कुरुक्षेत्र के इस मंदिर में चढ़ाया जाता है सोने व मिट्टी का घोड़ा, जानिए भद्रकाली मंदिर का रहस्य
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Agency:News18 Haryana
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प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, महाभारत युद्ध में जीत के बाद पांडवों ने इस शक्तिपीठ पर अपने घोड़े अर्पित किए थे. तभी से यहां घोड़े अर्पित करने की परंपरा चली आ रही है और श्रद्धालु आज भी यहां सोने, चांदी और मिट्टी के घोड़े अर्पित करते हैं.
अशोक यादव/कुरुक्षेत्र. कुरुक्षेत्र में स्थित शक्तिपीठ श्री देवीकूप भद्रकाली मंदिर अपने आप में ही इतिहास समेटे हुए है. इस मंदिर की मान्यता इतनी है की दूर-दूर से श्रद्धालु माता के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. मंदिर में सोना-चंदी और मिट्टी के घोड़े चढ़ाए जाते हैं.कुछ सालों पहले एक श्रद्धालु ने मंदिर में असली घोड़े भी चढ़ाए थे. यहां आम तौर पर मिट्टी के घोड़े ही चढ़ाए जाते हैं. जिनकी कीमत मात्र 15 से 20 रुपए है .
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने यहां पर चांदी के घोड़े चढ़ाए थे, जो आज भी मंदिर में मौजूद हैं. देश और प्रदेश के कई मुख्यमंत्री भी यहां पर घोड़े चढ़ाने आते रहे हैं. देश के गृह मंत्री अमित शाह की पत्नी भी कई बार यहां पर घोड़े चढ़ा चुकीं है.
पांडवों ने जीत के बाद अपने घोड़े किए थे अर्पित
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, महाभारत युद्ध में जीत के बाद पांडवों ने इस शक्तिपीठ पर अपने घोड़े अर्पित किए थे. तभी से यहां घोड़े अर्पित करने की परंपरा चली आ रही है और श्रद्धालु आज भी यहां सोने, चांदी और मिट्टी के घोड़े अर्पित करते हैं.
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, महाभारत युद्ध में जीत के बाद पांडवों ने इस शक्तिपीठ पर अपने घोड़े अर्पित किए थे. तभी से यहां घोड़े अर्पित करने की परंपरा चली आ रही है और श्रद्धालु आज भी यहां सोने, चांदी और मिट्टी के घोड़े अर्पित करते हैं.
भगवान श्री कृष्ण का हुआ था मुंडन
इस मंदिर में माता सती के दाएं पैर का टखना गिरा था. यह देश की 52 शक्तिपीठों में से एक है. धर्म भूमि पर यह सावित्री शक्ति पीठ भद्रकाली के नाम से विख्यात है. महाभारत के युद्ध से पहले पांडवो ने इसी सावित्री शक्ति पीठ में आराधना करके विजय की कामना की थी. महाभारत युद्ध के बाद भगवान श्री कृष्ण ने सबसे सुंदर घोड़ों की जोड़ी इस मंदिर में चढ़ाया था. प्रचलित कथाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम का मुंडन संस्कार भी इसी सावित्री शक्ति पीठ में हुआ था.
इस मंदिर में माता सती के दाएं पैर का टखना गिरा था. यह देश की 52 शक्तिपीठों में से एक है. धर्म भूमि पर यह सावित्री शक्ति पीठ भद्रकाली के नाम से विख्यात है. महाभारत के युद्ध से पहले पांडवो ने इसी सावित्री शक्ति पीठ में आराधना करके विजय की कामना की थी. महाभारत युद्ध के बाद भगवान श्री कृष्ण ने सबसे सुंदर घोड़ों की जोड़ी इस मंदिर में चढ़ाया था. प्रचलित कथाओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम का मुंडन संस्कार भी इसी सावित्री शक्ति पीठ में हुआ था.
नवरात्रों में भक्तों का लगता है तांता
पीठाअध्यक्ष सतपाल शर्मा बताते हैं कि वक्त के साथ भावना तो नहीं बदली लेकिन अंदाज जरुर बदल गया. अब असली घोड़ों के स्थान पर श्रद्धा अनुसार श्रद्धालु सोने चांदी , मिट्टी , चीनी मिट्टी आदि के घोड़े मंदिर में चढ़ाते हैं. कहा जाता है.नवरात्रों में मां के दरबार में विशेष पूजा-अर्चना होती है.
पीठाअध्यक्ष सतपाल शर्मा बताते हैं कि वक्त के साथ भावना तो नहीं बदली लेकिन अंदाज जरुर बदल गया. अब असली घोड़ों के स्थान पर श्रद्धा अनुसार श्रद्धालु सोने चांदी , मिट्टी , चीनी मिट्टी आदि के घोड़े मंदिर में चढ़ाते हैं. कहा जाता है.नवरात्रों में मां के दरबार में विशेष पूजा-अर्चना होती है.
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