Birthday Manmohan singh : कैंब्रिज में इस वजह से दूसरे लड़कों से शर्माते थे मनमोहन सिंह
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पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह आज 91 साल के हो गए. 26 सितंबर को उनका जन्मदिन होता है. मनमोहन ऐसे प्रधानमंत्री थे, जो देश के आर्थिक विशेषज्ञ प्राइम मिनिस्टर थे. सही मायनों में देश को 90 के दशक में विश्व बाजार और उदारीकरण से जोड़ने का श्रेय उनकी नीतियों को जाता है, जिसके कारण आर्थिक तौर पर देश मजबूती की ओर बढ़ना शुरू हुआ

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) का आज जन्मदिन है. आज ही के दिन 1932 में पाकिस्तान (Pakistan) के पंजाब प्रांत में एक सिख परिवार में मनमोहन सिंह का जन्म हुआ था. मनमोहन सिंह ने देश की दिशा और दशा तय करने में अहम योगदान दिया है. उनके हिस्से कामयाबियों के कई तमगे हैं. आज वह 91 साल के हो गए.
एक अर्थशास्त्री बिना किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि के प्रधानमंत्री के पद पर बैठा. उसकी दूरदृष्टि की वजह से ही भारत जैसा विकासशील देश, विकसित देशों की दिशा में एक कदम नजदीक आ गया. मनमोहन सिंह जवाहर लाल नेहरू के बाद ऐसे दूसरे प्रधानमंत्री हैं, जो एक टर्म पूरा करने के बाद दूसरी बार फुल टर्म के लिए प्रधानमंत्री बने.
वो पहले सिख हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी हासिल हुई. वो देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के कुछ चुनिंदा सबसे ज्यादा पढ़े लिखे प्रधानमंत्रियों में से एक रहे हैं. अर्थशास्त्र के अलावा उन्हें कई विषयों की मानद डिग्रियां हासिल हैं. डॉक्टर ऑफ लॉ, डॉक्टर ऑफ सिविल लॉ, डॉक्टर ऑफ सोशल साइंसेज, कई यूनिवर्सिटीज़ के डॉक्ट्रेट ऑफ लेटर्स की उपाधि के साथ विदेशी यूनिवर्सिटी तक ने उन्हें मानद उपाधि दे रखी हैं.
पक्के तौर पर नहीं कह सकते आज ही है मनमोहन सिंह का जन्मदिन
मनमोहन सिंह के बारे में एक दिलचस्प तथ्य ये है कि वो हिंदी नहीं पढ़ सकते. उनके हिंदी के भाषण देखकर आपको इस बात का अंदाजा हो सकता है. मनमोहन सिंह को जब हिंदी बोलने की जरूरत होती है तो उन्हें उर्दू में लिखकर दिया जाता है. भाषण देने से पहले वो बाकायदा प्रैक्टिस करते हैं.
मनमोहन सिंह के बारे में एक दिलचस्प तथ्य ये है कि वो हिंदी नहीं पढ़ सकते. उनके हिंदी के भाषण देखकर आपको इस बात का अंदाजा हो सकता है. मनमोहन सिंह को जब हिंदी बोलने की जरूरत होती है तो उन्हें उर्दू में लिखकर दिया जाता है. भाषण देने से पहले वो बाकायदा प्रैक्टिस करते हैं.
एक मजेदार बात ये है कि मनमोहन सिंह भले ही 26 सितंबर को अपना जन्मदिन मनाते हैं लेकिन ये दावे के साथ नहीं कहा जा सकता है कि उनका जन्म 26 सितंबर को ही हुआ है. दरअसल मनमोहन सिंह की जन्म की तारीख उनके परिवार में किसी को याद नहीं थी.
बहुत ही कम उम्र में मनमोहन सिंह ने अपनी मां को खो दिया. उनकी देखभाल दादी ने की. जब पहली बार स्कूल में एडमिशन की बारी आई तो दादी ने मनमोहन सिंह के जन्म की तारीख 26 सितंबर लिखवाई, हालांकि उन्हें पक्के तौर पर मनमोहन सिंह की जन्म की तारीख याद नहीं थी. स्कूल के सर्टिफिकेट में चढ़ी जन्म की तारीख ही उनकी आधिकारिक जन्मतिथि हो गई.
