कवि दुष्यंत कुमार एक दौर के हालत देखि के कही दिहलें – ‘मत कहो आकाश में कुहरा घना है.’ येही उत्तर प्रदेश के बारे में कहले रहने. उ इ लाइऩ कहि के असली में सही बात कहला से केहू के बरिजत ना रहने. ललकारत रहने. सही बात कहे खातिर. ये बात पे दुःखी रहने कि आखिर काहें केहू कहत नइखे कि हर ओर कुहासा बा. कुछ लउकत नइखे. आजु का ओकरा से अलगा कुछ बा. आजुओ हालत ओइसने बा.
जोर केकर, के उतराता?
हर ओर खाली चुनाव लड़े के बात होता. कुल्ही पाटी अपना-अपना गणित प उतराइल हई स. केहू भर लोगोन के समर्थन बतावत ता, त केहू बभनन के जोर प झंडा बुलंद करता. होखहू के चाहीं. जाति के चेतना जरूरी बा. लेकिन इहो सोचे वाला बाति बा कि 75 साल में ये चेतना के केतना फायदा लिहल गइल. आ ठीक-ठीक लाभ न मिल पवलस त काहें ना मिलल.
हां, एकरा में कवनो शक नइखे कि जवन पिछड़ी आ दलित जाति से एक टाइम बहुत से लोग वोट ना दे पावत रहल हा, ओह जातिन से नेता लोग निकलल. ए चेतना के सलाम करे के जरूरत बा. बाकिर उ सब नेता लोगन के केहू खातिर जवाबदेही बा कि नइखे. जवन समुदाय उनका के नेता बने के मौका दिहलस, जवना जाति-समाज के बूता प उ आगा बढने ओह समाज खातिर उनकर जिम्मेदारी बा कि नइखे. आ कि खाली उनकर जिम्मेदारी ओ अढतिया- ठेकेदार नियर बा जे किसासन से फसल जमा कके ओकरा से फायदा कमा लेता. किसान के कुछ ठेकते नइखे.
खाली दलित –पिछड़ा प सवाल नइखे
सुने में लागी कि कवनो सवर्ण जाति के पत्रकार खाली पिछड़ा आ दलित नेता प सवाल उठावता. ना. इहां इहो साफ कई दिहल जरूरी बा कि ये लेख के मकसद खाली पिछड़ा आ दलित समुदाय के नेता लोगन प सवाल उठावल नइखे. बलुक कहे के मतलब इ बा कि आखिर हमनी के नेता लोगन से कब सवाल उठावल जाई. उ लोग लखनऊ में बइठ के इ तय क देता कि कोइरी समाज अब हेने जाई. भर लोग होने जाइहें.
अरे भाई ये समाज के सबसे पिछड़ा आदमी के भी कुछ मिले के चाहीं. ओकरा अकेले खातिर ना. विकास में ओह पूरा समाज के हिस्सा होखे के चाहीं. आखिर गांव के नवहीं लोगन के शिक्षा खातिर इ नेता लोग अलगा से कुछ कइल हा कि ना? इ सवाल सब नेता लोगन से अलगा-अलगा पूछला के जरूरत बा कि गांव के स्कूल के हालत प का कइला हा. काहें स्कूलवा में मास्टर के नियुक्ति नइखे होत. काहे गांव के हास्पिटल में डाकडर नइखन आवत. काहें पुलिस वाला हमनी के बात सुनला के जगहा हरिअरकी नोटी के बाति सुनता.
पहचान बहुत भइल, अब काम चाहीं
असली में अतना दिन से सब समाज के लोग चेतना आ आपन पहचान के नाम पर चुप हो जाता. अभियो लोग खाली येही में खुश बा कि चल हमरा समाज के नेता जी लखनऊ में बोलत हवें आ लोग सुनता. अब समय उ आ गइल बा कि पूछल आ जानल जाउ कि उ बोलत का हवें. खाली जाति के चेतना के बाति. इलेक्शन के बाद अपना क्षेत्र के गांवन में आखिर उ नेताजी केतना बारि अवेने. केतना बारि नेता जी गदहा लेके कपड़ा धोवे वाला मेहनतकश धोबी के हालि चालि पूछला हां. का नेताजी गांव में मकान बनावत, मजूरी करत राजभर से पूछे अइला हां कि का हो- तोहरा सरकारी योजना के लाभ मिलता?
सवर्ण नेता भी एही तरे बात बदल देत रहल हा लो
ठीक इहे बात सवर्ण जाति के बड़का नेता लोगन पर भी लागू होता. पूर्वाचल के उदाहरण ले लिहीं. बलिया जिला के नाम लिहल जाउ त ओइजा के सांसद रहल एगो बड़ नेता नाम आइए जाला. पूरा बलिया एही बात प खुश होला कि उहां के इंटरनेशनल नेता रहनी हां. इहां तक कहल जाला कि जब केहू उनका से बलिया के विकास के बात करी, त उ कही दिहें कि खाली बलिया के विकास के जिम्मा हमरा लगे नइखे. आ लोग ये दलील के मानियो लेता रहल हा. बाकी बलिया के विकास भी आखिर उहां के सांसद ही करिहें. बागी कहेये वाला जिला के लोग येही बात प खुश हो जात रहल हा, कि चल बलिया के नाम होता. बलिया के जिक्र येह से भी कइला लायक लागल हा, काहें कि इ उत्तर प्रदेश के सबसे पिछड़ल जिलन में आजुओ शामिल बा. आजुओ बलिया जिला में अइसन गांवबाने स जहां से सड़क तक आवे खातिर साधन त छोड़ीं सड़के नइखे. लोग जइसे तइसे रोज सड़क-बांध तक आ के शहर जाला. बिजुली बत्ती खातिर बहुत झगड़ा बवाल ना करे के उहां के लोगन के आदत पड़ि गइल बा.
बलिया के तुलना में मऊ के खूब विकास भइल. आज भी बलिया से केहू बहुत बीमार हो जाला त इलाज खातिर मऊ जाला. आखिर इ काहें भइल. काहें कि बलिया के लोग अपना नेता से सवाल ना पूछलस. पंजाब हरियाण आ गुजरात के किसान के स्थिति देखला के बाद बलिया के किसानन के हालत के बारे में दुख होला. इहां तक कि छत्तीसगढ़ जइसन नया राज्य में विधायक लोगन के इ स्थिति देखे के मिलेला कि उहां के विधायक – सांसद नियमित रूप से एक जगहा बइठे ला लोग. एगो विधायक त रायपुर में अइसन बाने कि उ चौराहा प आपन स्कूटी लगा के रोज नियम से कुछ घंटा बइठ जात रहला हां. आवे जाए वाला केहू उनका से आपन बाति कही सकत रहला हा. उ बइठते एही खातिर रहला हा.
लाव लश्कर, ताम-झाम आ चमक-धमक से बचीं
विकास तबे होई जब जनता में इ चेतना आई कि उ अपना विधायक के ताम-झाम, लाव-लश्कर के जगहा प सोझ इ खोजी कि ए भाई बताव इलाका के विकास खातिर का कइला हा. इ बताव कि गाउंआ के अस्पतालवा में कब से डाकडर आवे लगिहें, कब शिक्षा विभाग के अधिकारी ये बाति खातिर मुस्तैद रहिहें कि स्कूल में मास्टर रोज हाजिर रहिहें. माने जब मुंह पर कहाई कि इहां कुहरा घना बा, तब जाके अन्हार छटीं, रोशनी आई.
(राजकुमार पांडेय वरिष्ठ पत्रकार हैं, आलेख में लिखे विचार उनके निजी हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)