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हरियाणा के इस गुरुकुल की छात्राएं मेडिटेशन में है निपुण, आंखों पर पट्टी बांधकर पढ़ सकती है किताबें

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गुरुकुल में मोबाइल फोन पर भी पाबंदी है और यहां की छात्राएं मेडिटेशन में इतनी निपुण हैं कि आंखों पर पट्टी बांधकर भी किताबें पढ़ सकती हैं. किसी भी वस्तु को हाथ में लेकर उसका रंग और उस पर लिखे शब्दों को भी आसानी से पढ़ सकती हैं. गुरुकुल की छात्राओं को नित्य हवन- यज्ञ करने के अलावा आत्मरक्षा के गुर भी सिखाए जाते हैं.

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धीरेन्द्र चौधरी/रोहतक.रोहतक के रुड़की गांव में स्थित गुरुकुल अपने आप में काफी अद्भुत है.यहां केवल पढ़ाई ही नहीं बल्कि संस्कारों पर भी विशेष तौर पर ध्यान दिया जाता है. इससे भी ज्यादा खास बात है कि गुरुकुल की प्राचार्य डॉ. सुकामा आचार्य खुद बेटियों को सशक्त करने का प्रयास करती हैं. डॉ. सुकामा आचार्य को शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए राष्ट्रपति ने पद्मश्री सम्मान दिया था.

गुरुकुल में देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी छात्राएं शिक्षा ग्रहण करने के लिए आती हैं. छठी कक्षा से लेकर स्नातक तक की यहां पर पढ़ाई होती है और संस्कृत विषय पर मुख्य फोकस होता है. इस गुरुकुल की खासियत है कि यहां सिर्फ कैरियर पर फोकस नहीं होता, बल्कि संस्कारों पर विशेष ध्यान रहता है.वैदिक शिक्षा पद्धति से छात्राओं के विकास के लिए उन्हें शिक्षित किया जाता है.

गुरुकुल में मोबाइल फोन है प्रतिबंधित
प्राचार्य सुकामा छात्राओं को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा देती हैं. सभी छात्राओं को यहां अपने काम खुद से करना पड़ता हैं.यहां, पढ़ाई के साथ-साथ खाना बनाने में सहयोग के अलावा सभी छात्राएं अपने दैनिक काम खुद करती हैं. गुरुकुल में मोबाइल फोन पर भी पाबंदी है और यहां की छात्राएं मेडिटेशन में इतनी निपुण हैं कि आंखों पर पट्टी बांधकर भी किताबें पढ़ सकती हैं. किसी भी वस्तु को हाथ में लेकर उसका रंग और उस पर लिखे शब्दों को भी आसानी से पढ़ सकती हैं. गुरुकुल की छात्राओं को नित्य हवन- यज्ञ करने के अलावा आत्मरक्षा के गुर भी सिखाए जाते हैं.
प्राचार्य सुकामा का क्या है लक्ष्य
गुरुकुल की शिक्षा पद्धति से प्रभावित होकर ही डॉक्टर सुकामा आचार्य को उनके योगदान के लिए पद्मश्री अवार्ड दिया गया है. प्राचार्य सुकामा ने महज 9 साल की उम्र ही गुरुकुल शिक्षा ग्रहण की थी. उनकी शैक्षणिक उपलब्धि सूची काफी लंबी है. इसमें शास्त्री से लेकर पीएचडी तक की पढ़ाई शामिल है. डॉक्टर सुकामा का कहना है कि उनकी दिल से इच्छा है कि हमारा देश सिर्फ शिक्षित नहीं, बल्कि संस्कारवान भी बने और वैदिक शिक्षा पद्धति के माध्यम से हम इस लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं. आज के युग में बच्चों में संस्कार की बेहद आवश्यकता है, उन्हें एक अच्छा नागरिक बनाने के लिए नैतिक मूल्यों की शिक्षा देना अनिवार्य होना चाहिए.इसके लिए गुरुकुल शिक्षा सर्वोत्तम है.
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डॉ. सुकामा के संकल्प से बेटियां बन रहीं संस्कारवान
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