भारत-पाक शिमला समझौताः रात 12 बजकर 40 मिनट का वक्त, पत्रकार का पेन और ‘लड़का’ हुआ है!
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Agency:News18 Himachal Pradesh
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Indo-Pak Shimla Agreement: पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान में तनातनी बढ़ गई है. भारत ने सिंधू जल संधि सस्पेंड कर दी है. वहीं, पाकिस्तान ने शिमला समझौता रद्द कर दिया है.

शिमला. जम्मू एवं कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान में तनाव बढ़ गया है. भारत ने जहां सिंधू जल संधि सहित कई फैसले लेते हुए पाकिस्तान को करारा जवाब दिया है. वहीं, पाकिस्तान ने भी शिमला समझौता सस्पेंड कर दिया है. ऐसे में हम आपको हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में हुए इस समझौते के बारे में रोचक जानकारियां देने जा रहे हैं.
दरअसल, हिमाचल प्रदेश के शिमला में 3 जुलाई 1972 को शिमला समझौता हुआ था. रात के करीब 12 बजकर 40 मिनट पर भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तानी राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच इस समझौते को लेकर हस्ताक्षर किए गए थे. दावा किया जाता है कि शिमला समझौते पर उस दौरान एक पत्रकार विश्वम से पेन मांगा गया था. इस दौरान समझौते पर मुहर भी नहीं लग पाई थी, क्योंकि पाकिस्तानी दल अपना सामान सड़क मार्ग से दोपहर को भी भेज चुका था. इंदिरा गांधी ने भी मुहर के बिना दस्तखत किए. समझौते के दौरान मौजूद रहे शिमला के वरिष्ठ पत्रकार ने भी उस वक्त की यादें साझा की हैं.
समझौते के दौरान मौजूद रहे वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश चंद लोहमी बताते हैं कि ये सब इतना जल्दी में हुआ कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पास पेन तक नहीं था. उन्होंने वहां पर मौजूद पत्रकारों से ही पेन लेकर डॉक्यूमेंट साइन किया था. लोहमी बताते हैं कि उस वक्त वह 25 साल के थे, जब ये सब उनके सामने हुआ. दोनों नेताओं ने जिस टेबल पर समझौता किया, उस पर टेबल क्लॉथ तक नहीं था और उस पर कमरे का पर्दा उतारकर बिछाया गया था. यहां तक कि दस्तावेजों पर दोनों देशों की मुहर तक नहीं लग पाई, क्योंकि पाकिस्तानी दल अपना सामान सड़क मार्ग से दोपहर को भी भेज चुका था.
दरअसल, पाकिस्तान के पीएम रहे जुल्फिकार अली भुट्टो (तत्कालीन राष्ट्रपति) के साथ उनकी बेटी बेनज़ीर भुट्टो शिमला आई थी. क्योंकि उनकी पत्नी अंतिम समय में बीमार पड़ गई थी. अपनी किताब डॉटर ऑफ ईस्ट में बेनजीर भुट्टों ने लिखा है कि जिस कमरे में शिमला समझौता (2-3 जुलाई 1972 की मध्यरात्रि) हो रहा था, वहां वह मौजूद नहीं थी. वह बार्न्स कोर्ट (अब राजभवन है) के ऊपरी कक्ष में थीं. वह लिखती हैं कि समझौता होने के बाद पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल ने एक कोडवर्ड का इस्तेमाल करते हुए कहा था, “लड़का हुआ है.” यानी समझौता हो गया. बेनज़ीर ने नीचे से यह शोर सुना, लेकिन जब तक वह कमरे में पहुँचीं, ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो और इंदिरा गांधी पहले ही हस्ताक्षर कर चुके थे. बेनजीर किताब में लिखती हैं कि डेलीगेशन ने तय किया था कि अगर समझौता सिरे नहीं चढ़ा तो कहा जाएगा कि लड़की हुई है और इसका मतलब है कि बात नहीं बनी है.
अपनी किताब में बेनज़ीर ने लिखा था कि उस समय वह 19 साल की थीं और हार्वर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ रही थीं. समझौते के दौरान वह गर्मियों की छुट्टियों में पाकिस्तान आई थीं. उनकी माँ, बेगम नुसरत भुट्टो को शिमला जाना था, लेकिन उनकी तबीयत खराब होने के कारण ज़ुल्फ़िकार ने बेनज़ीर को अपने साथ ले जाने का फैसला किया. बेनजीर ने किताब में लिखा कि वह पाकिस्तान से चंडीगढ़ में लैंड हुए और फिर वहां से शिमला के अनाडेल मैदान में उनके विमान की लैडिंग हुई. किताब के पेज नंबर 52 से लेकर अगले कुछ पन्नों में बेनजीर ने अपनी यात्रा का जिक्र किया है.
