नमस्कार दोस्तो, न्यूज़ 18 हिन्दी के आज के पॉडकास्ट में आपका स्वागत है. मैं पूजा प्रसाद आज आपके सम्मुख एक बार फिर हाज़िर हूं एक नए रचनाकार और एक नई कहानी के साथ. दोस्तो, साहित्य एक ऐसा पड़ाव है दोस्तो जहां देश और दुनिया एक ग्लोबल विलेज की तरह लगने लगती है. देशों की सीमाएं और वक्त की हदें मानवीय संवेदनाओं के आगे बौनी साबित होती हैं. कभी रूस की कोई बात भारत में भी उसी रूप में दिखने लग जाती है और कभी सदियों पहले के पैटर्न वर्तमान में दोहराए जाते प्रतीत होते हैं. आपने अज्ञेय की यह कविता जरूर सुनी होगी-
साँप !
तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना
भी तुम्हें नहीं आया।
एक बात पूछूँ–(उत्तर दोगे?)
तब कैसे सीखा डँसना–
विष कहाँ पाया?
अज्ञेय ने सांप को लेकर जो व्यंग्य किया, उनसे सालों पहले 1884 में रूसी कथाकार चेखव ने भी कुछ इसी तरह का व्यंग्य किया था. आज जिस कहानी का पाठ मैं करने जा रही हूं, उसका नाम है गिरगिट. इसे लिखा है आंतोन चेखव ने. वैसे भारतीय परिवेश में भी हम देख सकते हैं कि गिरगिट कैसे रंग बदलता है… शीर्षक में गिरगिट है और कहानी में है एक कुत्ता और इंसान की नित नए रंग दिखाती फितरत! चेखव पेशे से चिकित्सक रहे. चिकित्सा के पेशे में उन्होंने कई रोग बीमारियां देखी होंगी, लेकिन बतौर मनुष्य जो मर्ज इंसानों में उन्होंने देखे, उन्हीं का इशारा उन्होंने इस लोकप्रिय कहानी में किया है. आइए सुनें चेखव की कहानी गिरगिट.
सुनें प्रेमचंद की कहानी ‘त्रिया चरित्र’ – भाग एक
सुनें प्रेमचंद की कहानी ‘त्रिया चरित्र’ का दूसरा और आखिरी भाग
पुलिस का दारोगा ओचुमेलोव नया ओवरकोट पहने, हाथ में एक बण्डल थामे बाजार के चौक से गुज़र रहा है। लाल बालों वाला एक सिपाही हाथ में टोकरी लिये उसके पीछे-पीछे चल रहा है। टोकरी जब्त की गयी झड़बेरियों से ऊपर तक भरी हुई है। चारों ओर ख़ामोशी…चौक में एक भी आदमी नहीं…दुकानों व शराबखानों के भूखे जबड़ों की तरह खुले हुए दरवाज़े ईश्वर की सृष्टि को उदासी भरी निगाहों से ताक रहे हैं। यहाँ तक कि कोई भिखारी भी आसपास दिखायी नहीं देता है।
“अच्छा! तो तू काटेगा? शैतान कहीं का!” ओचुमेलोव के कानों में सहसा यह आवाज़ आती है। “पकड़ लो, छोकरो! जाने न पाये! अब तो काटना मना है! पकड़ लो! आ…आह!”
कुत्ते के किकियाने की आवाज़ सुनायी देती है। ओचुमेलोव मुड़ कर देखता है कि व्यापारी पिचूगिन की लकड़ी की टाल में से एक कुत्ता तीन टाँगों से भागता हुआ चला आ रहा है। एक आदमी उसक पीछा कर रहा है – बदन पर छीट की कलफदार कमीज, ऊपर वास्कट और वास्कट के बटन नदारद। वह कुत्ते के पीछे लपकता है और उसे पकड़ने की कोशिश में गिरते-गिरते भी कुत्ते की पिछली टाँग पकड़ लेता है। कुत्ते की कीं-कीं और वही चीख़ – “जाने न पाये!” दोबारा सुनायी देती है। ऊँघते हुए लोग गरदनें दुकनों से बाहर निकल कर देखने लगते हैं, और देखते-देखते एक भीड़ टाल के पास जमा हो जाती है मानो ज़मीन फाड़ कर निकल आयी हो।
“हुजूर! मालूम पड़ता है कि कुछ झगड़ा-फसाद है!” सिपाही कहता है….
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आंतोन चेखव की श्रेष्ठ कहानियां, प्रभात प्रकाशन (साभार)