होम /न्यूज /हरियाणा /मिसाल: 13 की उम्र में दूसरी शादी, 14वें साल में जुड़वां बच्चों की मां और अब इंटरनेशनल पहलवान

मिसाल: 13 की उम्र में दूसरी शादी, 14वें साल में जुड़वां बच्चों की मां और अब इंटरनेशनल पहलवान

पहलवान नीतू एक ऐसी लड़की हैं, जिनकी 13वें साल में दूसरी शादी हो गई और 14वें में उसने जुड़वा बच्‍चों को जन्‍म दिया. आगे चलकर वह पहलवान बनी और अंतरराष्‍ट्रीय प्रतियोगिता में मेडल जीतकर लाई.

पहलवान नीतू एक ऐसी लड़की हैं, जिनकी 13वें साल में दूसरी शादी हो गई और 14वें में उसने जुड़वा बच्‍चों को जन्‍म दिया. आगे चलकर वह पहलवान बनी और अंतरराष्‍ट्रीय प्रतियोगिता में मेडल जीतकर लाई.

पहलवान नीतू एक ऐसी लड़की हैं, जिनकी 13वें साल में दूसरी शादी हो गई और 14वें में उसने जुड़वा बच्‍चों को जन्‍म दिया. आगे ...अधिक पढ़ें

    पहलवान नीतू एक ऐसी लड़की हैं, जिनकी 13वें साल में दूसरी शादी हो गई और 14वें में उसने जुड़वा बच्‍चों को जन्‍म दिया. आगे चलकर वह पहलवान बनी और अंतरराष्‍ट्रीय प्रतियोगिता में मेडल जीतकर लाई.

    रोहतक के छोटे से गांव बेड़वा में रहने वाली नीतू न सिर्फ शादीशुदा हैं, बल्कि वह दो जुड़वां बच्चों की मां भी हैं. पति बेरोजगार हैं, घर में खाने तक के लाले पड़े हैं.

    महज 13 बरस की उम्र में शादी होने, फिर उसके टूटने और दोबारा घर बसाने, 14 साल की उम्र में जुडवां बच्चों की मां बनने तक कई मुश्किल स्थितियों से भी इसका पाला पड़ा है.

    ऐसी परिस्थितियों में कुश्ती की प्रैक्टिस शुरू कर नीतू देश की बेहतरीन महिला पहलवानों में अपनी जगह बनाने में कामयाब रही हैं.

    नेशनल गेम्स में जीता कांस्य पदक

    नीतू ने इसी साल केरल में हुए नेशनल गेम्स में कांस्य पदक जीता है. उन्होंने 2014 की सीनियर नेशनल चैंपियनशिप और रांची में हुई जूनियर नेशनल चैंपियनशिप में भी कांस्य पदक जीते.

    वह ब्राजील में हुई वर्ल्ड जूनियर रेसलिंग चैंपियनशिप में देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं. उनकी उपलब्धियां बेशक किसी करिश्मे की तरह लग रही हैं, लेकिन उनकी मुश्किलें पहाड़ जैसी हैं.

    भिवानी के दलित परिवार में जन्‍मी नीतू

    दरअसल, नीतू अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी है. जिसने देश में अनेक प्रतियोगिताओं में मेडल हासिल किए और वर्ल्ड रेस्लिंग चैंपियनशिप में भाग लिया. नीतू का जन्म 30 दिसम्बर 1995 में भिवानी शहर में हुआ. दलित और गरीब परिवार में पांच भाई-बहन के बीच मुश्किल से गुजारा होता था.

    गरीबी के कारण उसके माता पिता ने 13 साल की उम्र में ही उसकी शादी कर दी और वह भी बाप की उम्र से भी ज्यादा उम्र के मंदबुद्धि व्यक्ति के साथ. किसी कारण उसकी शादी टूट गई.

    एक महीने के बाद ही रोहतक जिले के बेडवा गांव में संजय के साथ उसकी शादी कर दी गई और चौदह साल की उम्र में ही दो जुड़वां बच्चों को जन्म दिया. उसके मन में कुश्ती को लेकर एक अटूट लालसा थी, जिसके चलते शादी के कई साल बाद कुश्ती में अपना भाग्य आजमाने लगी और साथ-साथ पढाई भी जारी रखी. पिछले साल दसवीं पास की और अब 11वीं क्लास में पढ़ रही हैं.

    ऐसी मुश्किल परिस्थितियों में भी नीतू ने हार नहीं मानी और प्रैक्टिस शुरू कर देश की बेस्ट महिला रेसलर्स में जगह बनाने में कामयाब रही हैं. नीतू ने इसी साल केरल में हुए नेशनल गेम्स में कांस्य पदक जीता है.

