पर इसके उल्लंघन का आरोप लगाना शुरू कर दिया था.
दोनों देश एक दूसरे पर गोलियाँ चलाने और बम फेंकने के आरोप लगा रहे हैं. कई बार विवादित नागार्नो-काराबाख़ इलाक़े के बाहर, यानी सीमा से कहीं दूर के इलाक़ों में भी शेलिंग की ख़बरें मिली हैं. अज़रबैजान ने बीते हफ़्ते कहा था कि आर्मीनिया ने नखचिवन पर हमला किया है. नखचिवन एक स्वायत्त गणतंत्र है जो अज़रबैजान का ही हिस्सा है. आर्मीनिया की एक पतली पट्टी की वजह से नखचिवन अज़रबैजान की मुख्य भूमि से कटा हुआ इलाक़ा है. आर्मीनिया ने नखचिवन पर किसी तरह के हमले से इनकार किया है और दावा किया है कि अज़रबैजान उस पर ग़लत आरोप लगाकर उसे उकसा रहा है.
जानकारों का कहना है कि दोनों देशों के बीच चल रहे युद्ध में ड्रोन काफ़ी संख्या में इस्तेमाल किये जा रहे हैं. इस वजह से भी तुर्की का मौजूदा लड़ाई में ज़िक्र होता रहा है. यह भी कहा गया कि तुर्की से ख़रीदे गए ड्रोन हथियारों की वजह से ही अज़रबैजान को इस युद्ध में बढ़त हासिल हुई. देश के भीतर ड्रोन हमलों और उनमें आम नागरिकों की मौत को लेकर तुर्की को आलोचना का सामना भी करना पड़ा है और इसी वजह से आर्मीनिया को मदद के लिए रूस की ओर देखना पड़ रहा है.
नागोरनो-कराबाख के अधिकारियों ने आजरबैजानियों पर रातभर मार्तुनी पर हवाई हमले करने और कई अन्य क्षेत्रों पर मिसाइलें दागने का आरोप लगाया. नागोरनो-कराबाख सेना ने बताया कि आजरबैजानी सैनिकों ने सुबह क्षेत्र की रिहायशी बस्तियों पर गोलाबारी की. उधर, आजरबैजान के रक्षा मंत्रालय ने भी आर्मीनिया-आजरबैजान सीमा पर आजरबैजानी सेना के ठिकानों पर गोलीबारी करने का आरोप लगाया. मंत्रालय ने यह भी कहा कि आर्मीनिया सैन्यबल तर्टर और अधजाबेदी के क्षेत्रों में बस्तियों पर गोले दाग रहे हैं.
नागोरनो-कराबाख आजरबैजान की सीमा है लेकिन वह 1994 में लड़ाई के खत्म् हो जाने के बाद से आर्मीनिया से समर्थित जातीय आर्मेनियाई बलों के नियंत्रण में है. दोनों के बीच हाल का यह संघर्ष 27 सितंबर को शुरू हुआ और उसमे हजारों नहीं तो सैकड़ों लोगों की मौत हुई. सोवियत संघ के दो पूर्व राष्ट्रों के बीच यह सबसे भयंकर तनाव है.
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