क्या है अविश्वास प्रस्ताव, जिस पर आज से 03 दिनों तक होगी बहस, फिर वोटिंग, कैसे तय होता है कि कौन नेता बोलेंगे
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संसद के मानसून सत्र में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा 08 अगस्त यानि आज से शुरू हो रही है, जो 10 अगस्त तक चलेगी. फिर आखिरी दिन इस पर वोटिंग होगी. जानते हैं कि क्या होता है अविश्वास प्रस्ताव और किस तरह इसमें नेताओं ...और पढ़ें

मणिपुर की स्थिति को लेकर संसद के मानसून सत्र में 26 जुलाई को विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था. जिसे स्पीकर ने मंजूर कर लिया था. इसी के तहत 08 जुलाई से तीन दिनों तक इस पर बहस चलेगी और अंतिम दिन वोटिंग होगी.
लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा 08 अगस्त को दोपहर 12 बजे शुरू होगी. एक ही दिन पहले लोकसभा में अपनी सदस्यता बहाल करने वाले राहुल गांधी पहले दिन इस चर्चा में हिस्सा लेते हुए संबोधित करेंगे.
ये चर्चा 08 अगस्त को शाम 07 बजे तक जारी रहेगी. फिर ये 09 अगस्त को फिर शुरू होगी. इसका आखिरी दिन 10 अगस्त को होगा. वोटिंग होने से पहले आखिरी दिन शाम 04 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना आखिरी भाषण इसमें देंगे. हालांकि विपक्ष का कहना है कि वह इस बार अविश्वास प्रस्ताव को हार जीत के लिए लेकर नहीं लाया है बल्कि चाहता है कि मणिपुर को लेकर सदन में समुचित चर्चा हो और प्रधानमंत्री इस पर बोलें.
अब जानते हैं कि अविश्वास प्रस्ताव क्या है और इस बार सदन में इसका गणित क्या है
आजाद भारत में सरकारों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव अक्सर लाए जाते रहे हैं. इससे सरकार और विपक्ष दोनों अपनी मजबूती की परख करते हैं. हालांकि ये प्रस्ताव एक प्रक्रिया के तहत ही लाया जा सकता है. बगैर इसके अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता. क्या है ये प्रक्रिया. कैसे संसद में ये प्रस्ताव पेश होता है.
किस तरह लाया जाता है अविश्वास प्रस्ताव
सबसे पहले विपक्षी दल या विपक्षी गठबंधन को लोकसभा अध्यक्ष या स्पीकर को इसकी लिखित सूचना देनी होती है. इसके बाद स्पीकर उस दल के किसी सांसद से इसे पेश करने के लिए कहते हैं.
सबसे पहले विपक्षी दल या विपक्षी गठबंधन को लोकसभा अध्यक्ष या स्पीकर को इसकी लिखित सूचना देनी होती है. इसके बाद स्पीकर उस दल के किसी सांसद से इसे पेश करने के लिए कहते हैं.
इसे किन स्थितियों में लाया जाता है
जब किसी दल को लगता है कि सरकार सदन का विश्वास या बहुमत खो चुकी है. तब वो अविश्वास प्रस्ताव पेश कर सकता है.
जब किसी दल को लगता है कि सरकार सदन का विश्वास या बहुमत खो चुकी है. तब वो अविश्वास प्रस्ताव पेश कर सकता है.
इसे कब स्वीकार किया जाता है
अविश्वास प्रस्ताव को तभी स्वीकार किया जा सकता है, जब सदन में उसे कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन हासिल हो.
अविश्वास प्रस्ताव को तभी स्वीकार किया जा सकता है, जब सदन में उसे कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन हासिल हो.
संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाना संवैधानिक स्थिति है, जब विपक्ष को लगता है कि सरकार संसद में विश्वास खो चुकी है तो वो इसको लोकसभा में पेश कर सकती है.
अविश्वास प्रस्ताव पर मंजूरी मिलने के बाद क्या होता है
अगर लोकसभा अध्यक्ष या स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी दे देते हैं, तो प्रस्ताव पेश करने के 10 दिनों के अदंर इस पर चर्चा जरूरी है. इसके बाद स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग करा सकता है या फिर कोई फैसला ले सकता है.
अगर लोकसभा अध्यक्ष या स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी दे देते हैं, तो प्रस्ताव पेश करने के 10 दिनों के अदंर इस पर चर्चा जरूरी है. इसके बाद स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग करा सकता है या फिर कोई फैसला ले सकता है.
क्यों अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा से ही आता है
ये संवैधानिक व्यवस्था है. नियम 198 के तहत सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा से ही लाया जा सकता है. राज्यसभा से नहीं.