    उन्होंने 2014 की सीनियर नेशनल चैंपियनशिप और रांची में हुई जूनियर नेशनल चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीते. वह ब्राजील में हुई वर्ल्ड जूनियर रेसलिंग चैंपियनशिप में देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं.

    खिलाड़ी के लिए जरूरी डाइट तो छोड़िए, उनके पास दूध पीने तक के लिए पैसे नहीं हैं. कायदे से तो उनकी उपलब्धियों के लिहाज से सरकारी नौकरी मिल जानी चाहिए थी, पर अभी तक उसे पदक जीतने पर मिलने वाली पुरस्कार राशि तक नहीं मिली है.

    फटे जूतों से करती हैं प्रैक्‍टिस

    आज भी गरीबी के कारण वह फटे जूतों और फटी प्रैक्टिस ड्रेस में अभ्यास कर रही है. नीतू दो साल से रोहतक के छोटूराम स्टेडियम में मंदीप कोच की देखरेख में अभ्यास कर रही है. नीतू की खाने की खुराक भी उसे नहीं मिलती. कोच और अन्य साथी खिलाडी उसकी मदद करते हैं, कोई उसे अपनी पुरानी ड्रेस दे देता है तो कोई थोड़ा-बहुत घी दे देता है.

    नीतू ने बताया कि वह बहुत ही गरीब परिवार से है, उसके पांच भाई-बहन हैं. उसके परिवार वालों ने उसकी शादी तेरह साल में ही कर दी थी,पहली शादी टूटने के बाद दूसरी शादी कर दी. उसको चौदह साल की उम्र में दो जुड़वां बच्चे हुए. वह कुश्ती में इसलिए आई, क्योंकि उसे कुश्ती बहुत पसंद थी.

    'पति ने मेरा साथ दिया'

    मैंने अपने पति को अपने मन से कुश्ती खेल में जाने की बात कही तो उन्होंने मेरा साथ दिया. उस समय मेरा वजन भी करीब अस्सी किलो था. मैंने अपना वजन कम किया और उसके बाद योगा के कोच को कुश्ती में जाने की बात की तो उन्होंने मेरा हौसला बढ़ाया और भिवानी में ही एक कुश्ती कोच का पता दिया. जब मैंने उनको बताया की सर मेरी शादी हुई है और मेरे दो बच्चे भी हैं तो उन्होंने मेरा हौसला बढ़ाते हु मैरीकॉम का उदाहरण दिया.

    साढ़े तीन साल से कुश्‍ती खेल रही है नीतू

    नीतू ने बताया कि मुझे रोहतक में दो साल हो गए है, जबकि कुश्ती में साढ़े तीन साल. सरकार से मुझे कोई मदद नहीं मिली है. मुझे बहुत दिक्कत आती है. मेरे पति के पास भी कोई रोजगार नहीं है,वे मजदूरी करते हैं, घर का गुजारा भी नहीं चलता. ड्रेस और जूते भी फटे हुए हैं. मैंने इसी साल केरल में हुए नैशनल गेम्स में कांस्य पदक जीता है.

    'सरकारी नौकरी मिल जाए तो बड़ा अच्‍छा होता'

    2014 की सीनियर नेशनल चैंपियनशिप और रांची में हुई जूनियर नेशनल चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीते हैं. अगर सरकार कोई अस्थाई नौकरी दे दे तो वह और अच्छा खेल दिखा सकती है.

    नीतू के डाइट का इंतजाम करे सरकार: कोच

    नीतू के कोच मंदीप सिंह ने बताया कि नीतू इतनी कठिनाइयों के बाद इतना कर रही है वह बहुत-ही बड़ी बात है. वह बहुत ही गरीब परिवार से है. उसे बहुत दिक्क्त आती है. वह महम से रोहतक बस में आती है. उसने नेश्नल गेम्स में मेडल जीते हैं और वर्ल्ड जूनियर रेसलिंग चैंपियनशिप में देश का प्रतिनिधित्व किया है.

    अभी सरकार ने जो नई खेल नीति की घोषणा की है वह भी लागू नहीं हुई है. पहले एकेडमी में उसे दो हजार रुपये मिलते थे, वे भी अब नहीं मिल रहे हैं, क्योंकि वह एकेडमी भी अब बंद है. डाइट और कोई अन्य मदद नहीं मिल रही है. जो इसने कर दिखाया है, उसके हिसाब से सरकार को इसकी मदद करनी चाहिए.

    Tags: Bhiwani

    टॉप स्टोरीज
    अधिक पढ़ें