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भारत में खेती पर निर्भर 65 लाख लोगों की कैसे हो बेहतरी, जानें-नोबेल विजेता क्रूगमैन की राय

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माइग्रेशन और इन्‍वेस्‍टमेंट दोनों के एक साथ इस्‍तेमाल से ही खेती-किसानी की समस्‍या का समाधान निकाला जा सकता है.

भारत में खेती पर निर्भर 65 लाख लोगों की कैसे हो बेहतरी, जानें-नोबेल विजेता क्रूगमैन की राय
भारत में शहरों की लगातार हो रही तरक्‍की और खेती-किसानी की लगातार बदहाली पर नोबेल पुरस्‍कार विजेता क्रूगमैन ने कहा कि माइग्रेशन और इन्‍वेस्‍टमेंट दोनों के एक साथ इस्‍तेमाल से ही इस समस्‍या का समाधान निकाला जा सकता है. जो लोग थोड़े कुशल हैं और खेती छोड़कर मैन्‍युफैक्‍चरिंग या किसी अन्‍य सेक्‍टर से जुड़ना चाहते हैं, उनके लिए रास्‍ते निकाले जाने चाहिए. मैंने बिद्युतीकरण पर मोदी की बात सुनी, लगभग 80 साल पहले अमेरिकी इकोनॉमिक पॉलिसी का मुख्‍य फोकस भी विद्युतीकरण ही था. देश की 50 फीसदी आबादी खेती-किसानी पर निर्भर है.

दुनिया को बदल सकता है भारत
बाहर से भारत को किस तरह देखते हैं? इस सवाल के जवाब में क्रूगमैन ने कहा कि भारत काफी विरोधाभाषी है. यहां अभी भी काफी गरीबी और पिछड़ापन है. लेकिन दूसरी तरफ तरक्‍की के प्रति कुछ कर गुजरने का जो माद्दा अभी दिख रहा है, उसकी कुछ साल पहले कल्‍पना भी नहीं की जा सकती थी. भारत में मीडिया से मुखातिब सॉफिस्टिकेटेड लोगों की संख्‍या लगातार बढ़ रही है. इसके साथ यहां एकैडमिक्‍स भी लगातार मजबूत हो रहा है. यहां के बिजनेस और बिजनेस करने वालों ने चौंकाने वाले नतीजे दिए हैं. उन्‍हें देखकर लगता है कि भारत तरक्‍की की राह पर तेजी से बढ़ रहा है और यह पूरी दुनिया को बदल सकता है.

भारत के दृष्टिकोण को गंभीरता से लेते हैं सभी
पीपीपी यानी खरीद क्षमता के आधार पर भारत के दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी होने से जुड़े सवाल पर क्रूगमैन ने कहा कि वैसे तो यह सच है, लेकिन भारत को इस मामले में थोड़ा और सही होने की जरूरत है. सुपरपॉवर होने के मानक लगातार बदल रहे हैं. भारत अभी भी चीन और यूएस से काफी पीछे है. फिलहाल भारत पहली रैंक वाले मुल्‍कों में शामिल नहीं है, लेकिन इंटरनेशनल लेवल पर भारत के दृष्टिकोण अब सभी मामलों में गंभीरता से लिया जाने लगा है.

मनी कंट्रोल के गौरव चौधरी और श्रेया नंदी के साथ एक एक्‍सक्‍लूसिव इंटरव्‍यू में उन्‍होंने कहा कि भारत को अब एक इकोनॉमिक सुपरपॉवर कहा जा सकता है, वैसे वह सेमी सुपरपॉवर बन चुका है. वहीं यूएस राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप के बारे में उन्‍होंने कहा कि वे प्रदूषण के मामले में अमेरिका को दिल्‍ली बना रहे हैं. क्रूगमैन न्‍यूज18 नेटवर्क के राइजिंग इंडिया समिट में हिस्‍सा लेने दिल्‍ली आए हुए थे. आगे पढ़‍िए उनका दिलचस्‍प इंटरव्‍यू-

क्रूडमैन ने कहा कि 1960 के दशक में भारत का प्रति व्‍यक्ति जीडीपी (पर-कैपिटा जीडीपी) जापान के बराबर था. इसी तरह 1950 के दशक में भारत का प्रति व्‍यक्ति जीडीपी इटली के बराबर था. लेकिन भारत ने उसके बाद तरक्‍की की उस तरह से कोशिश नहीं कि जैसी की जापान समेत कई अन्‍य मुल्‍कों ने की. कमोबेश यही हाल इटली का भी रहा है. 70 साल बाद भी इटली उतनी तरक्‍की नहीं कर सका है, जितना जापान समेत कुछ मुल्‍कों ने किया. हालांकि सच यह भी है कि समस्‍याओं का कभी भी पूरा समाधान नहीं निकाला जा सकता है.