ये संवैधानिक व्यवस्था है. नियम 198 के तहत सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा से ही लाया जा सकता है. राज्यसभा से नहीं.
मोदी सरकार के खिलाफ कितने अविश्वास प्रस्ताव
ये दूसरी बार होगा जबकि मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा रहा है. पहली बार ये वर्ष 2018 में लाया गया था. तब नरेंद्र मोदी सरकार इस प्रस्ताव के खिलाफ जीत में सफल रही थी. प्रस्ताव के पक्ष में तब 126 वोट लोकसभा में पड़े थे जबकि विपक्ष में 325 वोट.
ये दूसरी बार होगा जबकि मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा रहा है. पहली बार ये वर्ष 2018 में लाया गया था. तब नरेंद्र मोदी सरकार इस प्रस्ताव के खिलाफ जीत में सफल रही थी. प्रस्ताव के पक्ष में तब 126 वोट लोकसभा में पड़े थे जबकि विपक्ष में 325 वोट.
लोकसभा में सीटों की स्थिति
अभी लोकसभा में बीजेपी के 301 सांसद हैं लेकिन अगर एनडीए गठबंधन की बात करें तो इस गठबंधन के पास लोकसभा में कुल 332 सांसद हैं. इस गठबंधन में लोकसभा में बीजेपी को लेकर 12 पार्टियां हैं और 03 निर्दलीय सदस्य
अभी लोकसभा में बीजेपी के 301 सांसद हैं लेकिन अगर एनडीए गठबंधन की बात करें तो इस गठबंधन के पास लोकसभा में कुल 332 सांसद हैं. इस गठबंधन में लोकसभा में बीजेपी को लेकर 12 पार्टियां हैं और 03 निर्दलीय सदस्य
वहीं कांग्रेस के 49 सांसद हैं तो विपक्ष के नए बने गठबंधन इंडिया के कुल मिलाकर लोकसभा में 141 सांसद हैं. इस गठबंधन में लोकसभा में 15 दलों के सांसद हैं. वैसे लोकसभा में विपक्षी सांसदों की संख्या 205 है लेकिन कई विपक्षी दल इस अविश्वास प्रस्ताव में शामिल नहीं हैं.
क्या मोदी सरकार को खतरा है?
नहीं, मोदी सरकार को खतरा नहीं लगता, क्योंकि उनके पास बीजेपी के 301 सांसद हैं. लोकसभा में बहुमत के लिए 272 सीटों की जरूरत होती है. ऐसे में इनके दम पर बीजेपी अकेले ही सरकार बना सकती है.
नहीं, मोदी सरकार को खतरा नहीं लगता, क्योंकि उनके पास बीजेपी के 301 सांसद हैं. लोकसभा में बहुमत के लिए 272 सीटों की जरूरत होती है. ऐसे में इनके दम पर बीजेपी अकेले ही सरकार बना सकती है.
पहला अविश्वास प्रस्ताव कब आया था
भारतीय संसद के इतिहास में पहली बार अगस्त 1963 में जे बी कृपलानी ने अविश्वास प्रस्ताव रखा था. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार के ख़िलाफ़ रखे गए इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल 62 वोट पड़े और विरोध में 347 वोट.
भारतीय संसद के इतिहास में पहली बार अगस्त 1963 में जे बी कृपलानी ने अविश्वास प्रस्ताव रखा था. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार के ख़िलाफ़ रखे गए इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल 62 वोट पड़े और विरोध में 347 वोट.
कितनी बार अविश्वास प्रस्ताव आ चुके हैं
संसद में 27 से ज्यादा बार अविश्वास प्रस्ताव रखे जा चुके हैं. ये 28वां मौका है. 1978 में ऐसे ही एक प्रस्ताव ने मोरारजी देसाई सरकार को गिरा दिया था, हालांकि मोरारजी देसाई ने विश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग से पहले ही इस्तीफा दे दिया था.
संसद में 27 से ज्यादा बार अविश्वास प्रस्ताव रखे जा चुके हैं. ये 28वां मौका है. 1978 में ऐसे ही एक प्रस्ताव ने मोरारजी देसाई सरकार को गिरा दिया था, हालांकि मोरारजी देसाई ने विश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग से पहले ही इस्तीफा दे दिया था.
सबसे ज़्यादा अविश्वास प्रस्ताव
– सबसे ज़्यादा या 15 अविश्वास प्रस्ताव इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार के ख़िलाफ़ आए.
– लाल बहादुर शास्त्री और नरसिंह राव की सरकारों ने तीन-तीन बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया.
– 1993 में नरसिंह राव बहुत कम अंतर से अपनी सरकार के ख़िलाफ़ लाए अविश्वास प्रस्ताव को हरा पाए.
– सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का रिकॉर्ड माकपा सांसद ज्योतिर्मय बसु के नाम है. उन्होंने अपने चारों प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ रखे थे
– सबसे ज़्यादा या 15 अविश्वास प्रस्ताव इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार के ख़िलाफ़ आए.
– लाल बहादुर शास्त्री और नरसिंह राव की सरकारों ने तीन-तीन बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया.
– 1993 में नरसिंह राव बहुत कम अंतर से अपनी सरकार के ख़िलाफ़ लाए अविश्वास प्रस्ताव को हरा पाए.
– सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का रिकॉर्ड माकपा सांसद ज्योतिर्मय बसु के नाम है. उन्होंने अपने चारों प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ रखे थे
वाजपेयी का रिकॉर्ड
स्वयं प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्ष में रहते हुए दो बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किए हैं.
पहला प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के ख़िलाफ़ था और दूसरा नरसिंह राव सरकार के ख़िलाफ़.
प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने दो बार विश्वास मत हासिल करने का प्रयास किया और दोनो बार वे असफल रहे. 1996 में तो उन्होंने मतविभाजन से पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया और 1998 में वे एक वोट से हार गए.
स्वयं प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्ष में रहते हुए दो बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किए हैं.
पहला प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के ख़िलाफ़ था और दूसरा नरसिंह राव सरकार के ख़िलाफ़.
प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने दो बार विश्वास मत हासिल करने का प्रयास किया और दोनो बार वे असफल रहे. 1996 में तो उन्होंने मतविभाजन से पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया और 1998 में वे एक वोट से हार गए.
किन तरीकों से लाया जा सकता है अविश्वास प्रस्ताव
ध्वनि वोट – सांसद ध्वनि वोट इस पर पक्ष या विपक्षी नजरिया पेश कर सकते हैं
वोटों के बंटवारे से – ऐसे में अगर वोटों के बंटवारे की व्यवस्था होती है तो इलैक्ट्रॉनिक मशीन, स्लिप्स या बैलेट बॉक्स की मदद ली जाती है.
बैलेट वोट – जब अविश्वास प्रस्ताव में बैलेट बॉक्स का इस्तेमाल होता है तो इसका मकसद ये होता है कि सांसद गुप्त तरीके से वोट कर सकें. जैसे लोकसभा या विधानसभा चुनावों में जनता करती है.
ध्वनि वोट – सांसद ध्वनि वोट इस पर पक्ष या विपक्षी नजरिया पेश कर सकते हैं
वोटों के बंटवारे से – ऐसे में अगर वोटों के बंटवारे की व्यवस्था होती है तो इलैक्ट्रॉनिक मशीन, स्लिप्स या बैलेट बॉक्स की मदद ली जाती है.
बैलेट वोट – जब अविश्वास प्रस्ताव में बैलेट बॉक्स का इस्तेमाल होता है तो इसका मकसद ये होता है कि सांसद गुप्त तरीके से वोट कर सकें. जैसे लोकसभा या विधानसभा चुनावों में जनता करती है.
अविश्वास प्रस्ताव पर कितना समय मिलता है सांसदों को
इस बार अविश्वास प्रस्ताव पर बहस करीब तीन दिन चलती है. आमतौर पर बहस से पहले स्पीकर के पास सभी सियासी दलों से वो लिस्ट पहुंचती है, जिसमें वो अपने उन नेताओं को अधिकृत करते हैं, जिन्हें बोलना होता है.
इस बार अविश्वास प्रस्ताव पर बहस करीब तीन दिन चलती है. आमतौर पर बहस से पहले स्पीकर के पास सभी सियासी दलों से वो लिस्ट पहुंचती है, जिसमें वो अपने उन नेताओं को अधिकृत करते हैं, जिन्हें बोलना होता है.
फिर जब ये लिस्ट स्पीकर के पास पहुंच जाती है तो वह तय करते हैं कि किसे कितना समय देना है. हालांकि सियासी दल भी जब लिस्ट भेजते हैं तो इसमें वो भी अपने कुछ नेताओं को बोलने के लिए ज्यादा समय देने का आग्रह करते हैं.
आमतौर पर विपक्षी दलों के मुख्य नेताओं को बोलने के लिए 30 मिनट तक का समय मिलता है तो अन्य नेताओं को 10-15 मिनट का. प्रधानमंत्री का बोलने का कोई समय तय नहीं होता, वो अपनी मर्जी से कितने भी समय तक बोल सकते हैं.
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संजय श्रीवास्तवडिप्टी एडीटर
लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास...और पढ़ें
लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास... और पढ़ें
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