Explainer: क्या हुआ था जब 3 अरब साल पहले पृथ्वी से टकराया था उल्कापिंड, एवरेस्ट से 4 गुना था बड़ा
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3 अरब साल पहले पृथ्वी से एक उल्कापिंड टकराया था. नई रिसर्च में खुलासा हुआ है कि यह उल्कापिंड उस चट्टान से 200 गुना बड़ा था जिसने डायनासोर को खत्म किया था. यह आज के एवरेस्ट से चार गुना बड़ा था. हैरानी की बात यह पता चली है कि बाकी उल्कापिंडों की तरह यह भी विनाशकारी तो था, लेकिन इसके टकराने से बने हालात, पृथ्वी पर जीवन पपनपे का कारण बने थे.

पृथ्वी के इतिहास को लेकर जो अध्ययन हुए हैं उनमें हमारे ग्रह पर गिरने वाले उल्कापिंडों या क्षुद्रग्रहों के गिरने की घटना की अहम रही है. यह बहस आज भी जारी है कि पृथ्वी पर इतना सारा पानी पहले से था या फिर उल्कापिंडों की बारिश से आया था. इस बीच एक नई रिसर्च में पाया गया है कि दक्षिण अफ्रीका में ऐसे सबूत मिले हैं कि 3 अरब साल पहले जो उल्कापिंड गिरा था. इस विनाश फैलाने के बाद ऐसे हालात बना दिए थे जिससे पृथ्वी पर जीवन तेजी से पनपने लगा था.
कहां गिरा था यह उल्कापिंड?
खास बात ये थी कि ये उल्कापिंड डायनासोर खत्म करने वाले क्षुद्रग्रह से 200 गुना और आज के एवरेस्ट से चार गुना बड़ा था. साइंटिस्ट्स की एक टीम ने दक्षिण अफ्रिका के ईस्टर्न बार्बेटन ग्रीनबेल्ट इलाके की चट्टानों के नमूनों का अध्ययन किया और 3 अरब साल पुराने टकराव की जानकारी हासिल की. यह इलाका पृथ्वी उन सबसे पुरानी जगहों में से एक है जहां उल्कापिंड के टकराव के संकेत आज भी देखे जा सकते हैं.
खास बात ये थी कि ये उल्कापिंड डायनासोर खत्म करने वाले क्षुद्रग्रह से 200 गुना और आज के एवरेस्ट से चार गुना बड़ा था. साइंटिस्ट्स की एक टीम ने दक्षिण अफ्रिका के ईस्टर्न बार्बेटन ग्रीनबेल्ट इलाके की चट्टानों के नमूनों का अध्ययन किया और 3 अरब साल पुराने टकराव की जानकारी हासिल की. यह इलाका पृथ्वी उन सबसे पुरानी जगहों में से एक है जहां उल्कापिंड के टकराव के संकेत आज भी देखे जा सकते हैं.
कितना बड़ा था यह उल्कापिंड?
एस2 उल्कापिंड उन बहुत से टुकड़ों में से एक था जो स्पेस से पृथ्वी के बनने के बाद यहां आए थे. एस2 का आकार 40 से 60 किलोमीटर का था और इसका आकार डायनासोर मारने वाले क्षुद्रग्रह से 200 गुना अधिक था जो कि केवल 10 मिलोमीटर चौड़ा था और एवरेस्ट के ही आकार का था. वहीं एस2 एवरेस्ट से चार गुना बड़ा था.
एस2 उल्कापिंड उन बहुत से टुकड़ों में से एक था जो स्पेस से पृथ्वी के बनने के बाद यहां आए थे. एस2 का आकार 40 से 60 किलोमीटर का था और इसका आकार डायनासोर मारने वाले क्षुद्रग्रह से 200 गुना अधिक था जो कि केवल 10 मिलोमीटर चौड़ा था और एवरेस्ट के ही आकार का था. वहीं एस2 एवरेस्ट से चार गुना बड़ा था.
यह टकराव बहुत ही ज्यादा बड़ा था जिससे पूरी पृथ्वी पर सुनामी आ गई थी. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)
तब अंतरिक्ष से मलबे गिरा था उल्कापिंड
नए शोध की प्रमुख लेखिका और हार्वर्ड विश्वविद्यालय की प्रोफेसर नादजा ड्राबोन कहती हैं, “हम जानते हैं कि पृथ्वी के बनने के बाद भी अंतरिक्ष में बहुत सारा मलबा उड़ रहा था, जो पृथ्वी से टकरा सकता था.” उनका कहना है कि अब उनकी टीम ने पाया है कि यह जीवन इस तरह के कई विशाल टकरावों से बचने में सक्षम था, बल्कि असल में इस टकराव के बाद तो वह तेजी से पनपा था. उस टकराव के समय पृथ्वी पर जीवन का सरल रूप था जिसमें ग्रह पर एकल कोशिका वाले सूक्ष्मजीव रह रहे थे.
