मैं कहानीकार नहीं, जेबकतरा हूं : मंटो
Agency:News18Hindi
Last Updated:
उर्दू के कहानीकार सअादत हसन मंटो का आज जन्मदिन है

"मैं बहुत कम-पढ़ा लिखा आदमी हूँ. वैसे तो मैंने दो दर्जन किताबें लिखी हैं और जिस पर आए दिन मुकदमे चलते रहते हैं. लेकिन जब कलम मेरे हाथ में न हो, तो मैं सिर्फ सआदत हसन होता हूँ!"
मंटो अपने एक लेख में खुद को कुछ यूं बयान करते हैं, भारत-पाकिस्तान दोनों के साझा और विवादित लेखक मंटो अगर आज होते तो अपना जन्मदिन मना रहे होते.
उनकी कहानियों के कलेवर को लेकर कई विवाद रहे और अश्लीलता परोसने के आरोप और मुकदमें भी उन पर चले.
लेकिन मंटो ने इन विवादों के बारे में अपने करीबी दोस्त साहिर लुधियानवी से एक बार कहा था, "बदनाम ही सही लेकिन गुमनाम नहीं हूँ मैं."
उर्दू के इस लेखक ने बाइस लघु कथा संग्रह, रेडियो नाटक के पांच संग्रह, रचनाओं के तीन संग्रह और व्यक्तिगत रेखाचित्र के दो संग्रह प्रकाशित किए.
बीते दो सालों में मंटो की कहानियों की चर्चा जितनी हुई है, उतनी शायद ही किसी और उर्दू कहानीकार की हुई हो और उसका कारण है उन पर और उनके साहित्य पर बन रही फ़िल्में.
हाल ही में मंटो की कहानियों पर बनी फ़िल्म 'मंटोस्तान' रिलीज़ हुई थी जिसमें उनकी छ कहानियों को फ़िल्माया गया था.
अभिनेत्री और निर्माता निर्देशक नंदिता दास भी मंटो की ज़िंदगी पर एक फ़िल्म लेकर आ रही हैं जिसमें मंटो का किरदार खुद नवाज़ निभा रहे हैं.
नंदिता ने न्यूज़ 18 हिंदी से कहा, "मंटो का प्रोजेक्ट अब अपने अंतिम चरण की ओर है, फ़िल्म का एक लुक आप सभी ने देखा भी है. समस्या ये है कि मंटो का रुतबा, उनका अस्तित्व इतना विराट है कि उसमें से आप क्या हटा लें और क्या नहीं, ये समझ ही नहीं आता."
अपनी कहानियों में विभाजन, दंगो और साम्प्रदायिकता पर जितने कटाक्ष मंटो ने किए उसे देखकर आश्चर्य होता है कि कोई कहानीकार सच लिखने के लिए किस हद तक निर्मम हो सकता है.
समाज के क्रूर सत्यों को दिखाने वाले उनके साहित्य को सराहा भी गया तो उसे अश्लील भी करार दिया गया.
1919 के जलियावाला बाग़ की घटना पर लिखी उनकी कहानी 'तमाशा', विभाजन के दर्द को दर्शाती 'टोबा टेक सिंह', विभाजन की विभीषिका से बर्बाद हुई एक बाप और बेटी की कहानी 'खोल दो' और मानवीय संवेदनाओं को शून्य कर देने वाली कहानी 'ठंडा गोश्त' साबित करती हैं कि मंटो, विवादित हैं, अश्लील हैं, लेकिन कालजयी भी हैं!
मंटो अपने एक लेख में खुद को कुछ यूं बयान करते हैं, भारत-पाकिस्तान दोनों के साझा और विवादित लेखक मंटो अगर आज होते तो अपना जन्मदिन मना रहे होते.
उनकी कहानियों के कलेवर को लेकर कई विवाद रहे और अश्लीलता परोसने के आरोप और मुकदमें भी उन पर चले.
लेकिन मंटो ने इन विवादों के बारे में अपने करीबी दोस्त साहिर लुधियानवी से एक बार कहा था, "बदनाम ही सही लेकिन गुमनाम नहीं हूँ मैं."
उर्दू के इस लेखक ने बाइस लघु कथा संग्रह, रेडियो नाटक के पांच संग्रह, रचनाओं के तीन संग्रह और व्यक्तिगत रेखाचित्र के दो संग्रह प्रकाशित किए.
बीते दो सालों में मंटो की कहानियों की चर्चा जितनी हुई है, उतनी शायद ही किसी और उर्दू कहानीकार की हुई हो और उसका कारण है उन पर और उनके साहित्य पर बन रही फ़िल्में.
हाल ही में मंटो की कहानियों पर बनी फ़िल्म 'मंटोस्तान' रिलीज़ हुई थी जिसमें उनकी छ कहानियों को फ़िल्माया गया था.
अभिनेत्री और निर्माता निर्देशक नंदिता दास भी मंटो की ज़िंदगी पर एक फ़िल्म लेकर आ रही हैं जिसमें मंटो का किरदार खुद नवाज़ निभा रहे हैं.
नंदिता ने न्यूज़ 18 हिंदी से कहा, "मंटो का प्रोजेक्ट अब अपने अंतिम चरण की ओर है, फ़िल्म का एक लुक आप सभी ने देखा भी है. समस्या ये है कि मंटो का रुतबा, उनका अस्तित्व इतना विराट है कि उसमें से आप क्या हटा लें और क्या नहीं, ये समझ ही नहीं आता."
अपनी कहानियों में विभाजन, दंगो और साम्प्रदायिकता पर जितने कटाक्ष मंटो ने किए उसे देखकर आश्चर्य होता है कि कोई कहानीकार सच लिखने के लिए किस हद तक निर्मम हो सकता है.
समाज के क्रूर सत्यों को दिखाने वाले उनके साहित्य को सराहा भी गया तो उसे अश्लील भी करार दिया गया.
1919 के जलियावाला बाग़ की घटना पर लिखी उनकी कहानी 'तमाशा', विभाजन के दर्द को दर्शाती 'टोबा टेक सिंह', विभाजन की विभीषिका से बर्बाद हुई एक बाप और बेटी की कहानी 'खोल दो' और मानवीय संवेदनाओं को शून्य कर देने वाली कहानी 'ठंडा गोश्त' साबित करती हैं कि मंटो, विवादित हैं, अश्लील हैं, लेकिन कालजयी भी हैं!
न्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।
और पढ़ें