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बस कंडक्टर का बेटा बना एशिया का सबसे बड़ा रोबोटिक सर्जन, कैंसर मरीजों के लिए भगवान के कम नहीं 

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Dr. Surender Kumar Dabas: दिल्ली के छोटे से गांव से आने वाले डॉक्टर डबास आज भारत के ही नहीं बल्की एशिया के सबसे बड़े रोबोटिक सर्जन हैं. उन्होंने अब तक ढाई हजार से ज्यादा रोबोटिक सर्जरी  की है.

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दिल्ली: मंजिल मिल ही जाएगी भटकते हुए ही सही, गुमराह तो वो हैं जो घर से निकले ही नहीं… ये बातें भारत के सबसे बड़े रोबोटिक सर्जन डॉक्टर सुरेंद्र कुमार डबास पर सटीक बैठती हैं. कुछ ऐसे ही कहानी रही है डॉक्टर डबास की जिसने उन्हें आम से खास बना दिया. पिता दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (DTC) में बस कंडक्टर थे. लिहाजा डॉक्टर बनने के सपनों को हकीकत में बदलना आसान नहीं था. लेकिन अगर हौसले बुलंद हो तो कामयाबी मिल ही जाती है.

दिल्ली के छोटे से गांव से आने वाले डॉक्टर डबास आज भारत के ही नहीं बल्की एशिया के सबसे बड़े रोबोटिक सर्जन हैं. उन्होंने अब तक ढाई हजार से ज्यादा रोबोटिक सर्जरी  की है. इतना ही नहीं उन्होंने 20000 से ज्यादा जटिल कैंसर की भी सर्जरी की है. तो आईए जानते हैं डॉक्टर डबास की कहानी. आखिर कैसे एक छोटे से गांव का लड़का एशिया का सबसे बड़ा रोबोटिक सर्जन बन गया.
गांव से पढ़ाई
डॉक्टर सुरेंद्र कुमार डबास ने बताया कि वो ग्रामीण दिल्ली से आते हैं. क्लास 6 से लेकर बारहवीं तक की पढ़ाई डबास ने जवाहर नवोदय विद्यालय से की. डॉक्टर डबास बताते हैं कि वह बचपन में फाइटर पायलट बनना चाहते थे लेकिन कान में कुछ दिक्कत होने के कारण उन्हें वो सपना छोड़ना पड़ा. और फिर उन्होंने मेडिकल की तरफ जाने का मन बनाया.

घरवालों से नहीं मिली परमिशन
डॉ सुरेंद्र कुमार डबास ने कहा,  ‘मेरे पिताजी डीटीसी में बस कंडक्टर थे. बाद में वो प्रमोट होकर कैशियर बने. उनकी तनख्वाह बेहद कम थी और घर वालों को लगता था कि मेडिकल की पढ़ाई में बहुत ज्यादा पैसे लगते हैं, जिसे हम नहीं ओफर्ड कर पायेंगे. मेरी बहन टीचर बन गई थी, तो घर वालों का भी सपना था कि बेटा भी टीचर बने. लेकिन ऐसा कुछ नहीं था. जब मैं दिल्ली पीएमटी यानी मेडिकल का एंट्रेंस एग्जाम दिया तो मेरी अच्छी रैंक आई. मुझे डॉक्टर मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिल गया. यहां पूरीे साल की फीस मात्र ₹800 थी.
रोजाना 5 घंटे करते थे सफर
डॉक्टर डबास बताते हैं कि उनका गांव दिल्ली के बहादुरगढ़ के पास है जो कॉलेज से काफी दूर था. हॉस्टल के लिए अप्लाई किया तो दिल्ली का ही होने की नाते हॉस्टल नहीं मिला. इसलिए वह वह रोज तीन बसों को चेंज करके कॉलेज जाया करते थे. कॉलेज का टाइम सुबह 8:00 बजे का था तो वो अपना घर सुबह 5:30 छोड़ दिया करते थे जिससे वो टाइम से कॉलेज पहुंच सके.

फर्स्ट ईयर में हुई पिता की मृत्यु
डॉक्टर डबास जब एमबीबीएस के फर्स्ट ईयर में थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया. डॉक्टर डबास ने कहा, ‘पिताजी का देहांत अप्रैल में हुआ और मेरा सेमेस्टर एग्जाम जून में था. एक तो 5 घंटे ट्रैवल करने की वजह से मैंने कुछ पढ़ नहीं पाया था तो पिताजी की मृत्यु से मैं एकदम से टूट गया. लेकिन मैं वहां से प्रेरणा ली कि मैं अपने पिता का सपना पूरा करूंगा. फिर मैंने मन लगाकर पढ़ाई की अपना एमबीबीएस कंप्लीट किया’.
अमेरिका से डिग्री
डॉक्टर डबास ने इसके बाद भी पढ़ाई जारी रखी. 3 साल तक जर्नल सर्जन की पढ़ाई की. फिर कैंसर सर्जन की पढ़ाई कंप्लीट की. आपको बता दें की डॉक्टर डबास भारत के ऐसे पहले डॉक्टर हैं जिन्होंने शिकागो विश्वविद्यालय से रोबोटिक सर्जरी की पढ़ाई की है.

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Manish Kumar
मनीष कुमार पिछले 15 सालों से न्यूज की दुनिया में सक्रिय हैं. रेडियो, टीवी से लेकर डिजिटल मीडिया तक के सफर में कई संस्थानों के साथ काम किया है. पिछले 5 साल से News18Hindi में कार्यरत हैं. खेल से राजनीति और फिर ब...और पढ़ें
मनीष कुमार पिछले 15 सालों से न्यूज की दुनिया में सक्रिय हैं. रेडियो, टीवी से लेकर डिजिटल मीडिया तक के सफर में कई संस्थानों के साथ काम किया है. पिछले 5 साल से News18Hindi में कार्यरत हैं. खेल से राजनीति और फिर ब... और पढ़ें
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