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Birthday Vithalbhai Patel: सरदार पटेल के वो भाई, जिनसे हमेशा रहीं उनकी दूरियां

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सरदार वल्लभभाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) के बड़े भाई विट्ठलभाई पटेल (Vitthalbhai Patel) का आज जन्मदिन है. विट्ठल पहले ही राजनीति में आ गए थे. कांग्रेस के बड़े नेताओं में थे. लेकिन उनकी अपने छोटे भाई से कभी नहीं बनी. यहां तक की वसीयत में अपने भाई को कुछ देने की बजाए उन्होंने नेताजी सुभाषचंद्र बोस (Netaji Subhaschandra Bose) को एकतिहाई संपत्ति लिख दी.

Birthday Vithalbhai Patel: सरदार पटेल के वो भाई, जिनसे हमेशा रहीं उनकी दूरियांसरदार वल्लभभाई पटेल के बड़े भाई विट्ठलभाई पटेल (file photo)
आज के ही दिन यानि 27 सितंबर 1873 में सरदार वल्लभभाई पटेल के बड़े भाई विट्ठलभाई पटेल का जन्म गुजरात के नाडियाड में हुआ था. विट्टलभाई भी अपने समय के बड़े नेता थे. सियासत में उनका कद बड़ा था. लेकिन अपने मशहूर भाई सरदार पटेल से उनकी कभी नहीं बनी. दोनों भाइयों के रिश्ते अच्छे नहीं थे. उनके संबंधों में लंबे समय तक कड़वाहट रही. बाद में ये तब देखने को भी मिली, जब बड़े भाई ने अपनी वसीयत में वल्लभभाई के नाम तो कुछ नहीं किया लेकिन अपनी एक तिहाई संपत्ति सुभाष चंद्र बोस के नाम कर गए.

विट्टलभाई पटेल पांच भाइयों में तीसरे नंबर पर थे. वो वल्लभभाई से दो साल बड़े थे. लेकिन दोनों के बीच एक ऐसा वाकया हुआ कि उनके संबंध जीवनभर के लिए बिगड़ गए. हालांकि वजह थी भी ऐसी.
दरअसल पटेल परिवार गुजरात के नांडियाड में रहता था. उनकी पारिवारिक स्थिति साधारण थी. इसी वजह से विट्टल और वल्लभ दोनों ने अपनी शुरुआती पढ़ाई अपने बलबूत ही की.

दोनों भाइयों ने पढ़ी वकालत
इसके बाद दोनों गुजरात में जूनियर वकील बन गए. हालांकि दोनों का सपना था कि वो बैरिस्टर बनें. दोनों अपनी आगे की पढ़ाई लंदन जाकर करना चाहते थे. वल्लभभाई पटेल ने इसके लिए काफी धन बचाया. जब उन्होंने इंग्लैंड जाने के लिए पासपोर्ट और टिकट मंगवाया तो डाकिये ये पोस्ट उनके बड़े भाई विट्ठल को दे दी.
इसलिए बड़े भाई से खफा हो गए वल्लभ
विट्ठल चुपचाप इसी टिकट पर लंदन चले गए. बाद में वल्लभ का इसका पता चला. वो इस बात से बहुत क्षुब्ध हुए. होना स्वाभाविक भी था. आखिर उन्होंने अपनी काफी बचत करके ये पैसा जोड़ा था. विट्ठलभाई पटेल के जीवनी लेखक गोवर्धन भाई पटेल ने अपनी किताब विट्टलभाई पटेल -लाइफ एंड टाइम्स में इसके बारे में लिखा है.
सरदार पटेल के बड़े विट्ठलभाई पटेल
ताजिंदगी दोनों के रिश्ते अच्छे नहीं रहे
छोटे भाई वल्लभभाई को दुख इस बात का भी था कि बड़े भाई ने उनके टिकट का इस्तेमाल किया और उन्हें भनक भी नहीं लगने दी. इसका असर पूरे जीवन उनके रिश्तों पर पड़ा. दोनों ने एक दूसरे से बाद में कभी संपर्क नहीं रखा.
बाद में वल्लभ भी धन का इंतजाम करके लंदन जाने में सफल रहे. वहां उन्होंने भी पढाई की.
दोनों ही भाई ब्रिटेन से बैरिस्टर की पढाई पूरी की. दोनों का करियर भी खासा सफल रहा. जिससे दोनों ने एक बड़ी संपत्ति अर्जित की. हालांकि विट्ठल ने बाद में विदेशों में भी अपने काफी प्रभावशाली संपर्क बनाए.
एक भाई गांधी का करीबी तो दूसरा उनका विरोधी
हालांकि दोनों भाई राजनीति में आए लेकिन विट्ठलभाई पटेल ने जहां कभी गांधीजी का नेतृत्व और दर्शन स्वीकार नहीं किया तो वल्लभ ने हमेशा गांधीजी को अपना पथप्रदर्शक माना. जबकि विट्ठल ने असहयोग आंदोलन खत्म करने के बाद लगातार गांधीजी की आलोचना की. वो चितरंजन दास और मोतीलाल नेहरू के साथ चले गए और स्वराज पार्टी बनाई.
इस वजह से सरदार पटेल और सुभाष के रिश्ते भी बिगड़े
बाद में इन रिश्तों की दरार तब देखने को मिली जबकि वियना में विट्ठल का बीमारी के बाद निधन हो गया और उन्होंने अपनी वसीयत में दो तिहाई हिस्सा सुभाष चंद्र बोस के नाम कर दिया. इसके चलते वल्लभ भाई पटेल और सुभाष चंद्र बोस के रिश्तों में भी काफी कड़वाहट घुली.