मनमोहन सिंह के जन्मदिन की तारीख उनके परिवार में किसी को याद नहीं थी
कैंब्रिज में बिताए मनमोहन सिंह के यादगार लम्हे
बचपन में मनमोहन सिंह का वक्त अभावों में गुजरा. लेकिन पढ़ने-लिखने में उन्होंने कभी कोताही नहीं बरती. पाकिस्तान के पंजाब में जिस गाह इलाके में उनका परिवार रहा करता था, वो पिछड़ा इलाका था. गांव में न बिजली थी और न स्कूल. वो मीलों चलकर स्कूल पढ़ने जाया करते थे. किरोसीन से जलने वाले लैंप में उन्होंने पढ़ाई की है. अक्सर कई मौकों पर वो अपनी कामयाबी के पीछे अपनी शिक्षा का हाथ बताते हैं.
बचपन में मनमोहन सिंह का वक्त अभावों में गुजरा. लेकिन पढ़ने-लिखने में उन्होंने कभी कोताही नहीं बरती. पाकिस्तान के पंजाब में जिस गाह इलाके में उनका परिवार रहा करता था, वो पिछड़ा इलाका था. गांव में न बिजली थी और न स्कूल. वो मीलों चलकर स्कूल पढ़ने जाया करते थे. किरोसीन से जलने वाले लैंप में उन्होंने पढ़ाई की है. अक्सर कई मौकों पर वो अपनी कामयाबी के पीछे अपनी शिक्षा का हाथ बताते हैं.
मनमोहन सिंह बचपन से ही शर्मीले रहे हैं. बीबीसी के कॉरेस्पोंडेंट मार्क टुली से बात करते हुए एक बार उन्होंने बताया था कि कैंब्रिज में पढ़ाई के दौरान उन्होंने यादगार लम्हे बिताए. वो कैंब्रिज में इकलौते सिख थे. वहां रहने के दौरान पूरे वक्त उन्होंने ठंडे पानी से नहाकर बिताया. इसके पीछे मजेदार कहानी है.
दरअसल नहाते वक्त वो अपने लंबे बालों की वजह से शर्मिंदगी महसूस करते थे. वो दूसरे लड़कों के बीच अपने लंबे बाल दिखाने से बचना चाहते थे. ये तभी मुमकिन था जब वो अकेले नहाते. सारे लड़के जब गर्म पानी आता तो एकसाथ लाइन लगाकर खड़े हो जाते और नहाते. मनमोहन सिंह सारे लड़कों के नहा लेने के बाद नहाते थे. तब तक गर्म पानी खत्म हो चुका होता और उन्हें ठंडे पानी से नहाना पड़ता.
जवाहरलाल नेहरू ने भी दिया था राजनीति में आने का ऑफर
मनमोहन सिंह को राजनीति में लाने के पीछे पीवी नरसिम्हा राव का हाथ है. नरसिम्हा राव ने उन्हें अपनी सरकार में वित्तमंत्री बनाया. 1991 में वित्तमंत्री रहते हुए मनमोहन सिंह ने देश में उदारीकरण की शुरुआत की. देश को आर्थिक संकट से उबारने में मनमोहन सिंह का बड़ा हाथ रहा.
मनमोहन सिंह को राजनीति में लाने के पीछे पीवी नरसिम्हा राव का हाथ है. नरसिम्हा राव ने उन्हें अपनी सरकार में वित्तमंत्री बनाया. 1991 में वित्तमंत्री रहते हुए मनमोहन सिंह ने देश में उदारीकरण की शुरुआत की. देश को आर्थिक संकट से उबारने में मनमोहन सिंह का बड़ा हाथ रहा.
मनमोहन सिंह हिंदी में भाषण देने से पहले उसकी प्रैक्टिस करते हैं
हालांकि उन्हें राजनीति में आने का ऑफर काफी पहले मिला था. 1962 में पहली बार जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें अपनी सरकार में शामिल होने का न्योता दिया था. लेकिन मनमोहन सिंह ने इसे स्वीकार नहीं किया. उस वक्त वो अमृतसर के कॉलेज में पढ़ा रहे थे और वो टीचिंग छोड़ने को तैयार नहीं हुए.