नए शोध की प्रमुख लेखिका और हार्वर्ड विश्वविद्यालय की प्रोफेसर नादजा ड्राबोन कहती हैं, “हम जानते हैं कि पृथ्वी के बनने के बाद भी अंतरिक्ष में बहुत सारा मलबा उड़ रहा था, जो पृथ्वी से टकरा सकता था.” उनका कहना है कि अब उनकी टीम ने पाया है कि यह जीवन इस तरह के कई विशाल टकरावों से बचने में सक्षम था, बल्कि असल में इस टकराव के बाद तो वह तेजी से पनपा था. उस टकराव के समय पृथ्वी पर जीवन का सरल रूप था जिसमें ग्रह पर एकल कोशिका वाले सूक्ष्मजीव रह रहे थे.
क्या हुआ था टकराव से?
प्रोफेसर ड्राबोन और उनकी टीम ने चट्टानों के महीने टुकड़ों की खोज की जो टकराव के बाद छूट गए थे. उन्होंने सैकड़ों किलो की चट्टानों का प्रयोगशाला में विश्लेषण किया जिसके बाद उन्होंने उस घटना का फिर से निर्माण करने की कोशिश की जिसने उनके मुताबिक 500 किलोमीटर का क्रेटर बनाया और चट्टानों का चूरा बना कर रख दिया था. तेजी से फैलते हुए चट्टानों के टुकड़ों ने पूरी पृथ्वी पर एक बादल बना लिया था.
प्रोफेसर ड्राबोन और उनकी टीम ने चट्टानों के महीने टुकड़ों की खोज की जो टकराव के बाद छूट गए थे. उन्होंने सैकड़ों किलो की चट्टानों का प्रयोगशाला में विश्लेषण किया जिसके बाद उन्होंने उस घटना का फिर से निर्माण करने की कोशिश की जिसने उनके मुताबिक 500 किलोमीटर का क्रेटर बनाया और चट्टानों का चूरा बना कर रख दिया था. तेजी से फैलते हुए चट्टानों के टुकड़ों ने पूरी पृथ्वी पर एक बादल बना लिया था.
इस टकराव ने पूरी पृथ्वी को चट्टाने के चूरों के बादलों से ढक दिया था. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Shutterstock)
फिर हुई विनाश करने वाली बारिश
प्रोफेसर ड्राबोन उस समय के हालात बताते हुए कहती हैं, “फर्ज कीजिए कि बादल बरसाने वाला बादल हो, लेकिन उसमें से पानी की बूंदो की जगह पिघली हुई चट्टान की बूंदें आसमान से गिर रही हों.” इसकी वजह से ऐसी सुनामी आई जिसने समुद्र तल को तहस नहस कर डाला, महासागरों को उबलता हुआ छोड़ दिया जिनमें से दसियों मीटर तक का पानी भाप बन कर उड़ गया था.
प्रोफेसर ड्राबोन उस समय के हालात बताते हुए कहती हैं, “फर्ज कीजिए कि बादल बरसाने वाला बादल हो, लेकिन उसमें से पानी की बूंदो की जगह पिघली हुई चट्टान की बूंदें आसमान से गिर रही हों.” इसकी वजह से ऐसी सुनामी आई जिसने समुद्र तल को तहस नहस कर डाला, महासागरों को उबलता हुआ छोड़ दिया जिनमें से दसियों मीटर तक का पानी भाप बन कर उड़ गया था.
पहले खत्म हुआ फिर तेजी से पनपा जीवन
हवा का तापमान 100 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया था. आसामान काला हो गया था जिसे सूर्य की रोशनी भी पार नहीं कर पा रही थी. फोटो सिंथेसिस पर निर्भर रहने वाला जीवन पूरी तरह से साफ हो गया था. लेकिन हैरानी की बात ये है कि इस महाविनाश से बने हालात से फॉस्फोसरस और आयरन जैसे पोषक तत्व बने जिससे जीवन फिर से और तेजी से पनप सका.
हवा का तापमान 100 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया था. आसामान काला हो गया था जिसे सूर्य की रोशनी भी पार नहीं कर पा रही थी. फोटो सिंथेसिस पर निर्भर रहने वाला जीवन पूरी तरह से साफ हो गया था. लेकिन हैरानी की बात ये है कि इस महाविनाश से बने हालात से फॉस्फोसरस और आयरन जैसे पोषक तत्व बने जिससे जीवन फिर से और तेजी से पनप सका.
इस टकराव से आई सुनामी की वजह से शुराआती सूक्ष्मजीवों को बहुत अधिक ऊर्जा दे दी थी जिससे गहराई में से लौह तत्व से से भरपूर पानी सतह पर आया. प्रोफेसर ड्राबोन का कहना है कि पड़ताल के नतीजा इस धारणा को पक्का करते है कि शुरुआती जीवन को पृथ्वी के शुरुआती सालों में बाहर से आए चट्टानों से बहुत ज्यादा मदद मिली थी.
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Vikas Sharma
As an exclusive digital content Creator, specifically work in the area of Science and technology, with special interest in International affairs. A civil engineer by education, with vast experience of training...और पढ़ें
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