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इस मंदिर में अवतरित होते हैं बारिश के देवता, आशीर्वाद लेने उमड़ती है भक्तों की भीड़

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मान्यता है कि प्राचीन काल में बारिश न होने की वजह से इस इलाके में भयंकर अकाल पड़ा. तभी लोगों ने इस मंदिर में मोस्टा देवता का यज्ञ कर उन्हें प्रसन्न किया और झमाझम बारिश होने लगी. तभी से ये मेला हर साल यहां होता है.

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हिमांशु जोशी/पिथौरागढ़. मंदिरों में लगने वाले मेले पहाड़ की सांस्कृतिक विरासत की पहचान रहे हैं. विकास के दौर में भी पहाड़वासियों के लिए इन मेलों का महत्व कम नहीं है. आस्था और मनोरंजन को समेटता एक ऐसा ही मेला है सोरघाटी पिथौरागढ़ का मोस्टामानू मेला. पिथौरागढ़ के इस मेले में उमड़ा जनसैलाब पहाड़ में मेलों के महत्व को बयां करता है. सदियों से पिथौरागढ़ जिले में मनाया जा रहा मोस्टा देवता का ये मेला धार्मिक आस्था का पर्याय है. मोस्टा देवता को यहां के लोग बारिश के देवता यानी वरुण देव के रूप में पूजते आए हैं.

मान्यता है कि प्राचीन काल में बारिश न होने की वजह से इस इलाके में भयंकर अकाल पड़ा. तभी लोगों ने इस मंदिर में मोस्टा देवता का यज्ञ कर उन्हें प्रसन्न किया और झमाझम बारिश होने लगी. तबसे ये मेला हर साल यहां होता है. मंदिर के पुजारी दिनेश चंद्र शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि हर साल ऋषि पंचमी को मोस्टा देवता का डोला उठता है. मेले को प्रसिद्धि मिलने के बाद अब इसका आयोजन 6 दिन तक होने की बात भी उन्होंने कही है.
1685 से हो रहा इस मेले का आयोजन
मोस्टमानु मेले में मुख्य आकर्षण मोस्टा देवता का ये डोला है, जिसे कंधा देने के लिए श्रद्धालुओं में होड़ लगी रहती है. मान्यता है कि जो भी इस डोले को कंधा देता है, उस पर मोस्टा देवता की कृपा सदैव बनी रहती है. इस मेले के इतिहास के बारे में जानकारी यहां के बड़े पुजारी नारायण दत्त कांडपाल ने दी. उन्होंने बताया कि 1685 से इस मेले का आयोजन किया जा रहा है. मोस्टा देवता की शक्ति से प्रभावित होकर यहां के पूर्वजों ने नेपाल से लाकर स्थापित किया था.

यह मेला पहाड़ के कृषि जीवन को तो दर्शाता ही है, पहाड़ के सांस्कृतिक इतिहास को भी बयां करता है. आज के आधुनिक दौर में जहां लोग अपनी जड़ों से दूर होते चले जा रहे हैं, वहीं पहाड़ों में मेले, पर्व आज भी लोगों को एकता के सूत्र में बांधने का ज़िम्मा उठाए हुए हैं.
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