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Patna News: रिटायरमेंट के बाद सीखा पेंटिग बनाना, केले के थंब से उकेरते हैं रामायण का दृश्य

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Patna News: घर के बगीचे में मौजूद सूख चुके आम के थंब यानी पेड़ से पिछले 4 सालों से चित्र बना रहे हैं. इनके चित्र में रामायण के दृश्यों को बनाया जाता है. अपशिष्ट और केले के थंब से बनायी गयी चित्रकारी को देखते हुए राज्यपाल ने इसे प्रचारित करने की सलाह दी.

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रिपोर्ट: सच्चिदानंद

पटना. ऐसा कहा जाता है कि बिना गुरु ज्ञान नहीं होता, लेकिन पटना के 70 वर्षीय सुखदेव प्रसाद ने इस उम्र में भी एकलव्य की कहानी को दोहराया है. जी हां, फुलवारी शरीफ के रहने वाले 70 वर्षीय सुखदेव प्रसाद भारतीय नौसेना से रिटायर हो चुके हैं. 15 साल तक नौकरी कर रिटायरमेंट के बाद खाली समय में घर के बगीचे में मौजूद सूख चुके आम के थंब यानी पेड़ से पिछले 4 सालों से चित्र बना रहे हैं. इनके चित्र में रामायण के दृश्यों को बनाया जाता है. अपशिष्ट और केले के थंब से बनायी गयी चित्रकारी को देखते हुए राज्यपाल ने इसे प्रचारित करने की सलाह दी.

पुआल, केले के थंब से बनाते हैं चित्र

सुखदेव प्रसाद बताते हैं कि लगभग 15 साल तक नौसेना में नौकरी करने के दौरान जब दूसरे देशों में जाता था, तो वहां पेंटिंग देखा करता था. जब रिटायर हुआ तो घर में गो सेवा समेत अन्य काम के बाद खाली समय में अपने बगीचे में मौजूद केले के थंब के छिलके, पत्तियों और बाकी चीजों से अलग-अलग चित्र बनाने की ठानी. पहले से कहीं कोई ट्रेनिंग नहीं थी तो शुरुआत में अच्छी पेंटिंग नहीं बनती थी. लेकिन लगातार प्रयास करते-करते अब अच्छी पेंटिंग बनने लगी है. इसे बनाने के लिए घर में बेकार पड़े केला का थंब, पुआल, धान की भूसी समेत अलग-अलग अपशिष्ट से अलग-अलग चित्र बनाता हूं.
रामायण के दृश्यों के चित्र को बनाते हैं

सुखदेव प्रसाद बताते हैं कि रिटायरमेंट के बाद आदमी एक दम खाली हो जाता है. ऐसे में रामचरितमानस पढ़ता हूं. रामायण में ही मौजूद दृश्यों को केले के थंब, पुआल और बेकार पड़ी चीजों से अलग-अलग दृश्यों की तस्वीरें बनाता हूं. राम लक्ष्मण और सबरी वाले दृश्य, अयोध्या, गंगा नदी पार करते हुए राम लक्ष्मण और सीता की तस्वीरें समेत कई चित्र बना चुके हैं. सुखदेव प्रसाद कहते हैं कि रामायण के बहुत सारे चित्र बनाना बाकी है. एक चित्र बनाने में लगभग 15 दिन का समय लगता है.
बीते दिनों बिहार दिवस कार्यक्रम समेत कई जगहों पर इनकी प्रदर्शनी लग चुकी है. ट्रेनिंग के सवाल पर सुखदेव प्रसाद ने बताया कि जब बनाना शुरू किया तो मालूम नहीं था की इसकी ट्रेनिंग कैसे मिलेगी. आर्ट कॉलेज में बुजुर्ग होने के नाते दाखिला भी नहीं मिलेगा, तो खुद से ही एकलव्य की तरफ बना-बना कर सीखने लगा.
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