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यहां हिंदू ताजिया बनाते हैं और मुसलमान भाइयों के साथ मिलान में भी होते हैं शरीक

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गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल कायम करते हुए बिहार में दरभंगा जिले का एक हिंदू समुदाय पिछले 60 वर्षों से ताजिया बनाने का काम करता आ रहा है. ये सिर्फ ताजिया बनाते ही नहीं हैं, बल्कि मुहर्रम के मौके पर ताजिया मिलान में भी मुसलमान भाइयों के संग शरीक होते हैं.

यहां हिंदू ताजिया बनाते हैं और मुसलमान भाइयों के साथ मिलान में भी होते हैं शरीक
गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल कायम रखते हुए बिहार के दरभंगा जिले का एक हिंदू समुदाय पिछले 60 वर्षों से ताजिया बनाने का काम करता आ रहा है. ये लोग सिर्फ ताजिया बनाते ही नहीं हैं, बल्कि मुहर्रम के मौके पर ताजिया मिलान में भी मुसलमान भाइयों के साथ शरीक होते हैं.

ये आलम अलीनगर के थाना प्रभारी राम नारायण प्रसाद के लिए किसी अचरज से कम नहीं. वो कहते हैं कि आज तक की अपनी किसी भी जगह की पोस्टिंग के दौरान उन्‍होंने ऐसा नहीं देखा. दोनों समुदाय मुहर्रम मानते हैं. इसकी जितनी तारीफ की जाए, कमतर है.

दरभंगा के अलीनगर गांव में ये नजारा हर साल दिखाई देता है. यहां हिन्दू धर्म के महतो समुदाय के लोग मुहर्रम आते ही हरकत में आ जाते हैं. वो भी मुस्लिम बस्ती में नहीं, बल्कि हिन्दू टोले का महतो समुदाय पूरी निष्ठा से ताजिया का निर्माण खुद करता है.

अलीनगर के मीर साहब के सामने ताजिया को रखते हैं. फिर अलीनगर के 21 मुहर्रम कमेटियां जो मिलान के लिए अलीनगर हाट मैदान मे जमा होती हैं, उनमें ये महतो समुदाय के लोग अपने ताजिया को लेकर पहुंचते हैं और मिलान करते हैं.

इस महतो समुदाय के लोगों के ताजिया के प्रति श्रद्धा के पीछे भी कुछ कहानी है. महतो परिवार के राम बहादुर महतो ने बताया, "मेरा बेटा बिरेंद्र अक्सर बीमार रहता था. मुहर्रम के दिन मेरी मां ने इमामबाड़ा में  जाकर मन्नत मांगी थी, जो पूरा हुआ. इसके बाद माँ ताजिया बनाती आ रही थी. अब उसके मरने के बाद हम बनाते आ रहे हैं. अब मेरा बेटा भी स्वस्थ है. वो भी ताजिया बनाने में सहयोग करता है."

वहीं स्थानीय मुस्लिम समुदाय के वसीम अकरम ने कहा कि हम हिंदू भाइयों के साथ सदियों से मिल जुलकर रहने की परंपरा ही निभा रहे हैं.
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