बेरोजगारी के मसले पर भारत को कठघरे में खड़ा करने के साथ ही नोबेल अवार्ड विजेता इकोनॉमिस्‍ट पॉल क्रूगमैन ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ भी की है. मोदी को जापानी पीएम शिंजो अबे की तरह थोड़ा रेडिकल और नेशनलिस्‍ट बताते हुए उन्‍होंने कहा कि देश की इकोनॉमिक ग्रोथ के मामले में उनकी नीतियां और दिशा सही हैं. उनके अनुसार, मोदी प्रभावशाली आर्थिक सुधारक और सामान्‍य इम्‍प्रेशन के विपरीत अधिक उदारवादी शख्सियत हैं. हालांकि मोदी की नोटबंदी को मूर्खतापूर्ण कदम करार दिया.

राइट विंग द्वारा होता है संग्रहित सम्‍पत्ति का यूज
सम्‍पत्ति का चंद हाथों में संग्रह होने और तेजी से असमानता बढ़ने की स्थिति में उस संग्रहित सम्‍पत्ति का उपयोग लॉवर क्‍लासेज यानी गरीब लोगों का वोट पाने के लिए राइट विंग द्वारा किए जाने से जुड़ी अपनी थ्‍योरी पर उन्‍होंने कहा कि यह सच है. आज अमेरिकी राजनीति में यही हो रहा है. यह बात बड़ी संख्‍या में अन्‍य मुल्‍कों के मामले भी सच है. हालांकि उन्‍होंने यह भी कहा कि रिफॉर्म मूवमेंट के जरिए इसकी दिशा बदलकर असमानता कम की जा सकती है. उन्‍होंने लैटिन अमेरिकी देशों का उदाहरण देते हुए बताया कि पिछले 15 वर्षों के दौरान इन मुल्‍कों में असमानता कम हुई है, क्‍यों यहां की राजनीति में अहम रिफॉर्म मूवमेंट हुए हैं.

ट्रंप के ट्रेड वॉर से यूएस को नुकसान
अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप द्वारा छेड़ी गई टैरिफ वॉर पर उन्‍होंने कहा कि आखिरकार इससे जॉब बढ़ने के बदले थोड़ी कम ही होगी. इसके कारण अमेरिकियों के लिए अगर स्‍टील सेक्‍टर में जॉब निकलेगी तो ऑटो सेक्‍टर में कम होगी. टैरिफ वॉर से ट्रेड डेफिसिट भी कम होने वाला नहीं है. यहां तक कि स्‍टील कैपिटल पिट्सबर्ग में भी स्‍टील मिलों में जितने लोग काम करते हैं, उससे 10 गुना अधिक लोग हॉस्पिटल में काम करते हैं. इसलिए सिर्फ स्‍टील पर इम्‍पोर्ट ड्यूटी बढ़ाकर ट्रेड वॉर शुरू करने से काम नहीं चलेगा. बल्कि इस वॉर से वर्तमान ट्रेड एंड बिजनेस सिस्‍टम को ही नुकसान होगा.

31 मार्च के बाद न बेच पाएंगे और न खरीद पाएंगे इस तरह के सामान


सर्विस से पहले मैन्‍युफैक्‍चरिंग पर फोकस जरूरी
मेक इन इंडिया के जरिए मैन्‍युफैक्‍चरिंग पर मोदी सरकार के फोकस पर उन्‍होंने कहा कि पूरी दुनिया की बात करें तो अभी भी मैन्‍युफैक्‍चरिंग सेक्‍टर में जॉब बढ़ रही है. गरीब मुल्‍क अभी एग्रीकल्‍चर से मैन्‍युफैक्‍चरिंग की तरफ रुख ही कर रहे हैं. विकसित देशों में ही या फिर गरीब मुल्‍कों में ऊंचे तबके के लोग ही मैन्‍युफैक्‍चरिंग से सर्विस सेक्‍टर की तरफ मूव कर रहे हैं. भारत की बात करें तो अभी भी इसका एक्‍सपोर्ट मैन्‍युफैक्‍चरिंग आधारित नहीं है, बल्कि सर्विस सेक्‍टर का इसपर दबदबा है. इसीलिए यहां की बड़ी आबादी जो गरीबी या तंगहाली में जी रही है, उन्‍हें पहले मैन्‍युफैक्‍चरिंग में शिफ्ट करना होगा.

भारत बन सकता है मैन्‍युफैक्‍चरिंग हब
क्रूगमैन ने कहा कि भारत, चीन की तरह मैन्‍युफैक्‍चरिंग हब हो सकता है. चीन में मैन्‍युफैक्‍चरिंग कॉस्‍ट लगातार बढ़ रही है. ऐसे में अगर कोई यह सोचता है कि भारत मैन्‍युफैक्‍चरिंग हब बनने का अवसर गंवा चुका है तो वह गलत साबित होगा.

हालांकि मोदी सक्षम इकोनॉमिक मैनेजर हैं. वे गरीब आबादी के लिए भी कुछ अच्‍छा करने की कोशिश कर रहे हैं. उनकी दिशा सही है. मोदी जापानी पीएम शिंजो अबे की तरह ग्रेट नेशनलिस्‍ट होने के बावजूद सोयल लिबरल और महिलाओं के समर्थन हैं.

 

 

 

 

 

 

 

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