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भूख से कारण युवक ने सिर्फ पत्‍नी को ही नहीं जलाया, बर्बाद कर दी तीन जिंदगियां, अब 11 साल बाद हुआ इंसाफ

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Delhi News Today: दिल्ली की अदालत ने गरीबी के कारण पत्नी की हत्या करने वाले गिरिराज किशोर भारद्वाज को आजीवन कारावास की सजा सुनाई. अदालत ने अपराध की गंभीरता को देखते हुए सजा में नरमी बरतने से इनकार किया.

युवक ने पत्‍नी को जलाया, बर्बाद कर दी तीन जिंदगियां, अब 11 साल बाद हुआ इंसाफकोर्ट ने सख्‍त रुख अख्तियार किया. (File Photo)
नई दिल्‍ली. क्‍या गरीबी के कारण तंग आकर पत्‍नी की हत्‍या करना कोई बहाना हो सकता है? दिल्‍ली की एक जिला अदालत में एक ऐसा ही मामला सामने आया. युवक ने कहा कि साल 2014 में उसने गरीबी से तंग आकर पत्‍नी की हत्‍या कर दी थी. इस मामले में शख्‍स ने कोर्ट के सामने रहम की गुहार लगाई थी. अतिरिक्‍त सत्र न्‍यायाधी वीरेंद्र कुमार खर्ता ने इस मामले को दुर्लभतम की श्रेणी में रखने से इनकार कर दिया. हालांकि इस जघन्‍य अपराध के लिए कोर्ट ने युवक को आजीवन कारावास की सजा सुनाई. वारदात को अंजाम देने के बाद पिता जेल चला गया जबकि एक बेटे को नशे की लत लग गई. दूसरा सब्‍जी बेचने लगा.

कोर्ट ने कहा कि इस मामले में दंड कम करने वाले कारणों की तुलना में अपराध की गंभीरता अधिक है. हालांकि यह मामला दुर्लभ से दुर्लभतम श्रेणी में नहीं आता, जिसके तहत किसी भी व्‍यक्ति को मृत्युदंड दिया जाता है. फिर भी अपराध की गंभीरता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. लिहाजा दोषी गिरिराज किशोर भारद्वाज उर्फ श्याम नागा को भारतीय दंड संहिता की धारा 302  यानी हत्या के तहत पहले ही दोषी ठहराया जा चुका था. अदालत में सजा तय करने के दौरान अतिरिक्त लोक अभियोजक पंकज कुमार रंगा ने मृत्युदंड की मांग करते हुए कहा कि आरोपी ने 24 सितंबर 2014 को ज्वलनशील पदार्थ डालकर अपनी पत्नी कुसुम को आग लगा दी थी.

मां की हत्‍या के बाद बेटा करने लगा नशा

अभियोजन पक्ष ने यह भी बताया कि इस जघन्य हत्या के बाद परिवार पूरी तरह से टूट गया. आरोपी का एक बेटा पढ़ाई छोड़कर नशे की लत में पड़ गया, जबकि दूसरा नाबालिग बेटा सब्जी विक्रेता के यहां काम करने लगा. दोषी पक्ष की वकील ने अदालत में दलील दी कि यह मामला ‘रेयर ऑफ द रेयरेस्ट’ नहीं है और आरोपी गरीब तबके से आता है, इसलिए सजा में नरमी बरती जाए. लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया कि सजा का उद्देश्य अपराध और पीड़ित के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करना है. न्यायाधीश ने कहा, “सजा के निर्धारण में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि अपराध का स्वरूप, पीड़ित और समाज पर उसका प्रभाव क्या रहा है. केवल गरीबी को सजा कम करने का आधार नहीं माना जा सकता.”

पिता की हरकत से बच्‍चों को भुगतना पड़ा

अदालत ने यह भी स्वीकार किया कि मृतक कुसुम के परिवार विशेष रूप से उसके बेटों को मानसिक आघात, कठिनाई, निराशा और सामाजिक हानि का सामना करना पड़ा है. इसके मद्देनज़र अदालत ने मामला दिल्ली राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (DSLA) को भेज दिया है ताकि पीड़ित परिवार को उचित मुआवजा मिल सके. इस फैसले ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि घरेलू हिंसा और महिला उत्पीड़न जैसे अपराधों में अदालतें अब गंभीर रुख अपना रही हैं और पीड़ितों के अधिकारों को भी प्राथमिकता दे रही हैं.

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Sandeep Gupta
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्‍त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्‍कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...और पढ़ें
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्‍त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्‍कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और... और पढ़ें
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