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हवा के अलावा इस काम भी आता है हाथ पंखा, बिहार की एक सड़क का नाम ही पड़ा पंखा गली

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gaya news today in hindi: गर्मी के लिए पहले जब पंखा, कूलर और एसी नही थे तब लोग हाथ से इस्तेमाल किए जाने वाले पंखों से ही हवा करते थे. अब इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की भीड़ में ये पंखे खो गए हैं. हालांकि, बिहार में कुछ इलाके ऐसे हैं जहां से ये पंखे अन्य राज्यों तक भी....

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गयाजी: इन दिनों पूरा बिहार भीषण गर्मी से जूझ रहा है. गर्मी से बचने के लिए लोग इलेक्ट्रिक फैन, कूलर और एसी आदि का इस्तेमाल कर रहे हैं. हालांकि, बहुत से लोग आज भी ऐसे हैं जिन्हें एसी और कूलर छोड़िए बिजली से चलने वाला पंखा तक नसीब नहीं है. ऐसे लोग हाथ से चलाए जाने वाले पंखे का इस्तेमाल करते हैं. बिहार के गयाजी जिले में इस हाथ पंखे का बड़े पैमाने पर निर्माण होता है. गया जिले में एक गांव है जहां लगभग 2 दर्जन घर के 100 लोग हाथ पंखा बनाने के कारोबार से जुड़े हुए हैं.

ये है थोक में कीमत
मानपुर के शिवचरण लेन में पंखा गली नाम का एक मोहल्ला है जहां लोग दिन-रात पंखे का निर्माण करते हैं. यह पंखा ताड़ के पत्तों का बना होता है. पंखा बनाने के लिए यहां के लोग गयाजी जिले के फतेहपुर प्रखंड क्षेत्र और नवादा जिले के ग्रामीण इलाके से ताड़ का पत्ता मंगवाते हैं और फिर उसका पंखा बनाते हैं. इस मोहल्ले में रोजाना 4,000 से अधिक पंखे का निर्माण होता है और इसकी सप्लाई गया, नवादा, औरंगाबाद, जहानाबाद तथा पटना जिला तक होती है. थोक भाव में इसकी कीमत 10-12 रुपये है और एक पंखा बनाने में 6 रुपये की लागत आती है. कुल मिलाकर देखा जाए तो हर एक व्यक्ति रोजाना पंखे से 700-800 रुपये की आमदनी कर लेते हैं.

पूजा-पाठ और शादी-विवाह में भी है इसका महत्व
ताड़ पत्ते का बना यह पंखा गरीबों को गर्मी से निजात दिलाता है और साथ ही इस पंखे का इस्तेमाल पूजा पाठ और शादी विवाह में भी किया जाता है. कुछ दिन के बाद वट सावित्री पूजा है और इस पूजा में इस पंखे की खूब डिमांड होती है. पूजा को देखते हुए भी यहां के लोग तेजी से पंखे बना रहे हैं. इसके अलावा शादी विवाह में भी इस पंखे की खूब डिमांड है. कुल मिलाकर सीजन में यहां के लोग हजारों पंखे बेच लेते हैं.
हाथ पंखा गया के मानपुर में शिवचरण लेन पंखा गली में बनते हैं. यहां लगभग दर्जनों लोग 50 साल से ज्यादा समय से यहां पंखा बना रहे हैं. यहां मोहल्ले में घुसते ही सड़क के किनारे ताड़ के पेड़ की लकड़ी और पत्ते से बनने वाले हाथ के पंखे मिल जाते हैं. पुरुषों के अलावा महिलाएं भी हाथ के पंखे बनाने में पीछे नही हैं. बाजार में इलेक्ट्रानिक उपकरणों के व्यापक पैमाने पर आने के बावजूद हाथ के पंखों की मांग बनी हुई है. हालांकि, बिक्री में थोड़ी गिरावट जरूर आई है.
पंखे के कारोबार से जुड़े राजेश प्रसाद बताते हैं ताड़ पत्ता का पंखा तैयार करने में काफी मेहनत लगती है. इसमें हमारा पूरा परिवार शामिल होता है. कोई पत्ता काटता है तो कोई पंखा तैयार होने के बाद उसमें कलर लगाते हैं. रोजाना 200 पंखे तैयार करते हैं और इसी से अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं. उन्होंने बताया पहले की तुलना में अब इसकी डिमांड थोड़ा कम हो गई है. इस मोहल्ले में 2 दर्जन से भी अधिक घर के लोग इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं और खासकर पूजा-पाठ और शादी-विवाह में इस्तेमाल करने के लिए इस पंखे का निर्माण होता है.
उन्होंने बताया कि यहां दो तीन महीने छोड़कर लगभग सालभर पंखे का निर्माण होता है. यहां प्रतिदिन 4 हजार से अधिक पंखे बनते हैं और यहां का पंखा बिहार के कई जिले के अलावे झारखंड के जिलों में भी सप्लाई होता है. अभी इसका रेट भी बढिया मिल रहा है. यह थोक भाव में 10-12 रुपये प्रति पीस मिल रहा है. इसे तैयार करने के लिए पहले ताड का पत्ता गांव से खरीदकर लाते हैं फिर उस पते को 4-5 घंटे तक पानी में भिगोकर रखते हैं. उसके बाद कारीगरी कर बनाते हैं. कोई पत्ता काटता है तो कोई पंखा तैयार होने के बाद उसमें कलर लगाता है. इसमें परिवार के चार से पांच सदस्य लगे रहते हैं.
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हवा के अलावा ये भी है हाथ पंखे का काम, बिहार की इस रोड का नाम ही पड़ा पंखा गली
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