हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण हैं सोलह संस्कार, जानें क्या होता है गर्भाधान संस्कार, जन्म से मृत्यु तक अहम हैं 16 कर्म
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Kya Hota Hai Garbhadhan Sanskar : हिंदू धर्म में 16 संस्कारों का विशेष महत्व है. जब किसी व्यक्ति का जन्म होता है तब से लेकर उसकी मृत्यु तक इन 16 संस्कारों का समय समय पर पालन करने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. 16 संस्कारों में सबसे पहले आता है गर्भाधान संस्कार आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से.

What is Garbhadhan Sanskar : धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सनातन धर्म सबसे पुराना और पहला धर्म माना जाता है. इस धर्म में 16 संस्कारों का विशेष महत्व बताया गया है. महर्षि वेदव्यास के अनुसार यह 16 संस्कार मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक विशेष स्थान रखते हैं. जो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का हिस्सा हैं. इन 16 संस्कारों में सबसे पहले गर्भाधान संस्कार आता है. जब मनुष्य गृहस्थ जीवन में प्रवेश करता है तब उसका सबसे पहला संस्कार गर्भाधान संस्कार के रूप में माना जाता है. इस विषय में अधिक जानकारी दे रहे हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा.
क्या होता है गर्भाधान संस्कार
16 संस्कारों में सबसे पहले संस्कार के रूप में गर्भाधान संस्कार को मान्यता प्राप्त है. दांपत्य जीवन में गर्भाधान संस्कार अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है. यदि माता-पिता उत्तम संतान की प्राप्ति चाहते हैं, तो गर्भधान संस्कार से पहले उन्हें अपना मन और तन पवित्र करना चाहिए. गर्भाधान संस्कार वैदिक काल में बेहद अहम माना जाता था. इस संस्कार में स्त्री पुरुष के शारीरिक मिलन का मुख्य योगदान होता है. प्राकृतिक दोषों से बचने के लिए गर्भधान संस्कार अहम भूमिका निभाता है. जिसकी वजह से गर्भ सुरक्षित रहता है. इस संस्कार में माता-पिता को उत्तम और सुयोग्य संतान की प्राप्ति होती है.
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गर्भधान संस्कार का महत्व
पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा बताते हैं कि पौराणिक समय में कन्या अपने लिए पुरुषों का चयन बड़ी सूझबूझ से करती थीं. वे अपने लिए शक्तिशाली साथी का चयन करती थीं. इसके पीछे मान्यता थी कि शक्तिशाली पुरुष तप करते हैं. जिसकी वजह से उनसे उत्पन्न होने वाली संतान सर्वशक्तिमान होती है.
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श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार
श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार, गर्भधान संस्कार कभी भी प्रतिपदा, पूर्णिमा, अमावस्या, अष्टमी या चतुर्दशी के दिन नहीं किया जाना चाहिए. भागवत गीता के अनुसार स्त्री पुरुष के लिए ये नियम बनाया गया कि वह सिर्फ एक संतान की उत्पत्ति करें. जो देश की और अपने कुल की रक्षा कर सकें. गर्भाधान संस्कार कभी भी शाम के समय या दिन में नहीं करना चाहिए. इसके लिए सर्वोत्तम समय रात्रि बताया गया है. दिन में गर्भाधान संस्कार से उत्पन्न संतान अल्प आयु होती है. वहीं शाम के समय गर्भाधान कार्य करने से उत्पन्न संतान राक्षस स्वभाव की मानी जाती है.
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