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भगवान श्रीकृष्ण ने यहां की थी सफेद शिवलिंग की स्‍थापना, पांडवों ने महाभारत युद्ध में जीत के लिए की थी प्रार्थना

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किसी भी शिवालय में आपने काले रंग के शिवलिंग को ही सामान्य रूप से देखा होगा. मगर रत्नदक्ष चिट्टा मंदिर में सफेद रंग के शिवलिंग स्थापित हैं. लोक कथाओं के मुताबिक रत्नदक्ष चिट्टा मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण ने शिवलिंग की स्थापना की थी.रत्नदक्ष चिट्टा मंदिर का स्‍थान लगभग सामान्य ऊंचाई से आठ फुट ऊंचाई पर है.

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अशोक यादव/कुरुक्षेत्र. कुरुक्षेत्र को धर्मनगरी कुरुक्षेत्र के नाम से जाना जाता है. यहां पर आपको जहां विश्व विख्यात एशिया की सबसे बड़े सरोवर ब्रह्मसरोवर के दर्शन होते हैं. हम आपको एक ऐसे शिव मंदिर के दर्शन करा रहे हैं जो पांच हज़ार साल पुराना है. कई कथाओं व धार्मिक ग्रंथों में इस स्थान का वर्णन मिलता है. महाशिवरात्रि और शिवरात्रि पर कावड़ जल के लिए भक्तों की भीड़ यहां पर लगती है.

कुरुक्षेत्र महाभारत युद्ध के लिए तो दुनियाभर में जाना जाता है लेकिन यहां की धार्मिक मान्यता के कारण हज़ारों साल बाद भी ये आस्था का केंद्र है. यहां पर रत्नदक्ष चिट्टा मंदिर है. मान्‍यता है कि मंदिर महाभारत कालीन है. इस मंदिर में शिवलिंग की स्‍थाापना भगवान श्रीकृष्‍ण ने की थी. इसके बाद पांडवों ने युद्ध में विजयश्री के लिए यहां पूजन किया था.
तैत्तरीय आरण्यक में कुरुक्षेत्र भूमि की सीमाओं का है उल्लेख
किसी भी शिवालय में आपने काले रंग के शिवलिंग को ही सामान्य रूप से देखा होगा. मगर रत्नदक्ष चिट्टा मंदिर में सफेद रंग के शिवलिंग स्थापित हैं. लोक कथाओं के मुताबिक रत्नदक्ष चिट्टा मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण ने शिवलिंग की स्थापना की थी. रत्नदक्ष चिट्टा मंदिर का स्‍थान लगभग सामान्य ऊंचाई से आठ फुट ऊंचाई पर है. मंदिर के पास उत्तर दिशा में प्राचीन सरोवर है जिसमें श्वेत वर्ण वाले शंकर स्थापित है. वेद में तैत्तरीय आरण्यक में सर्वप्रथम कुरुक्षेत्र भूमि की सीमाओं का उल्लेख है. इस स्थान के पास से सरस्वती नदी बहती है. वामन पुराण में यज्ञ के बारे में वर्णन मिलता है और वेदों के अनुसार 48 कोसीय कुरुक्षेत्र भूमि की परिक्रमा रंतुक यज्ञ स्थान से प्रारंभ की जाती है.

हजारों साल बाद भी भक्तों की आस्था बरकरार
ठाकुर द्वारा रत्नदक्ष चिट्टा मंदिर रंतुक यक्ष का स्थान बताया जाता है. इस स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण द्वारा रंतुक यक्ष महाराज को युद्ध में भाग लेने के लिए आने वाले राजाओं का पहरा देने के लिए नियुक्त किया गया था. यह स्थान 48 कोस के युद्ध मैदान के ईशान कोण यानी पूर्व-उत्तर में स्थित है.हज़ारों साल बीत जाने के बाद भी इस शिव मंदिर की आस्था बरकरार है.आज भी भक्त यहां पूजा-आराधना के लिए आते हैं. धर्मनगरी में यूं तो कई शिवलिंग और प्राचीन मंदिर हैं लेकिन इस शिवलिंग की अपनी ही विशेषता है. भगवान कृष्ण से जुड़ा होने के कारण भक्तों में इसकी महत्ता और ज्यादा है.
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ठाकुरद्वारा रत्नदक्ष चिट्टा मंदिर को मन जाता है रंतुक यक्ष का स्थान
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