विट्ठलभाई पटेल का निधन वियना में हुआ. उस समय सुभाष बोस भी वहां मौजूद थे. यूं विट्ठल के रिश्ते सुभाष से काफी पहले से ही अच्छे थे
मुंबई के मेयर भी रहे
विट्ठलभाई पटेल केंद्रीय संविधान सभा के पहले निर्वाचित अध्यक्ष थे. वो मुंबई के मेयर भी बने. साथ ही बाम्बे काउंसिल के सदस्य भी रहे. वो 1920 के दशक और उसके बाद कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में थे. कई बार आजादी के आंदोलन में अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार भी किया. 1932 में विट्ठलभाई जेल में थे. अंग्रेजों ने उन्हें हेल्थ ग्राउंड पर रिहा कर दिया. मार्च 1932 में उन्होंने भारत छोड़ दिया. फिर वो कभी जिंदा भारत नहीं लौटे.
पहले वो अमेरिका गए. वहां भारत की आजादी पर लेक्चर देते रहे. फिर आस्ट्रिया आ गए. उस समय वहां सुभाष बोस भी थे. दोनों ने वहीं से संयुक्त बयान जारी करके गांधी की लीडरशिप को नाकाम कहा. इसकी आलोचना भी की.
आस्ट्रिया में एक क्लिनिक में हुई मौत
आस्ट्रिया में ही विट्ठल गंभीर तौर पर बीमार पड़े. उन्हें जिनेवा के करीब एक क्लिनिक में भर्ती कराया गया लेकिन वो बच नहीं सके. 22 अक्टूबर 1933 को उनकी मृत्यु हो गई. उन्होंने निधन से पहले गोवर्धन आई पटेल और कई लोगों की मौजूदगी में वसीयत लिखी. इस मौके पर सुभाष भी वहां मौजूद थे. वसीयत को लागू करने की जिम्मेदारी उन्होंने गोवर्धन पटेल और डॉक्टर डीटी पटेल को सौंपी.
वल्लभ ने क्यों उठाए वसीयत पर सवाल
जब वसीयत की मूल कॉपी नासिक जेल में ही वल्लभभाई को दिखाई गई तो उन्होंने वसीयत में हस्ताक्षर के प्रमाणीकरण पर कई सवाल उठाए, जो एक कानून जानकार होने के नाते बहुत वाजिब थे.
सुभाष जब 1938 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने तब वल्लभभाई पटेल ने उन्हें प्रस्ताव दिया कि वसीयत के धन को कांग्रेस की एक समिति को दे दिया जाना चाहिए. सुभाष सहमत थे लेकिन समिति को लेकर विवाद हो गया.
मामला अदालत तक पहुंचा
बाद में बांबे हाईकोर्ट में जस्टिस बीजे वाडिया ने वल्लभ को उनके बड़े भाई की संपत्ति का कानूनी वारिस माना. वल्लभभाई ने घोषणा की कि ये संपत्ति विट्ठलभाई मेमोरियल ट्रस्ट को दी जाएगी. सुभाष ने इसके खिलाफ अपील की. शरतचंद्र बोस उनके वकील थे. लेकिन वो कोर्ट में ये मुकदमा हार गए.
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