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जब औरंगजेब के आक्रमण के समय ब्राह्मणों ने उठाई थी तलवार! मेनार में 15 मार्च को होगा गैर नृत्य, जानें इतिहास

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Udaipur News: इस साल 2025 में 15 मार्च को जमरा बीज के अवसर पर गैर नृत्य का आयोजन किया जाएगा. यह ऩत्य सैकड़ों साल पुरानी परंपरा है. होली के पर्व पर इसे मनाने की वजह, बताया जाता है, कि औरंगजेब के हमले के समय ब्राह्मणों के द्वारा तलवार उठाकर दिया गया वीरता का परिचय है. आखिर ये क्या कहानी है, चलिए जानते हैं.

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मेनार:- होली का पर्व नजदीक आते ही मेवाड़ के मेनार गांव में उल्लास और जोश का माहौल बन जाता है. इस बार 15 मार्च को जमरा बीज के अवसर पर गैर नृत्य का आयोजन किया जाएगा. आपको बता दें, कि इस गांव की खास परंपरा गैर नृत्य है, जिसे पुरुष तलवारों और डंडों के साथ करते हैं. यह नृत्य सिर्फ एक लोकनृत्य नहीं, बल्कि शौर्य, वीरता और परंपरा का प्रतीक भी है. हर साल होली के बाद जमरा बीज के अवसर पर इसका आयोजन होता है, इसमें शामिल होने के लिए मेनार गांव के कई लोग देश-विदेश से अपने काम को छोड़कर आते हैं.

सदियों पुरानी है ये परंपरा
गैर नृत्य की परंपरा सैकड़ों सालों पुरानी मानी जाती है. कहा जाता है, कि जब मुगल शासक औरंगजेब ने मेवाड़ पर आक्रमण किया था, तब मेनार गांव के ब्राह्मणों ने अपने हाथों में तलवारें उठाकर दुश्मनों का डटकर सामना किया था. उनके अद्वितीय शौर्य को देखकर महाराणा ने उन्हें “स्तर हुए उम्र” की उपाधि दी थी. तभी से यह नृत्य वीरता और शक्ति का प्रतीक बन गया और इसकी परंपरा हर साल निभाई जाती है.
पूरे गांव में उत्साह का है माहौल
आपको बता दें, कि गैर नृत्य को लेकर पूरे गांव में उत्साह का माहौल है. इस बार 15 मार्च को जमरा बीज के अवसर पर इस नृत्य का आयोजन किया जाएगा. ग्रामीणों ने इसकी तैयारियां अभी से शुरू कर दी हैं. इस मौके पर मेनार गांव के पुरुष पारंपरिक पोशाक पहनकर नंगी तलवारें और डंडे लेकर एक विशेष नृत्य करते हैं, जिसमें उनकी वीरता और साहस झलकता है. यह आयोजन ब्राह्मण समाज के सहयोग से होता है और इसे देखने के लिए हजारों लोग जुटते हैं.

गांव के लोग विदेश से भी आते हैं
मेनार गांव के कई लोग देश-विदेश में नौकरी या व्यवसाय करते हैं, लेकिन इस विशेष आयोजन में शामिल होने के लिए वे भी गांव लौटते हैं. यह आयोजन सिर्फ एक सांस्कृतिक उत्सव नहीं, बल्कि एकता और गौरव का प्रतीक भी है. गैर नृत्य, मेवाड़ की गौरवशाली परंपरा को जीवंत रखने का एक माध्यम है.युवा पीढ़ी भी इसे सीखकर आगे बढ़ा रही है ताकि यह परंपरा आने वाली पीढ़ियों तक बनी रहे.
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