मनमोहन सिंह को कैसे मिली प्रधानमंत्री की कुर्सी?
मनमोहन सिंह को एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर कहा जाता है. इस नाम से उन पर किताब लिखी गई और फिल्म बनी. ये सच है कि 2004 में उनके प्रधानमंत्री बनने का मौका अचानक आया. दरअसल 2004 में एनडीए का इंडिया शाइनिंग नारा फ्लॉप रहा था. चुनावों के बाद कांग्रेस सबसे बड़ा संसदीय दल बन गई.
मनमोहन सिंह को एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर कहा जाता है. इस नाम से उन पर किताब लिखी गई और फिल्म बनी. ये सच है कि 2004 में उनके प्रधानमंत्री बनने का मौका अचानक आया. दरअसल 2004 में एनडीए का इंडिया शाइनिंग नारा फ्लॉप रहा था. चुनावों के बाद कांग्रेस सबसे बड़ा संसदीय दल बन गई.
सवाल प्रधानमंत्री के नाम को लेकर उठा. उस वक्त सोनिया गांधी का विदेशी मूल का मुद्दा तूल पकड़ रहा था. कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने से इनकार कर दिया. इसको लेकर कांग्रेस में कई दिन तक ड्रामा चलता रहा. सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनवाने के लिए कांग्रेस के नेता गंगाचरण राजपूत ने कनपटी पर रिवॉल्वर रख कर प्रदर्शन भी किया था. हालांकि इसके बाद भी गंगाचरण राजपूत पार्टी में हाशिए पर चले गए.
सोनिया गांधी के सामने एक निर्विवाद व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाने की चुनौती थी. प्रधानमंत्री पद के लिए अर्जुन सिंह और प्रणब मुखर्जी की दावेदारी मजबूत थी. दोनों नेता सोनिया गांधी के करीबी थे लेकिन दोनों में किसी एक को चुनना पार्टी के भीतर खेमेबंदी को बढ़ावा देता. इसलिए डॉक्टर मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बन गए.
मनमोहन सिंह 2004 से लेकर 2014 तक प्रधानमंत्री रहे
क्या मनमोहन सिंह कमजोर प्रधानमंत्री थे?
मनमोहन सिंह राजनीतिक व्यक्ति नहीं रहे हैं. इसलिए भी उन्हें मोस्ट अंडर एस्टीमेटेड राजनीतिक शख्सियत माना जाता है. अपने कार्यकाल में उन्होंने कई मजबूत फैसले भी लिए. 2008 में अमेरिका से सिविल न्यूक्लियर डील पर सरकार का दांव लगाना आसान नहीं था. मनमोहन सिंह ने हिम्मत दिखाई. उन्होंने पार्टी के कहने पर कर्ज माफी जैसा बड़ा काम किया था.
मनमोहन सिंह राजनीतिक व्यक्ति नहीं रहे हैं. इसलिए भी उन्हें मोस्ट अंडर एस्टीमेटेड राजनीतिक शख्सियत माना जाता है. अपने कार्यकाल में उन्होंने कई मजबूत फैसले भी लिए. 2008 में अमेरिका से सिविल न्यूक्लियर डील पर सरकार का दांव लगाना आसान नहीं था. मनमोहन सिंह ने हिम्मत दिखाई. उन्होंने पार्टी के कहने पर कर्ज माफी जैसा बड़ा काम किया था.
2009 में मनमोहन सिंह के सामने बीजेपी ने लाल कृष्ण आडवाणी को खड़ा किया था. उन्हें कमजोर प्रधानमंत्री साबित करने की कोशिशें हुईं. ब्लैक मनी का मुद्दा गरमाया. लेकिन इसके बावजूद मनमोहन सिंह 2009 में दोबारा प्रधानमंत्री बने. बीजेपी के लिए मनमोहन सिंह पर हमला करना भारी पड़ा. हालांकि 2014 में यही स्थिति बदल गई. लेकिन तब तक यूपीए सरकार पर आरोपों का पहाड़ खड़ा हो गया था.
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