मधुश्रावणी व्रत 2021: नवविवाहिताएं करती हैंं मां गौरी की पूजा, जानिए व्रत कथा
Author:
Agency:News18 Bihar
Last Updated:
Madhushravani Vrat 2021: मधुश्रावणी में चौदह दिनों तक सभी नवविवाहिताएं पूरी निष्ठा से बिना नमक के सात्विक भोजन करती हैं. इस दौरान ससुराल से आए अरबा चावल, घी, चना और फलों का सेवन करती हैं.

पटना. मिथिलांचल में इन दिनों मधुश्रावणी पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. नवविवाहिता अपने पति की दीर्घायु होने के लिए मधुश्रावणी व्रत मनाती हैं. चौदह दिनों तक ये पूजा होती है. मधुश्रावणी में सुबह और दोपहर में कथा वाचन होता है. शादी के बाद पड़ने वाले पहले श्रावण कृष्णपक्ष की पंचमी तिथि से शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि तक नाग देवता, गौरी, गणेश और महादेव की पूजा होती है. नवविवाहिता सज-संवरकर फूल चुनने बगिया में जाती है. इस दौरान नवविवाहिताओं की पूरी टोली होती है.
मधुश्रावणी में बासी फूल से मां गौरी की पूजा होती है. नवविवाहिता चौदह दिनों तक फूल की बगिया से फूल चुनती है. उसे डाली में सजाती है, फिर अगले दिन बासी फूल से मां गौरी की आराधना की जाती है. पूजा के दौरान प्राचीनकाल की कथाएं सुनती हैं.
स्कन्द पुराण के मुताबिक नाग देवता और मां गौरी की पूजा करने वाली महिलाएं जीवनभर सुहागिन बनी रहती हैं. प्राचीन काल में कुरुप्रदेश के राजा को तपस्या से प्राप्त अल्पायु पुत्र चिरायु भी अपनी नवविवाहिता पत्नी मंगलागौरी की नाग पूजा से दीर्घायु होने में सफल रहा था. पुत्र के दीर्घायु होने से प्रसन्न राजा ने इसे राजकीय पूजा का स्थान दिया था. मिथिलांचल में इस पर्व का विशेष महत्व है.
ससुराल के सामान से होती है पूजा
मधुश्रावणी में चौदह दिनों तक सभी नवविवाहिताएं पूरी निष्ठा से बिना नमक के सात्विक भोजन करती हैं. इस दौरान ससुराल से आए अरबा चावल, घी, चना और फलों का सेवन करती हैं. इतना ही नहीं प्रसाद स्वरूप ससुराल से आए अंकुरित बदाम महिलाओं के बीच वितरण करने की परंपरा है. इसके पीछे जीवन को अंकुरित करने की सोच है. कहा जाता है कि विवाह के बाद स्त्रियों का अपने मायके से अधिकार सीमित हो जाते हैं, इसलिए इस अवधि में उनकी व्रत, पूजा और भोजन का सामान ससुराल आता है.
दीये की बाती से देती हैं अग्निपरीक्षा
मधुश्रावणी के अंतिम दिन नवविवाहिता की परीक्षा जलते अग्नि की टेमी (बाती) से की जाती है जिसमें सौभाग्य के प्रतीक उनके पति के उपस्थित होने की परंपरा है. मान्यता है कि पूर्ण पतिव्रता नारी के शरीर में स्पर्श होते ही आग शीतल हो जाती है और उसे कुछ नहीं होता. इसके बाद सुहागिनों से नवविवाहिता को आशीर्वाद मिलते हैं और कथावाचिका को श्रद्धापूर्वक दान-दक्षिणा और विदाई दी जाती है.
और पढ़ें