बेनज़ीर ने अपनी किताब में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से अपनी मुलाकात का ज़िक्र किया है.
बेनज़ीर ने अपनी किताब में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से अपनी मुलाकात का ज़िक्र किया है. वह लिखती हैं कि जब वे शिमला के अनाडेल मैदान में हेलीकॉप्टर से उतरीं, तो इंदिरा गांधी ने साड़ी और रेनकोट पहना था. बेनज़ीर ने उन्हें “अस्सलाम अलैकुम” कहकर अभिवादन किया. यह मुलाकात उनके लिए यादगार थी, क्योंकि इंदिरा गांधी उस समय एक शक्तिशाली नेता थीं. बता दें कि यह किताब 1998 में आई थी.
शिमला में पाकिस्तान के साथ समझौता हुआ था.
बिगड़ गई थी बात
पाकिस्तान और भारत में शिखर सम्मेलन पांच दिन के लिए तय हुआ था. इस दौरान मंथन के बाद शिमला समझौते को लेकर बात नहीं बन पाई थी. लेकिन आनन फानन में यह समझौता हुआ. पाकिस्तान ने कुछ बातें मानने से इंकार कर दिया थ. पहली जुलाई 1972 को तय हो गया कि समझौता नहीं होगा और दो जुलाई को पाकिस्तानी दल के लिए विदाई भोज रखा गया. हालांकि, उम्मीद थी कि भोजन के दौरान शायद कोई बात बन जाएगी, लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो वहां मौजूद मीडिया समेत अधिकांश अधिकारियों ने भी सामान समेट लिया था.
बेनज़ीर भुट्टो की आत्मकथा Daughter of the East.
पाकिस्तान ने अपना सामान भेज भी दिया था. इस बीच टेलीग्राम के जरिए खबर भिजवा दी गई कि शिमला समझौता अब नहीं होगा. हालांकि राजभवन से रात के साढ़े नौ बजे संदेशा आय और इंदिरा गांधी और जुल्फिकार भुट्टो ने करीब एक घंटे की बातचीत की औऱ फिर दोबारा तय हुआ कि समझौता होगा और आज ही किया जाएगा.
पाकिस्तान और भारत में शिखर सम्मेलन पांच दिन के लिए तय हुआ था.
बेनज़ीर ने अपनी किताब में लिखा कि समझौते की प्रक्रिया के दौरान माहौल तनावपूर्ण रहा. कई बार ऐसा लगा कि बातचीत विफल हो जाएगी. इस दौरान ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो इतने निराश हो गए कि उन्होंने बेनज़ीर से कहा कि वह बिना समझौते के पाकिस्तान लौट जाएंगे. बेनज़ीर ने हैरानी से पूछा, “बिना समझौता किए हुए?” जिसका जवाब भुट्टो ने हाँ में दिया. हालांकि, आखिरी क्षणों में भुट्टो और इंदिरा गांधी के बीच गहन और निजी बातचीत हुई, जिसके बाद समझौता संभव हो सका था. बेनज़ीर ने इस प्रक्रिया को एक “रोलर कोस्टर” की तरह बताया है, जहाँ दोनों पक्ष अपनी-अपनी शर्तों पर अड़े थे. वह लिखती हैं कि
“मेरे पिता ने मुझे बताया कि इंदिरा गांधी एक कठिन नेगोशिएयर थीं, लेकिन वह उनकी बुद्धिमत्ता और धैर्य की कद्र करते थ.। आखिरी रात, जब समझौता होने की उम्मीद टूट रही थी, दोनों नेताओं ने एकांत में बात की और रास्ता निकाला था.”
“मेरे पिता ने मुझे बताया कि इंदिरा गांधी एक कठिन नेगोशिएयर थीं, लेकिन वह उनकी बुद्धिमत्ता और धैर्य की कद्र करते थ.। आखिरी रात, जब समझौता होने की उम्मीद टूट रही थी, दोनों नेताओं ने एकांत में बात की और रास्ता निकाला था.”
शिमला समझौता जिस टेबल पर हुआ था, वह अब भी राजभवन में मौजूद है.
अब भी मौजूद है वो टेबल
शिमला समझौता जिस टेबल पर हुआ था, वह अब भी राजभवन में मौजूद है. राजभवन के मुख्य हॉल में शान से रखा गया है. उस वक्त रखे गए दोनों देशों के छोटे ध्वज भी टेबल पर मौजूद हैं. समझौते की गवाह एक ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर टेबल के पीछे दीवार पर टंगी हुई है और दो फ्रेम की गई तस्वीरें भी रखीं गई हैं. तमाम सुरक्षा प्रबंधों के बावजूद इस टेबल को राजभवन जाकर देखने वालों को आज भी बिना बिलंब भीतर जाने की इज़ाज़त दी जाती है.
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